विज्ञान द्वारा प्रमाणित अन्तर्चेतना को भूला न जाय।

January 1970

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योग वशिष्ठ में बताया है—

परमाणु निमेषाणां लक्षाँशकलनास्वपि। जगत्कल्प सहस्राणि सत्यानीव विभान्त्यलम्॥ तेष्वप्यन्तस्तथैवान्तः परमाणु कणं प्रति। भ्रान्तिरेव मनन्ताहो इयमित्यवभासते॥

—योग वशिष्ठ 3। 62। 102,

अणावणावसंख्यानि तेन संति जगन्ति रवे। तेषान्तान्व्यहारौ घान्संख्यातुं क इव क्षमः॥

—योग वशिष्ठ 6। 2।176। 6

हे राम! प्रत्येक परमाणु के एक क्षुद्र टुकड़े के भी छोटे टुकड़े—लाखवें भाग के भीतर सहस्रों विश्व स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। उन परमाणुओं में से प्रत्येक के भीतर भी वैसा ही दृश्य जगत् विद्यमान है। यह आश्चर्य और अनहोनी जैसी लगती है पर यह सत्य है राम! आकाश के अणु−अणु में सुव्यवस्थित संसार समासीन है, उनके समाचार कौन जानता है?

ज्ञान, शक्ति, प्रकाश रूप यह चेतना ही ब्रह्म है, उसे जानना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य बताया है, शास्त्रकार ने। किन्तु हमारे सामने पदार्थ का एक विराट् संसार दृष्टिगोचर हो रहा है, हम उसमें भूल जाते हैं और विज्ञान को, वैज्ञानिक मान्यताओं को सत्य मानकर अन्तर्चेतना की उपेक्षा करने लगे हैं।

विज्ञान शास्त्रकार की उपरोक्त धारणा को स्थिर करता है, उसे सत्य सिद्ध करता है। सूक्ष्मदर्शी निरीक्षण (माइक्रोस्कोपिक इन्स्पेक्शन) से ज्ञात हुआ है कि मनुष्य का शरीर भी छोटे−छोटे अदृश्य परमाणुओं से हुआ है, उन्हें कोश (सेल) कहते हैं। कोशाओं की रचना प्याज के छिलकों की तरह (फैब्रिक फार्क्ड सेल्स टिसू) एक विशेष प्रकार को होती है, प्याज के छिलके की एक कोशिका अपनी पूरी प्याज की गाँठ की तरह ही परत के भीतर परत वाली होती है। इस तरह सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु के भीतर भी एक नियोजित चेतना काम कर रही है।

पेड़−पौधों की पत्तियाँ भी साँस लेती हैं। साँस लेने की क्रिया वह पत्तियाँ आगे निकले हुये नुकीले भाग से करती हैं। सबसे आगे का नुकीला कोश बहुत ही छोटा होगा, वह आकाश से वायु खींच−खींचकर पहुँचाता रहता है, वायु में अकेली हवा नहीं होती, उसमें प्रकाश के कण (इसका विवरण फोटो संस्थेसिस के लेख में करेंगे) भी होते हैं, इसी वायु और प्रकाश कणों से वृक्ष−वनस्पतियों के भीतर ठीक वैसी ही चेतनता काम करती रहती है, जिस तरह मनुष्य शरीर में श्वास−प्रश्वास क्रिया से ही सारे क्रिया कलाप चलते रहते हैं।

छोटे से छोटे कोश में वायु, जल, प्रकाश, खनिज, लवण, धातुयें आदि विभिन्न वस्तुयें जिस−जिस मात्रा और अनुपात में होती हैं, उसी अनुपात में उनका स्वरूप बनता बिगड़ता रहता है और इस तरह प्रकृति में एक सुव्यवस्थित हलचल दिखाई देती रहती है। अणुओं के भीतर की यह हलचल विराट्, ब्रह्मांड में हो रही हलचलों की प्रतिच्छाया होती है। कुछ ऐसे तारों का पता लगाया गया है, जो कालान्तर में अपनी चमक बदलते रहते हैं, पृथ्वी में होने वाले ऋतु परिवर्तन को तो हम स्पष्ट देखते और अनुभव करते हैं।

कुछ विशेष प्रकार के नक्षत्रों के अध्ययन से पता चला है कि आगे उनकी गतिविधियाँ क्या होंगी, यह निश्चित रूप से जाना जा सकता है। आकाश में कुछ ऐसे भी तारे हैं, जिनको हम देख नहीं सकते। पर वे ध्वनि कम्पनों से अनुभव में आते हैं। वैज्ञानिकों ने इन तारों की खोज इसी आधार पर की है, जब कोई वस्तु हवा में तीव्रता से कम्पन करती है, तब उससे दबाव तरंगें भी तीव्रता से उत्पन्न होती हैं। जब यह तरंगें कान से कुछ निश्चित परिस्थितियों में टकराती हैं, तभी उनसे ध्वनि का अनुभव होता है। और इसी तरह अनेक अदृश्य तारों के अस्तित्व का पता लगाया गया है।

विज्ञान के अनुसार यह ध्वनि, यह परिवर्तनशीलता और यह विराट दृश्य परमाणु में विद्यमान हैं, तब फिर हम उस परमाणु की मूल सत्ता को ही क्यों न जानें ताकि उसे जानकर विश्व−ब्रह्मांड को जान लें। योगाभ्यास हमें उसी सूक्ष्म−दर्शन की प्राप्ति कराता है। इस विद्या के द्वारा मनुष्य परमाणविक चेतना में विश्वम्भर शक्ति और उसके विराट् स्वरूप के दर्शन कराता है।

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