जहाँ अब पेरु, चिली और बोलिविया देश बसे हैं, वहाँ से दक्षिण अमेरिका तथा इक्वेडोर तक किसी समय एक आदिम सी जाति इंका निवास करती थी। इंका आत्म-विश्वासी जीवन के लिये संसार में प्रसिद्ध है, आज भी इतिहास में उनकी तुलना समर्थ जातियों में की जाती है।
एक बार उनके राज्य में तेज तूफान आया। इंका लोग घास-फूस और लकड़ी के मकानों में रहते थे। तूफान का वेग पूरे दिन और रात तक बना रहा, जिससे उनके सब मकान और सामान न जाने कहाँ उड़ गये। जानवर यहाँ से वहाँ हो गये और सैकड़ों लोगों का पता न चला वे कहाँ चले गये।
होना यह चाहिये था कि अगले दिन से मकानों की टूट-फूट संभालते, सामान ढूंढ़ते और जो कुछ हुआ था उस पर बैठकर शोक करते पर इंका के सरदार ने कहा—“अब जो हुआ उसके लिये शोक करना व्यर्थ है। भाइयो ! अब ऐसा कुछ करना चाहिये, जिससे तूफान हमारा फिर कभी कुछ बिगाड़ न सके।
फिर वे पत्थरों के औजारों से ही जुट पड़े और पत्थरों की शिलायें काट-काटकर भवन निर्माण करने लगे। घोड़े, बल और गाड़ियाँ कुछ भी तो नहीं थीं, पीठ से ढो-ढोकर ऐसी इमारतें गढ़ी इंकाओं ने, जिनकी मजबूती देखते ही बनती। नगर के नगर तैयार कर दिये उन्होंने, उनके कला-कौशल को आज भी संसार का आठवाँ आश्चर्य माना जाता है।
फिर एक बार अकाल पड़ा। खेत खड़े सूख गये, पानी के स्त्रोत तो कहीं न कहीं से बने रहे पर भुखमरी की स्थिति ऐसी थी कि पेड़ों की पत्तियाँ भी नहीं बचीं। दूसरी बैठक हुई कुछ श्रद्धालु इंकाओं ने कहा—“सूर्यदेव की बिनती करनी चाहिए, ताकि पानी बरसे और अकाल दूर हो (इंकाओ में सूर्य उपासना प्रचलित थी) पर इस बार भी अन्तिम निर्णय वही लिया गया, जो एक समर्थ जाति को लेना चाहिये था।
इंकाओं ने पहाड़ काट-काटकर सीढ़ियाँ बनाईं और उनमें फल लगाये। पहाड़ों के चश्मों में पानी मिल जाता था, उससे सिंचाई कर-करके उन्होंने संसार के अद्वितीय बाग तैयार कर दिये। उससे उन्हें इतने फल मिलने लगे कि अन्न के बिना वे वर्षों काम चला सकते थे।
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