आत्म−शक्ति का कुछ ठिकाना नहीं?

January 1970

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

यह तो साधुओं की अकारण बाढ़ ने योग की प्रतिष्ठा घटाई है, अन्यथा योग विशुद्ध विज्ञान है। भौतिक विज्ञान में जो महत्ता ताप, विद्युत, प्रकाश शब्द, चुम्बक आदि शक्तियों की है, आत्म−शक्ति का स्वरूप और महत्ता उससे हजारों गुना अधिक है। योगी शक्ति का पुञ्ज होते हैं, तब जबकि उन्होंने वस्तुतः योग आष्टाँग नियमों —(1) यम, (2) नियम, (3) आसन (4) प्राणायाम (5) प्रत्याहार (6) ध्यान (7) धारणा और (8) समाधि का अभ्यास किया हो। जिस प्रकार जनरेटर से विद्युत उत्पन्न करते हैं उसी प्रकार शरीर रूपी मशीन में उक्त साधनों का अभ्यास करने से आत्मा की शक्ति के अनन्त स्रोत जाग पड़ते हैं। यह शक्ति जिस किसी योगी के पास होगी, वह निर्भय होगा, निष्काम होगा, मुक्त होगा संसार के किसी भी व्यक्ति का उस पर प्रभाव न होगा वरन् वह सब का स्वामी, देवतुल्य होगा।

शरीर तो सबके एक से ही होते हैं, इसलिये योगी की पहचान शरीर से नहीं की जा सकती। आत्म−शक्ति का परिचय ही उसकी असली पहचान है। साधु अपमानपूर्वक निकाल दिये गये। यद्यपि वे स्वयं रेल से उतरने को तैयार थे पर टिकट कलेक्टर ने कुछ ऐसी अपमानजनक भारतीय साधु और योग−विद्या पर आक्षेप करने वाली बातें कह दीं कि साधु का स्वाभिमान जाग गया। क्रुद्ध नहीं हुये थे। क्रोध आता तो वे टिकट कलेक्टर को पहले नष्ट करते पर उन्होंने ऐसा न कर भारतीय योग−विद्या का गौरव प्रदर्शित करके ही उसके दम्भ को चकनाचूर करने का निश्चय किया।

संत रेलगाड़ी से उतर कर एक खम्भे के सहारे बैठ गये। किसी से कुछ बोले नहीं। निश्चल निस्तब्ध मुद्रा में बैठे साधु की दृष्टि एकटक इञ्जन के पहियों में लगी हुई थी।

गार्ड ने हरी झण्डी दिलाई, सीटी बजाई, ड्राइवर ने एक्सीलरेटर दाबा पर गाड़ी स्टार्ट न हुई। सोचा ब्रेक न जाम हो गये हों, उन्हें देखा—खुले पड़े थे। इञ्जिन के एक−एक पुर्जे की जाँच कर ली गई, कहीं कोई खराबी नहीं। गार्ड हरी झण्डी दिखाता रहा, गाड़ी लाल झण्डी। वह टस से मस न हुई ड्राइवर सारी शक्ति लगाकर हार गया।

दो घन्टे तक यही स्थिति रही। स्टेशन पर तहलका मच गया, हेडक्वार्टर को फोन किया गया, फिटरों ने लाइन की जाँच कर ली, कहीं रत्ती भर त्रुटि न निकली। इसी बीच किसी व्यक्ति की दृष्टि उन महात्मा पर पड़ी। उनकी आँखों से तीव्र ज्योति इञ्जन पर पड़ रही थी। लोगों को अब कारण समझते देर न लगी। अधिकारीगण उन सज्जन को आगे लेकर साधु के पास आये उन्हें प्रणाम कर क्षमा याचना की, उठाया और आदरपूर्वक गाड़ी में बैठाया और तब गाड़ी ऐसे स्टार्ट हो गई, जैसे वह इसी की प्रतीक्षा में थी।

जड़ प्रकृति को नियन्त्रण में रखने और उस पर स्वामित्व स्थापित करने की जो सामर्थ्य भौतिक शक्तियों में नहीं, यह आत्मा के अन्तराल में भरी पड़ी है, हम भी चाहें तो योग के आष्टाँग नियमों का अभ्यास कर उस शक्ति की न्यूनाधिक मात्रा की अनुभूति और उपलब्धि कर सकते हैं।

=कोटेशन======================

धर्म आत्मा का विज्ञान है। आत्मिक शक्ति सब शक्तियों से बढ़कर है। इसीलिये धर्म ही सच्चा विज्ञान है।

—महात्मा गाँधी

==========================

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118