“आपकी सफलता का श्रेय किसको है?” एक पत्रकार ने प्रेसीडेन्ट जानसन से प्रश्न किया। जानसन ने उत्तर दिया-असफल व्यक्ति” को कैसे उसने पुनः प्रश्न किया, जानसन ने बताया-मैं वित्त किसी असफल व्यक्ति को देखता उससे बात-चीत करके यह पता लगाता कि वह असफल किन कारणों से हुआ। पीछे उन अनुभवों का लाभ उठाकर ही मैंने सफलता प्राप्त की।”
पाशविक भोग के सिवाय और कुछ नहीं होता। इस अन्तर से उत्पन्न होने वाली सन्तानों में सत्-असत् का अन्तर होना और उसी के अनुसार सुख-दुःख का मिलना निश्चित ही है।
जीवन को अध्यात्म के साँचे में ढालकर चलने वाले अवश्य ही वर्तमान जीवन में समस्याओं और उलझनों से बचकर सुख पाते ही है और उसी आधार पर सत्कर्मों द्वारा भविष्य के लिये अपनी श्रीमती प्रारब्ध की रचना भी करते चलते हैं। अध्यात्म सारी समस्याओं का एक हल और सारे भव रोगों का एक उपचार है। इसका आधार लेकर चलने वालों को सुख-शांति का प्रभाव नहीं रहता।