पद नहीं मनुष्यता का सम्मान

July 1969

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पद नहीं मनुष्यता का सम्मान-

राजा बाली ने अपने प्रधान सचिव विश्वदर्शन को पदच्युत कर राज्य से निकाल दिया। विश्वदर्शन एक गाँव में रहते थे। पदच्युत होने के बाद वहीं आकर बड़े परिश्रम का जीवन बिताने लगे।

एक दिन बाली को यह देखने की इच्छा हुई कि विश्वदर्शन की कैसी स्थिति है वह वेश बदल कर उसी गाँव की ओर चल पड़ा। गाँव पहुँचकर उसने देखा कि विश्वदर्शन के मकान के सामने पच्चीसों व्यक्ति बैठे बात-चीज कर रहे हैं और हँसी-खुशी मना रहे है। विश्वदर्शन स्वयं बड़े प्रसन्न चित दिखाई दे रहे थे।

छद्म वेशधारी बाली ने विश्वदर्शन से पूछा-महानुभाव! आपको तो राजा ने पदच्युत कर दिया है। फिर भी आप इतने प्रसन्न है, उसका रहस्य क्या है?”

मनुष्यता-विश्वदर्शन से मुस्कराते हुये और राजा को पहचानते हुये कहा-महाराज! पहले तो मुझसे लोग डरते भी थे पर अब वह डर भी नहीं है, इसलिये लोगों से खुलकर बात करने और सेवा, सहानुभूति व्यक्त करने में बड़ा आनन्द आता है।”

महाराज बाली ने अनुभव किया सचमुच पद से लोग डर सकते हैं, सम्मान तो मनुष्यता का अच्छे गुणों का ही होता है। लौटते समय नरेश विश्वदर्शन को पुनः साथ लेते आये और उन्हें उनका पद फिर लौटा दिया।


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