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July 1969

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स्व0 श्री विमनलाल सीतलबाड उन दिनों बम्बई विश्व-विद्यालय के उपकुलपति नियुक्त नहीं हुए थे किसी और उच्च पद पर थे। एक मामले में बचने के लिए एक व्यक्ति उनके पास आया और एक लाख रुपये बतौर रिश्वत देने लगा। किन्तु सर सीतलबाड ने उसे अस्वीकार कर दिया। तब वह व्यक्ति बोला- समझ लीजिये साहब। आपको एक लाख रुपया देने वाला और कोई दूसरा नहीं मिलेगा। सर सीतलबाड हँसे और बोले- नहीं भाई देने वाले तो बहुत मिलेंगे पर इतनी बड़ी रकम मुफ्त में लेने से इनकार करने वाला आपको कोई नहीं मिलेगा।

इससे पूर्व कि जनक उन्हें कुछ तत्त्व-ज्ञान का उपदेश दे उन्होंने सभासदों को सम्बोधित करते हुए बताया- संसार में ज्ञान और सिद्धियों का अक्षय भण्डार भरा हुआ है पर उसे वही प्राप्त कर सकते है जिनमें शुकदेव जैसी अटूट निष्ठा, अडिग श्रद्धा और अटल विश्वास हो। श्रद्धा में ही वह शक्ति है जो आकर्षणों में भी कठिनाइयों में भी मनुष्य की रक्षा करती है। शुकदेव की श्रद्धा प्रगाढ़ है इसलिये वह सब प्रकार के ज्ञान के अधिकारी है।

इसके बाद महाराज जनक ने शुकदेव को पास रखकर ब्रह्म विद्या सिखाई। उन साधनाओं को ही सुमेरु पर्वत पर पूरा करने के पश्चात् शुक ने निर्विकल्प समाधि का सुख प्राप्त किया।


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