नदी को रोककर टीले ने कहा- बहन, विश्राम कर लो, लोगों ने तुम्हें लूटा ही लूटा किसी ने विश्राम के लिए भी नहीं पूछा।- ‘धन्यवाद बन्धु’ इतना ही कहा नदी ने और फिर आगे बढ़ चली। उन्हें तो विश्वास था लक्ष्य चलने से ही मिलता है।
देवराज ने राजा अरिष्टनेमि को महर्षि बाल्मीकि के पास भेज दिया। उनके मार्ग दर्शन एवं अनुभव से राजा को शीघ्र ही अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हो गई। प्रलोभनों को चीरते हुए राजा अरिष्टनेमि संसार की विकृतियों से मुक्त रहकर मानव देह की सार्थकता का महत्व जान सकें।