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July 1969

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यूनानी दार्शनिक जेनो के पास एरिट्रायस नामक एक नवयुवक दर्शनशास्त्र सीखने के लिए आया करता था। एक दिन घर लौटने पर एरिट्रायस के पिता ने उससे पूछा-आज तू क्या सीखकर आया?”

एरिट्रायस ने शान्त भाव से जवाब दिया-पिताजी यह बात तो आपको बाद में ज्ञात होगी।” पुत्र के इस जवाब को सुनकर पिता बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने एरिट्रायस ने शान्ति से उत्तर दिया, “पिताजी, मैं जो कुछ सीखकर आया हूँ वह यही है कि मैं आपके क्रोध को शान्ति से सहन करूँ

दुष्काल व्यवहारेण दुष्क्रिया स्फुरणंन च।

दुर्जना सगदोषेण दुर्भावोद्भावनेन च।

क्षीणत्वाद्वा प्रयूणंत्वन्नाडीनाँ रन्प्ध्रसंततौ।

प्राणे विधुरताँ याते काये तु विकलीकृते।

/-/-/

दौस्तित्यकारणं दोषाद्व गविदें हे प्रवतते।

अनुचित समय पर अनुचित काम करने से, बुरे लोगों के पास बैठने से मनुष्य मन में पाप और बुरी भावनाओं को स्थान देने लगता है। ऐसा होने पर नाड़ियाँ अपनी सामान्य कार्य-प्रणाली बन्द कर देती है। कुछ नाड़ियों की शक्ति नष्ट हो जाती हैं, कुछ अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं, जिससे प्राण का बहाव उल्टा-पुल्टा हो जाता है। प्राण संचार में गतिरोध उत्पन्न होने पर ही शरीर की स्थिति बिगड़ती और उसमें तरह-तरह के रोग पैदा हो जाते हैं।

प्राण मृत्यु के बाद भी चेतना की गतिविधियाँ अभ्यास में रखता है, इसीलिये जन्मजात बीमारियाँ भी पूर्वकृत दुष्कर्मों का ही फल होती है। जिस प्रकार बीमारियाँ मन की कुटिलता और पाप से बढ़ती है उसी तरह मन की पवित्रता, स्नेह, करुणा, दया और निष्काम प्रेम से उनको मिटाया और हटाया भी जा सकता है। इसका एक बहुत सुन्दर उदाहरण फिनलैण्ड में देखने को मिला।

फिनलैण्ड को एक अविवाहित युवती कैंसर जैसे भयंकर रोग से पीड़ित थी। डाक्टरों ने उसकी विस्तृत परीक्षा की और यह देखा कि उसके गर्भाशय में कैंसर है और वह असाध्य है उसका किसी प्रकार का उपचार या आपरेशन नहीं किया जा सकता।

निराश युवती ने आत्महत्या का प्रयत्न किया। गौनर मैंटन नामक प्रसिद्ध साहित्यकार ने उसे देख लिया और दौड़कर उसे बचा लिया। गौनर मैंटन उसी मुहल्ले में रहते थे। उन्होंने युवती को बड़ी करुणा और स्नेह से देखा। उन्होंने उसके निराश जीवन में आशा का संचार किया पर युवती को अपना भावी जीवन बड़ा अन्धकारमय दीख रहा था इसलिये उसने तीन-चार बार आत्महत्या का प्रयास किया, हर बार गौनर ने उसकी रक्षा की और हर बार उसे पहले से अपेक्षा अधिक प्रेम और दया की वृष्टि की। अन्त में उसने युवती से विवाह का भी प्रस्ताव किया। युवती अब तक उसे एक रक्षक के रूप में ही देखती थी पर जब उसे उसके निश्छल प्रेम पर विश्वास हो गया तो एकाएक उसकी निराशा प्रसन्नता में बदल गई। विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। दोनों का विवाह हो गया।

विवाह के कुछ दिन बाद युवती गर्भवती हुई। अपने पति के निश्छल प्रेम के आगे वह यह भी भूल गई कि उसके गर्भाशय में ही कैंसर है। अभी दो वर्ष ही बीते हैं। समाचार मिला है कि युवती के बच्चा हुआ वह बहुत सुन्दर और स्वस्थ है। डाक्टरों ने उसकी पूरी जाँच की किन्तु कही भी रोग का एक धब्बा न मिला। आश्चर्य तो इस बात का है कि युवती स्वयं भी पूर्ण स्वस्थ और उसका पति भी। डाक्टर हैरान है कि वह जो असाध्य कैंसर था वह कहाँ चला गया। फिनलैण्ड में इस घटना से “प्रेम की सृजन शक्ति” पर लोग बहुत विश्वास करने लगे हैं पर सच बात यह है कि वह सभी भावनायें जो आत्मा को प्रसन्नता और शक्ति प्रदान करती हैं, यदि मनुष्य उनका अभ्यास शुरू कर दे तो न केवल अपने आपका स्वस्थ और प्रसन्न रख सकता है वरन् पिछले जीवन में हुई भूलों से जो रोग और दुश्चिन्तायें मन में भर गई हैं उनसे भी मुक्ति अर्जित कर सकता है।


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