ज्ञान औरों को भी बाँट सकूँ

July 1969

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

स्वामी रामतीर्थ तब छात्र थे। पैसे की तंगी के कारण उन्हें कई बार रात में पड़ने के लिए तेल की कमी पड़ जाती थी इसलिये उन्होंने कम कपड़ों से काम चलाना शुरू कर दिया शेष पैसों का उपयोग वे पढ़ाई के खर्चों में करते यह बात कालेज के प्रिंसिपल के कानों तक पहुँची। प्रधानाचार्य जी उनकी प्रखर बुद्धि से पहले ही प्रभावित थे। उनके इस अध्यवसाय और ज्ञान-संचय की प्रवृत्ति पर वे मुग्ध हो उठे। इसलिये उन्होंने रामतीर्थ को सिविल सर्विस में भेजने का प्रस्ताव किया।

अभाव प्रकट करते हुए रामतीर्थ ने उत्तर दिया-श्रीमान जी अपने परिश्रम का उपयोग स्वार्थ में करूँ इससे मेरा आत्म-विश्वास रुकेगा। मुझे पदाधिकार नहीं चाहिये। कृपा कर सकते हों तो मुझे अध्यापक बना दीजिये जिससे प्राप्त ज्ञान औरों को भी बाँट सकूँ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118