वस्तुओं की उपयोगिता-अनुपयोगिता

July 1969

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देवदास बड़ा हैरान था कि गुरु शृणोति, प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न कैसे रह लेते हैं। उसका अध्ययन करने के लिये वह कई दिन तक निरन्तर शृणोति के साथ बना रहा।

मध्याह्न का भोजन कर चुकने के पश्चात् मुनि शृणोति ने अपनी धर्मपत्नी शोभा से कहा-धर में गुड़ हो तो एक डली देना। गुड़ में छार होता है उससे पेट साफ हो जाता है। शोभा ने इधर-उधर ढूँढ़ा, घर में गुड़ था नहीं वापस लौटकर बताया-गुड़ रहा नहीं, कहें तो मँगा दूँ। शृणोति ने मुस्कराते हुए कहा, नहीं, नहीं, प्रिये! उसकी आवश्यकता नहीं। गुड़ तो गरम करता हैं?

देवदास ने पूछा-महात्मन् पहले तो आपने उसी गुड़ को उपयोगी ठहराया बाद में हानिकारक! आप भी दोहरी बातें करते हैं।” शृणोति ने कहा-वत्स यह विनोदप्रियता ही सदैव प्रसन्नता का रहस्य है और संसार में कुछ है नहीं। यहाँ न कुछ उपयोगी-अनुपयोगी मान्यताओं के अनुपम वस्तुओं की उपयोगिता-अनुपयोगिता बदलती रहती है।


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