यदि गिर पड़ो तो हताश मत होओ। गिरना बुरा नहीं है। क्योंकि गिरकर भी उठा जा सकता है। जो चढ़ता है वही गिरता भी है। घबराओ मत चलो- गिरो उठो फिर आगे बढ़ो।
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जो अपने लिये उचित न समझो दूसरों के लिये भी वैसी इच्छा मत करो। सब किसी के हक को पहचानो।
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प्राणी मात्र से दिल खोल कर मिलो किसी से घृणा मत करो। याद रक्खो परमात्मा सदा सबमें समान रूप से विराजमान है।
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स्वार्थ से भरा हुआ प्रेम हृदय को कलुषित करता है अपने सुख की लालसा और पवित्र प्रेम परस्पर भिन्न वस्तु हैं। प्रेम कंचन है, और स्वार्थ काँच है।
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यदि सत्य को अपने हृदय में बसाना चाहते हो तो ईर्ष्या, द्वेष को उसमें से निकाल बाहर करो। जब तक शत्रु घर से बाहर नहीं होगा, मित्र का प्रवेश कैसे हो सकता है?
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मनुष्य जितना अधिक नम्र होगा, जितना अधिक परमात्मा में विश्वास करेगा, उतना ही वह अपने कार्यों में कुशल होगा और उतनी ही अधिक शान्ति और तृप्ति भोगेगा।