सूर्य का महत्व।

October 1940

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(अखंड ज्योति कार्यालय से इसी मास प्रकाशित ‘सूर्य-चिकित्सा विज्ञान’ नामक पुस्तक के कुछ पृष्ठ)

सूर्यत्आमा जगतस्तरथुषश्च। - यजु. 7।42

सूर्य संसार की आत्मा है। संसार का संपूर्ण भौतिक विकास सूर्य की सत्ता पर निर्भर है। सूर्य की शक्ति के बिना पौधे नहीं उग सकते, अण्डे नहीं बढ़ सकते, वायु का शोधन नहीं हो सकता, जल की उपलब्धि नहीं हो सकती। निदान कुछ भी नहीं हो सकता। सूर्य की शक्ति के बिना हमारा जन्म होना तो दूर इस पृथ्वी का जन्म न हुआ होता।

प्रकृति का केन्द्र सूर्य है। इसकी समस्त शक्तियाँ सूर्य से ही प्राप्त हैं। आत्मा के बिना शरीर का अस्तित्व नहीं हो सकता उसी प्रकार जगत की सत्ता सूर्य पर अवलंबित है। भौंरा अपना जीवन-रस प्राप्त करने के लिये फूल के चारों ओर जिस प्रकार मँडराया करता है उसी प्रकार पृथ्वी अपनी जीवन रक्षा के उपयुक्त सामग्री पाने के लिये सूर्य की परिक्रमा किया करती है। धरती यदि हमारी माता है तो सूर्य पिता है। दोनों के रजवीर्य से हम जीवन धारण किये हुए हैं। शारीरिक रसों का परिपाक सूर्य की गर्मी से होता है। शक्तियों का विकास, अंगों की परिपुष्टि और मलों का निकलना उसी महत शक्ति पर निर्भर है। यह तो हुई हमारे शरीर और उसके जीवित रहने के साधनों के विकास और परिपुष्टि की बात। यह साधारण क्रम सभी जड़ चेतन जीवधारियों के जीवन में चलता रहता है।

जब संकटपूर्ण दशायें आती हैं तब सूर्य से हमें असाधारण मदद मिलती है। भगवान भास्कर में इतनी प्रचण्ड रोग नाशक शक्ति है जिसके बल से कठिन रोग दूर हो जाते हैं। दूर जाने की जरूरत नहीं भूखे प्यासे रहकर दिन काटने वाले किसान जिन्हें बहुमूल्य पौष्टिक पदार्थों के दर्शन भी दुर्लभ होते हैं और दिन रात कठोर कार्य में पिले रहते हैं फिर भी स्वस्थ और हट्टे कट्टे रहते हैं। बीमारी उनके पास भी नहीं आती यदि कोई रोग हुआ तो दो-चार दिन में बिना दवा के अपने आप ही अच्छा हो जाता है। इसके विपरीत शहरों में रहने वाले वे लोग जो दिन भर छाया में रहते हैं। पौष्टिक पदार्थ खाने और पूरा आराम करने के बावजूद भी बीमार पड़े रहते हैं। पेट की शिकायत, भोजन हजम न होने, टट्टी साफ न आने की शिकायत तो प्रायः शत प्रतिशत लोगों को होती है। धातुस्राव, जुकाम, रक्तहीनता और मेद वृद्धि आदि बीमारियाँ भी उनमें से अधिकाँश को घेरे रहती हैं तपेदिक और निमोनिया से जितने शहरी लोग मरते हैं उतने ग्रामीण नहीं। सब जगह पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का स्वास्थ्य खराब पाया जाता है। इन सब का एक ही कारण है सूर्य रश्मियों का अनादर। जब से हमने धूप में रहना असभ्यता और बन्द जगहों में निवास करना सभ्यता में शामिल किया है तब से बहुमूल्य स्वास्थ्य को गँवा दिया है। सभ्यता के चक्कर में पड़ हमने सूर्य का तिरस्कार किया, फलस्वरुप स्वास्थ्य ने हमारा तिरस्कार कर दिया।

स्वस्थ जीवन बिताने के लिये सूर्य से सहायता लेने की बड़ी आवश्यकता है। इस महत्व को समझ कर हमारे प्राचीन आचार्यों ने सूर्य प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, सूर्य उपासना, सूर्य योग, सूर्य चक्र वेधन तथा सूर्य यज्ञ आदि अनेक क्रियाओं को धार्मिक स्थान दिया था। डॉक्टर सोले कहते हैं कि “सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति मौजूद है उतनी संसार की किसी वस्तु में नहीं है। केन्सर, नासूर और भगन्दर प्रभृति दुस्साध्य रोग जो जली और रेडियम के प्रयोग से भी अच्छे नहीं किये जा सकते थे वे सूर्य किरणों के ठीक प्रकार प्रयोग करने से अच्छे हो गये।” तपेदिक के विशेषज्ञ डॉक्टर हरनिच का कथन है कि “पिछले तीस वर्षों से मैंने करीब करीब सभी प्रसिद्ध औषधियों को अपने चिकित्सालय में आये हुए प्रायः बाईस हजार रोगियों पर आजमा डाला पर मुझे उनमें से किसी पर भी संतोष न हुआ। अब गत तीन वर्षों से मैंने सूर्य चिकित्सा प्रणाली का उपयोग अपने मरीजों पर किया है फलतः मैं यह कह सकने को तत्पर हूँ कि सूर्य शक्ति से बढ़कर क्षयी के लिये और कोई औषधि नहीं है।”

डॉक्टर होनर्ग ने लिखा है कि “रक्त का पीलापन, पतलापन, लोह की कमी, नसों की दुर्बलता, कमजोरी, थकान, पेशियों की शिथिलता आदि बीमारियों में मैंने पाया कि सूर्य की मदद से इलाज करना लाजवाब है।” लेडी कीवो जो अमेरिका की प्रसिद्ध सूर्य चिकित्सक हैं अपने अनुभवों की पुस्तक में लिखती हैं कि “इस वर्ष मेरे इलाज में करीब एक दर्जन ऐसे बच्चों की जो बिलकुल दुबले हो रहे थे, जिनकी चमड़ी लटक रही थी और हड्डियाँ टेढ़ी पड़ गई थीं जाँच करने पर पता लगा कि इन्हें धूप से वंचित रखा गया है। मैंने उन्हें सलाह दी कि प्रातःकाल एक घण्टे तक इन्हें नंगे बदन धूप में टहलाया जाय और खुली हवा में उन्हें घूमने फिरने दिया जाय। इस उपाय से उनकी तन्दुरुस्ती दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी और कुछ ही दिनों में बिलकुल स्वस्थ हो गये।” मियो अस्पताल के सिविल सर्जन एफ . प्रिवेल्ड ने विवरण पुस्तक में अपना अनुभव लिखते हुए सिद्ध किया है कि “सूरज की धूप का अगर ठीक तौर से इस्तेमाल किया जाय तो सेहत दुरुस्त रह सकती है और अगर किसी किस्म की बीमारी हो जाय तो वह भी धूप के जरिये दूर हो सकती है।” प्रसिद्ध दार्शनिक न्योची का मत है कि - “जब तक दुनिया में सूरज मौजूद है तब तक लोग व्यर्थ ही दवाओं की तलाश में भटकते हैं। उन्हें चाहिए कि इस शक्ति सौंदर्य और स्वास्थ्य के केन्द्र सूर्य की ओर देखें और उसकी सहायता से अपनी असली अवस्था को प्राप्त करें।”

भारतवासी भगवान सूर्य के इस अद्भुत रहस्य से अपरिचित नहीं हैं। गुरु लोग बालकों को अपराध करने पर धूप में खड़ा रहने का दण्ड देते थे। योगी लोग धूप में तप करते थे। यह करने से पूर्व सूर्य की रोगनाशक शक्ति के बारे में विचार कर लिया गया था। सूर्य उपासना से कुष्ठ रोग नष्ट हो जाने और सोवरण काया हो जाने की बात घर-घर में प्रचलित है और उस पर विश्वास किया जाता है।


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