दानी से (कविता)

October 1940

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(मास्टर उमादत्त सारस्वत कविरत्न, बिसवाँ)

क्या अद्भुत दान कहानी है!
तू दानी है! तू दानी है!!

शुचि तरुवों को फल-दान किया;
अग-जलनिधि को जल-दान किया;
जग को विवेक-बल दान किया;
क्या छोड़ा जब थल दान किया?
क्या भंग दान की छानी है! तू दानी है! तू दानी है!!

शशि को प्रकाश का दान किया;
रवि को प्रदीप्त दे, मान दिया;
कोयल को अनुपम तान दिया;
नदियों को ‘कल-कल’ गान दिया;
तू दानीवर लासानी है! तू दानी है! तू दानी है!!

जननी को पालन-शक्ति दिया;
जो मिटे न वह अनुरक्ति दिया;
भक्तों को तूने भक्ति दिया;
योगी को योग विरक्ति दिया;
तुझ से ही राजा-रानी है! तू दानी है! तू दानी है!!

***


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