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October 1940

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चंचल लक्ष्मी और नश्वर सुखों को समेटने के लिये तुम जितना परिश्रम करते हो यदि उसका सौवाँ भाग श्रम भी परमार्थ संचय में करते तो अविचल धन का सच्चा खजाना इकट्ठा कर लेते।

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जिस विद्या से लोग जीवन संग्राम में शक्तिमान नहीं होते, जिस विद्या से मनुष्य के चरित्र का विकास नहीं होता, और जिस विद्या से परोपकार प्रेमी तथा पराक्रमी नहीं बनते, उसका नाम विद्या नहीं है।


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