(लेखक- प्रो. धीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती, बी.एस.सी.)
गत आठ अंकों में मैस्मरेजम विज्ञान और उसका महत्व अच्छी तरह समझ चुका हूँ। पिछले दो अंकों से उन्हें करने की क्रिया भी बताई जा रही है। अब तक के अभ्यास के आधार पर साधक किसी व्यक्ति को निद्रित कर सकते हैं। यह निद्रा हर एक आदमी को नहीं आ सकती। कई की मनोभूमि इतनी शुष्क और कठोर होती है कि वह अपने निमित्त इस में से कुछ ग्रहण नहीं करते। जिनका उद्दण्ड प्राण सूखे बबूल की तरह अकड़े रहने का आदी हो गया है और किसी के आगे झुकना नहीं चाहता वह आसानी से प्रभावित नहीं किया जा सकता। साधारण अभ्यासियों के लिये तो वह प्रायः असम्भव ही है विशेष शक्ति सम्पन्न योगी उन्हें विशेष क्रियाओं से ही झुका सकते हैं।
जिन साधकों ने हमारे बताये हुए क्रम से अभ्यास किया है उनके लिये हमारी सलाह है कि अपने प्रयोग के लिये आरम्भ में केवल उन्हीं व्यक्तियों को चुनो जो तुम्हारे प्रति नम्र हों जिनके मन में तुम्हारे लिये आदर हो।
किसी को अपना अभ्यास बढ़ाने का साधन मात्र मत बनाओ। यह तो दूसरों की गरदन पर तलवार चलाना सीखने के समान हुआ हम ऐसा रीति विरुद्ध काम करने को किसी को सलाह नहीं दे सकते। किसी को बल पूर्वक संज्ञाहीन करो, उसे उसे मृतक की दशा में पड़ा रहने दो और फिर उसे मनमानी देर कैद रख कर छोड़ो क्या यह उचित है? कभी कभी तो नौसिखिया अभ्यासी अपने पात्र को खतरे में डाल देता है और ऐसी स्थिति में ले पहुँचता है जहाँ जान जोखिम हो सकती है। डूबे हुए आदमी को पानी में से निकालने और तैरने का अभ्यास करने के लिये यदि तुम किसी भोले-भाले अजनबी आदमी को नदी में ले जाकर डुबाओ और फिर उसे निकालने का अभ्यास करो तो यह बुरी बात है तुम्हारा अभ्यास नया है तैरना अभी आता ही कितना है? यदि डूबे हुए को न निकाल सके या कहीं पट्टी भूलकर उसे गड्ढ़े में पटक बैठे तो एक पाप कर बैठोगे। यदि कोई दुर्घटना न घटे तो भी यह खेल उस व्यक्ति के पक्ष में अहित कर है जिसने अपने को तुम्हारे सुपुर्द कर दिया है। अनाड़ी वैद्य जब किसी सीधे मरीज के साथ अपना अनुभव बढ़ाने के लिये उसकी जान के साथ खिलवाड़ करता है तब क्या तुम उसे बुरा नहीं कहते?
संज्ञाहीन करके किसी व्यक्ति का तमाशा बनाना तो और भी बुरा है। यह तो उन मुड़चिरे भिखारियों के योग्य है जो अपने जिस्म में चाकू मार कर खून निकालते हैं और पैसे माँगते हैं या फिर यह बात उन्हें शोभा देती है जो किसी मूक प्राणी को हथियारों से छेदते हैं और उसके चिल्लाने में एक बड़ा मनोरंजक अनुभव करते हैं। निद्रित व्यक्ति को नीम के कडुए पत्ते खिला कर उससे मिठाई स्वीकार करवाते रहो तो खूब तमाशा होगा पर उस व्यक्ति पर क्या बीतेगी इसे भी तुम्हें जानना चाहिये। नीम का गुण वही रहेगा और पेट में जाकर उपद्रव खड़े करेगा। निद्रित का साधारण ज्ञान उसे कडुआ अनुभव कराना चाहता है किन्तु तुम्हारा प्राण उसकी छाती पर चढ़ बैठता है और उठने नहीं देता अपनी मनमानी से उसके मुँह में से कडुए को मीठा कहलवाते हो। इस बलात्कार का उस पर वैसा ही असर होता है जैसा क्लोरोफार्म सुँघा कर किसी को खूब पीटा जाय। बेहोशी के कारण उस वक्त तो तुम्हारा कुछ प्रतिरोध न कर सकेगा पर जब सचेत होगा तो अपने अंगों में वेदना का अनुभव करेगा और उस पिटाई से जो शारीरिक क्षति हुई है उसका दुख भोगेगा।
मैस्मरेजम द्वारा तमाशे दिखाना कई दृष्टियों से महंगा है। तमाशा सिर्फ इतना हो सकता है कि जो शारीरिक या मानसिक कार्य तुम अपने शरीर या बुद्धि से कर सकते हो उसी को दूसरे व्यक्ति के शरीर से करवा लो। क्या यह भी कोई तमाशा हुआ? मैं झूठ बोल सकता हूँ उसे खुद न बोल कर दूसरे से बुलवाओ तो इसमें क्या आश्चर्य हुआ? एक बात को मैं जानता हूँ उसी को किसी दूसरे को बता कर उससे कहलवाऊँ तो इसमें हैरत की क्या बात है? इस जमाने में बिलकुल ही जड़ बुद्धि मूढ़ों को छोड़कर शेष सब लोग यह मानते हैं कि प्राण की अद्भुत शक्ति है और वह एक शरीर में आ जा सकती है उसे प्रभावित कर सकती है। फिर बात सिर्फ इतनी सी रह जाती है कि आप अपने मन की बात दूसरे को बताने में उस शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
तमाशे में तुम्हारी शक्ति का दुरुपयोग न होता हो सो बात नहीं है। खेल खतम होने के बाद तुम देखोगे कि तुमने अपना बहुत सा प्राण फेंक दिया है, फलस्वरूप तुम्हारा शरीर एक प्रकार की बेचैनी अनुभव कर रहा है। इस प्रकार का अपव्यय हस्त मैथुन की तरह भयंकर, हानिप्रद और मूर्खतापूर्ण है।
इतना लिख जाने का तात्पर्य यह है कि हमारे अनुयायी तमाशे की तरह इसका जरा भी उपयोग न करें। वे इस महान शक्ति को यदि दूसरों पर प्रयोग करना चाहें तो उनकी शारीरिक एवं मानसिक उन्नति के लिये करें। मैस्मरेजम शक्ति से दूसरों के भयंकर रोग दूर हो सकते हैं, उनका गया गुजरा स्वास्थ्य फिर से वापिस लौट सकता है, मुर्दा नसों में नया रक्त संचार हो सकता है। जिनका मस्तिष्क मानसिक विकारों से भर रहा है। बुद्धि स्थूल, मोटी और कठोर है दिमाग सही काम नहीं करता, मन में कुसंस्कार जम गये हैं, बुरी आदतें पड़ गई हैं या विचारधारा उलटी दिशा में बह रही है तो वह इस प्राण शक्ति से सुधारी जा सकती है और उपरोक्त कठिनाइयों को हल किया जा सकता है। अन्य कामों में अपनी आत्मविद्युत से दूसरों को प्रभावित किया जा सकता है। इतने महत्वपूर्ण कार्य क्या उस घृणित तमाशे से भी कम आश्चर्यजनक हैं?
एक बार हम पुनः इन पंक्तियों द्वारा अभ्यासियों को उपदेश करते हैं कि वे भूल कर भी इस विद्या का तमाशा किसी को न दिखावें केवल लोक हित के कार्यों में इसका उपयोग करें।