दुख-दर्द के आत्मोद्गार

October 1940

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(अनुवादक : श्री भदन्त आनन्द कौसल्यायन)

(1)

मेरा नाम है दुख-दर्द। प्रायः लोग मुझसे घृणा करते हैं। मुझे निर्दयी समझते हैं, और समझते हैं हृदय-हीन। वे मुझे रिश्वत देकर तथा और भी जैसे तैसे हो, ठगने की कोशिश करते हैं। वे मुझे धोखा देना चाहते हैं। वे मुझे मार डालना चाहते हैं।

वे बेहोशी की दवाएँ खाते हैं वे पेटेंट दवाइयों से अपने पेट भरते हैं। वे डॉक्टर और उसकी विषैली दवाइयों का स्वागत करते हैं वे ज्योतिषियों तथा मन्त्र-जाप करने-कराने वालों की शरण जाते हैं।

वे ढोल-ढमाके बजवाते हैं। वे यज्ञ करते-कराते हैं वे देवों की क्रोधाग्नि को शान्त करने का प्रयत्न करते हैं। वे अनेक प्रकार की प्रार्थनाएँ तथा याचनाएँ करते हैं।

उन प्रार्थनाओं का उद्देश्य अपने अन्दर के रोग को दूर करना नहीं होता, अपनी सफाई करना नहीं होता। उसका उद्देश्य होता है उस दर्द को दूर करना जो उन्हें कष्ट देता है, उस मित्र की हत्या कर डालना जो उन्हें सचेत करता है।

(2)

हाँ, मैं दुःख हूँ, मैं दर्द हूँ। जिस दिन तुम मेरा रहस्य समझोगे उस दिन जानोगे कि मैं जब आता हूँ तब तुम्हें सहायता देने के लिये आता हूँ, सचेत करने के लिये तथा मार्ग दिखाने के लिये आता हूँ।

जब तुम मेरे प्रेम-पूर्ण स्वभाव को जानोगे, तब समझोगे कि मैं कैसे तुम्हें आरम्भ में जरा सा कष्ट देकर सचेत करता हूँ- इसी आशा से कि याद दिला दिये जाने पर तुम मेरी बात को सुनोगे और मानोगे।

मुझे पूर्ण निश्चय है कि जब तुम मुझे पहचानोगे तब तुम प्रसन्नता से मेरा स्वागत करोगे। मुझे अपना मित्र समझोगे और मुझसे मेरा सन्देश पूछोगे!

(3)

मेरा सन्देश क्या है? मेरे आगमन का कारण क्या है? मैं तुम्हें किस खतरे से सचेत करना चाहता हूँ? मैं तुम्हें कौनसा रहस्य सिखाना चाहता हूँ?- वह यह है-

जब तुम प्रकृति के अनुसार जीवन व्यतीत करोगे, जिसकी दया, जिसकी करुणा, जिसकी बुद्धि तथा जिसकी शुभेच्छा इसी बात में है कि हम जीयें और काम करें..................

जब तुम उन टेढ़े रास्तों से चलना छोड़ दोगे, जो तुम्हें अनेक कुटेवों की ओर ले जाते हैं, जब तुम अपने शरीर को मजबूत, साफ, पवित्र और फुर्तीला रखोगे .................

जब तुम इससे यथोचित काम लोगे; जब तुम इसे यथोचित हवा, भोजन और पानी दोगे, जिससे सभी अंगों की रचना हो, सभी क्रियायें ठीक ठीक हों................

जब तुम अपने मन और आत्मा को पवित्र और ऊँचे-ऊँचे विचारों से भर दोगे। जब तुम अपने दिल से भय, घृणा तथा ईर्ष्या को दूर भगा दोगे। जब तुम्हारा दिल मैत्री से भरा होगा.................

जब इन सब बातों को, जिन्हें मैंने तुम्हें बताया है, तुम समझोगे, उनके अनुसार चलोगे, तब मैं तुम्हें छोड़ कर चला जाऊँगा, तब दुःख दर्द की आवश्यकता न रहेगी।

(4)

यही वह सत्य सन्देश है जो मैं तुम्हारे दिये लाया हूँ। मैं तुम्हें जो कष्ट देता हूँ वह तुम्हें सचेत कर लेने के लिए देता हूँ। तुम्हें हानि पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि तुम्हारा हित करने के लिए। मैं तुम्हें मार्ग दिखाने तथा शिक्षा देने के लिए आता हूँ।

मैं एक ‘दिव्य-दूत’ हूँ। तुम्हें सदाचार का रास्ता बताने के लिए, मनुष्यत्व की शिक्षा देने के लिये; लोगों के मन में पवित्र भावनाओं का संचार करने के लिए मैं आया हूँ।

मुझसे प्रेम करो। मुझ पर विश्वास करो। मेरे सन्देश को सुनो। मैं तुम्हें शान्ति और सुख दूँगा।

(जीवन सखा)


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