कीड़ों की आत्म विद्युत

October 1940

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(ले.- पद्मचन्द जी गर्ग ‘पद्म’ इन्दौर)

संसार के सभी विद्वान, डॉक्टर, अन्वेषक, वैज्ञानिक, योगी, आत्म-तत्त्ववेत्ता यह स्वीकार करते हैं कि मनुष्य अनन्त शक्ति का भण्डार है। उसके अन्दर जो महान तत्व छिपे पड़े हैं उनका थोड़ा बहुत परिचय जब कभी किसी के पास देख पड़ता है तो दांतों तले उँगली दबानी पड़ती है- आश्चर्य की सीमा नहीं रहती। सरकसों के तमाशे में मनुष्य शरीर गेंद या कठपुतली दिखाई देता है। जादूगर और मोहनी विद्या जानने वाले अपने करतब दिखा कर हैरानी में डाल देते हैं। अभी किसी पहुँचे हुए सिद्ध महात्मा के निकट रहने का जिन्हें सौभाग्य मिला है वे तो और भी विचित्र स्थिति में पड़ जाते हैं और समझ नहीं पाते कि आखिर यह मनुष्य शरीर है या जादू का पिटारा।

ऐसी विचित्र शक्ति मनुष्य में ही हो सो बात नहीं है। प्रकृति ने उस शक्ति को छोटे जानवरों और कीड़े, मकोड़ों में भी दिया है। जिसको देखकर और आश्चर्य होता है, यदि शरीर के हिसाब से कीड़े मकोड़े और मनुष्य शरीर की दिव्य शक्तियों का मुकाबला किया जाय तो मालूम होता है मनुष्य के हिस्से में कम आया है।

आजकल एक धुरन्धर विद्वान डॉक्टर आर. डबल्यू.जी. हिंगस्टन कीड़े मकोड़ों के सम्बन्ध में गहरे अन्वेषण कर रहे हैं। आपकी खोज की जो विचित्र बातें अब तक मालूम हो सकी हैं वे बड़ी कौतूहलवर्द्धक हैं। उन्होंने पता लगाया है कि ‘केलन’ नामक मकोड़े में इतनी विद्युत शक्ति होती है कि वह उससे दूसरे कीड़ों की जान तक ले सकता है। उक्त डॉक्टर साहब ने एक काँच के बक्स में उस कीड़े को बन्द किया और उससे लड़ने के लिए जहरीले डंक वाला एक ततैया भी उसी में छोड़ दिया। अब उस मकोड़े और ततैये की लड़ाई शुरू हुई। घंटों युद्ध होता रहा। जब मकोड़ा हारने लगा तो उसने अपना सम्मोहनास्त्र संभाला। एक कोने में हटकर वह कुछ देर के लिये चुप खड़ा हो गया और एक गहरी साँस के साथ ऐसा विद्युत प्रवाह छोड़ा कि ततैया लड़खड़ा कर गिर पड़ा और तुरन्त ही मर गया। डॉक्टर साहब ने ततैये के मृत शरीर की परीक्षा की तो मालूम हुआ कि उसकी मृत्यु बिजली का झटका लगने के कारण हुई है। अधिक अनुसंधान करने पर उन्होंने साबित किया कि उस जाति के मकोड़ों के शरीर में इतनी बिजली होती है जितनी से एक छोटा बल्ब जल सके।

हिन्दू धर्मानुयायी प्रायः छिपकली को अछूत मानते हैं और उसका शरीर पर गिरना अपशकुन मानते हैं। डॉक्टर ए. कौर्बन ने सिद्ध किया है कि छिपकली एक चलती फिरती बैटरी है। उसकी दुम में जितना झटका होता है उतना छोटी बैटरी में नहीं होता। भारतीय वैज्ञानिक और प्रसिद्ध यन्त्रकारी श्री हंसराज वायरलैस ने एक बार बेतार का तार तैयार करने में छिपकली के शरीर की बिजली का उपयोग किया था। छिपकली की घातक बिजली का आदमी के शरीर पर जो हानिकर असर होता है, उसी को देखते हुए हिन्दू लोग छिपकली छूना बुरा समझते हैं।

एक खोजी को चित्रकूट की पहाड़ियों में इस प्रकार के सर्प मिले जो स्वयं शिकार की तलाश में कहीं नहीं जाते थे और पीले रंग के छोटे मेंढक अपने आप उसका भोजन बनने के लिये चले आते थे। अन्वेषक ने बहुत छानबीन की कि यहाँ पास में कोई तालाब आदि मेंढ़कों के रहने योग्य कोई स्थान भी नहीं है फिर यह इतनी अधिक संख्या में कहाँ से और किस प्रकार चले आते हैं? वह स्वयं जब इसका कुछ संतोषजनक निर्णय न कर सका तो बंगाल की विज्ञान परिषद् को इसकी सूचना दी। कलकत्ता की वैज्ञानिक सभा द्वारा दो वर्ष तक इसका अनुसंधान किया गया और सिद्ध हुआ कि इन सर्पों के शरीर में एक प्रकार की चुम्बकीय विद्युत है और इन मेंढ़कों की देह में लोहतत्व-प्रचुर परिमाण में है इसलिये वे इच्छा न रहते हुए भी आस-पास से खिंचकर साँपों तक चले आते हैं और उनका भोजन बन जाते हैं।

अमेरिका के कन्सास नगर निवासी एक धनपति मि. हर्ट को शिकार का बड़ा शौक था। एक दिन वे दूर के जंगल में शिकार खेलने गये। जब वे थक गये तो एक सघन स्थान पर घास पर पड़े रहे। कुछ देर में उनका दाहिना हाथ काँपने लगा और दिल की धड़कन बढ़ गई। मि. हर्ट चौंके कि बात क्या है? उन्होंने हाथ उठाया तो फिर कुछ न था। अब तो उन्हें और भी अचम्भा हुआ और फिर उसी स्थान पर हाथ रखा। हाथ रखते ही फिर हाथ काँपने लगा। मि. हर्ट उठ बैठे और गम्भीरतापूर्वक वहाँ की चीजों की खोज में लगे। एक एक करके उन्होंने वहाँ की घास, तिनके, जमीन, कंकड़ियाँ छुए पर कोई खास बात न मालूम हुई, आखिरी बार जब उन्होंने एक पीले रंग के कीड़े को छुआ तो उन्हें फिर झटका लगा। आश्चर्य के साथ वे उस कीड़े को अपने नगर की विज्ञानशाला में ले गये। दूसरे वर्ष वैज्ञानिकों के अखबार में यह समाचार छपा कि टर्न नामक पीला कीड़ा मुँह से भोजन नहीं करता, वरन् अपनी आकर्षक विद्युत द्वारा दूसरे जीवित प्राणियों के शरीर में से बिना किसी प्रकार के जख्म किये खाद्य पदार्थ खींच लेता है। वह इतनी चीजें एक साथ खींच सकता है जो उसके लिये सत्रह दिन तक पर्याप्त होती हैं।

अभी पिछले साल अफ्रीका के द्वीप समूहों में एक माँसाहारी तितली पाई गई है। यह अपनी रुचि का शिकार चुनती है और उसके शरीर पर चुपके से जा बैठती है। क्षणभर में ही उसका शिकार मूर्छित हो जाता है, जब भर पेट रक्त पीकर वह उड़ जाती है तब प्रायः दो घण्टे बाद उस जीव को होश आता है और दूसरे दिन चलने फिरने लायक होता है।

खद्योत को रात के समय अपना प्रकाश चमकाते हुए सब लोगों ने देखा है। केंचुए मल रूप में अपने शरीर से ऐसी फास्फोरस मिली हुई शक्ति निकालते हैं जो बरसात के दिनों में रात को जलते अंगारों की तरह दीख पड़ती है। कुर्री कीड़े से लड़के अक्सर खेल करते हैं, उसके रास्ते के आसपास छोटे तिनके लोहे की सुइयाँ आदि बिछा देते हैं, कुर्री का शरीर इन सब चीजों को खींच खींच कर अपने ऊपर चिपकाता चलता है। कुछ ही देर में उसके शरीर से इतना बोझ उस पर लद जाता है। तब लड़के खूब हँसते हैं। तिनकों को खींच खींच कर लड़के छुड़ा देते हैं और फिर उसी प्रकार की पुनरावृत्ति करके कुर्री को गधा बनाते हैं।

प्रकाश, शब्द, ऋतु परिवर्तन आदि की जो सूक्ष्म लहरें बहती रहती हैं उन्हें छोटे कीड़े बड़ी आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। सूँघ कर जितनी तेजी से वे अपनी रुचि के अनुकूल प्रतिकूल चीजों का पता लगा लेते हैं उतना आदमी नहीं कर सकता। कई कीड़ों में अद्भुत शक्ति होती है। खोपड़ा नामक काला मकोड़ा चार मन भारी पत्थर को इतना उठा लेता है जितने में हो कर वह निकल सके। दीमक एक दिन में इतना गड्ढा खोद लेती है जितना एक जवान मजदूर कुदाली लेकर नहीं खोद सकता।

शरीर की लम्बाई चौड़ाई और बोझा के आधार पर यदि मनुष्य और कीड़ों की शक्ति का हिसाब फैलाया जाय तो मालूम पड़ता है कि प्रकृति ने मनुष्य की अपेक्षा मकोड़ों को 300 से लेकर 7500 गुणी तक अधिक विद्युत शक्ति दी है।


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