एडिसन और गाँधी

October 1940

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(ले. श्री काका कालेलकर)

ग्रामोफोन की वजह से एडिसन का नाम सारी दुनिया में मशहूर हो गया है। रेल की मुसाफिरी करने वाले लोग जानते हैं कि हर एक डब्बे की छत के किनारे एक धोखे की जंजीर होती है, जिसे खींचते ही रेल गाड़ी रुक जाती है और गार्ड दौड़ कर आता है और दरियाफ्त करता है कि ‘किसने जंजीर खींची?’ गाड़ी क्यों रोकी गई? जंजीर खींच कर गाड़ी रोकने की तरकीब भी उसी अमेरिकन महानुभाव के उर्वरा दिमाग की उपज है, जिसका नाम एडिसन था।

एडिसन ने जब यह आविष्कार किया, तब वह लक्षाधीश नहीं हुआ था। अपनी गरीबी लिबास पहन कर वह एक रेलवे कम्पनी के डायरेक्टर के पास गया और उससे कहने लगा, ‘मैंने हवा के दबाव से गाड़ी के पहिये रखने की एक तरकीब का आविष्कार किया है। अगर आप खरीदना चाहें, तो मैं अपना आविष्कार आपको बेचने के लिए तैयार हूँ।’

उसके पहले ‘वैक्यूम ब्रेक’ का दुनिया में किसी को पता नहीं था। रेलवे कम्पनी के डायरेक्टर कुछ अश्रद्धा से बोल उठे, “अजी, क्या आपका यह मतलब है कि मैं इस बात पर विश्वास करूं कि बीस या तीस डब्बे लेकर चालीस मील के प्रचण्ड वेग से दौड़ाने वाली रेल गाड़ी आप केवल हवा की मदद से रोक सकते हैं?” ऐडिसन ने नम्रता से किन्तु दृढ़ता से कहा, “जी, हाँ”

अब डायरेक्टर साहब अधिक धैर्य नहीं रख सके। हाथ में टोपी लेकर वे अपने आसन से उठ खड़े हुए। उन्होंने तिरस्कार से एडिसन को नख-शिखान्त देखा और कहने लगे, “प्रचण्ड वेग वाली ट्रेन को सिर्फ हवा से रोकने की आप बातें करते हैं और उम्मीद करते हैं कि मैं आपकी बात पर विश्वास करूं? आप यहाँ से तशरीफ ले जाइये। पागलों के साथ बातें करने को मुझे फुरसत नहीं है।”

एडिसन चुपचाप वहाँ से चला गया। उसने बड़े विज्ञानाचार्यों को अपने आविष्कार का स्वरूप समझाया। उन्होंने सरकार द्वारा एक कानून बनवाया कि हजारों लोगों की जाने जिस साधन से बच सकती हैं, उस तरकीब को हर एक ट्रेन में बाकायदा स्थान देना चाहिये। जिस ट्रेन में वैक्यूम ब्रेक न हो, वह ट्रेन अमेरिका में कहीं भी नहीं चल सकती।

एडिसन ने अपना ‘पेटण्ट’ तो ले ही रखा था। अमेरिका में रेलवे कम्पनियाँ बहुत हैं। हर एक कम्पनी के डाइरेक्टर ने एडिसन के पास जाकर स्वामित्व (रायल्टी) का दाम देकर अपनी अपनी ट्रेनों में वैक्यूम ब्रेक्स लगवा लिये। अब हमारे पूर्वोक्त डायरेक्टर महाशय की बारी आई। अगर वे वैक्यूम ब्रेक्स नहीं लगवाते, तो कानून के अनुसार उनकी ट्रेनें चल ही नहीं सकती थी और उनकी कम्पनी का दिवाला निकल जाता। वे एडिसन के पास गये और कहने लगे कि मैं भी आपको आपकी रायल्टी देकर आपका वैक्यूम ब्रेक लगवाना चाहता हूँ।

एडिसन को करारा और तीक्ष्ण विनोद सूझा। उन्होंने हाथ में अपनी टोपी ले ली, आसन से उठ कर खड़े हुए और जवाब दिया, “ पागलों के साथ बातचीत करने के लिए मुझे अवकाश कहाँ है?”

जब गान्धी जी कहते हैं कि प्रचण्ड टैंक, किलों के जैसे जंगी जहाज, आकाश से गिरने वाले बम और वायुयान आदि आसुरी और राक्षसी करतब बताने वाले यूरोप के बड़े अहिरावणों, महिरावणों का मुकाबला हम केवल अहिंसा से करेंगे, तब चर्म- चक्षु से देखने वाली दुनिया का धैर्य टूट जाता है। वह मन में कहती है, ‘इस उदात्त पागल की बात पर विश्वास भी कैसे किया जाय? कहाँ हिटलर, चर्चिल, स्टैलिन, मुसोलनी और रुजवेल्ट की तैयारी, कहाँ जापान और चीन की तैयारी और कहाँ इस अहिंसावादी महात्मा की सत्याग्रह की बात।

एडिसन को किसी अनजान डाइरेक्टर ने ‘तशरीफ ले जाने’ को कहा। यहाँ महात्मा जी का अनादर उस ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से हो रहा है, जिसे वे आज करीब पचास वर्ष से नेकी और इन्साफ का रास्ता बताते आये हैं। और देव की लीला भी कैसी है कि गाँधी जी को इस काँग्रेस ने भी मुक्त किया था, जिसकी सेवा गाँधी ने अनन्य निष्ठा से आज पच्चीस बरस से लगातार की है। एडिसन चला गया, लेकिन उसे फिर बुलाना पड़ा। जैसे वैक्यूम ब्रेक आज दुनिया में सार्वभौम हो गया है, उसी तरह गाँधी जी का अहिंसक सत्याग्रह भी विश्व विजयी होने वाला है, क्योंकि वही एकमात्र विश्व-कल्याणकारी तत्व है।

-सर्वोदय


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