समुद्र के प्रेत

October 1940

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(कैप्टन जे.डी. क्रेग)

मैंने एक रूसी गोताखोर युवक से जो पिछले महायुद्ध के समय ब्रिटिश नौ-सेना में काम कर चुका था, प्रेतों के सम्बन्ध में कुछ विचित्र बातें सुनीं। ओडेसा के बारे में यह बहुत कुछ जानता था। उसने उस समय का जिक्र किया जब रूस में क्रान्ति हुई थी और सारे रूस में आतंक फैल रहा था। हजारों व्यक्ति तलवार के घाट उतारे जा रहे थे। रूस में केरेन्स्की की सरकार का खात्मा हो चुका था। ओडेसा नगर में परस्पर विरोधी दलों के बीच झगड़ा था, लोगों में उत्तेजना फैल रही थी। लोग आविष्कार के लिये एक दूसरे की हत्या कर रहे थे।

इसी जमाने में जर्मनी व इंग्लैंड की विराम संधि हो जाने पर एक ब्रिटिश विध्वंसक जहाज काला सागर में गया और उसने ओडेसा की खाड़ी में लंगर डाला। जहाज का एक लंगर खो गया और उसका पता लगाने के लिए एक गोताखोर समुद्र के नीचे उतरा। लेकिन तह तक पहुँचने के पूर्व ही वह बाहर निकाले जाने के लिये संकेत देने लगा। उसे फौरन पानी के बाहर निकाल कर जहाज पर लाया गया। लेकिन कुछ बताने से पूर्व ही वह बेहोश हो गया। उसके चेहरे को देखने से यह प्रतीत होता था कि जैसे वह कोई भयानक चीज देख कर अत्यधिक आतंकित हो उठा हो। इधर लंगर का पता लगाना भी जरूरी था। इसलिए जहाज के कप्तान ने गोता लगाने के लिए आदेश किया। एक अफसर इसके लिये तैयार हुआ। उसे जहाज से पानी में उतार दिया गया।

वह अफसर पानी के भीतर लंगर की तलाश में व्यस्त हो रहा था कि इसी बीच में एकाएक उसे जीवन को खतरे में डाल देने वाली बात दिखाई दी।

उसने देखा कि आदमियों की एक कतार उसकी तरफ बढ़ रही है- उसे जान पड़ा कि मुर्दों का झुण्ड उससे मिलने के लिए आ रहा है। उसमें से कुछ मुर्दों के शरीर पर फटी हुई फौजी पोशाक थी व कुछ नागरिकों के से वस्त्र पहने थे। उनकी आँखें मछली की आँखों की भाँति चमक रहीं थीं और उनके मुख खुले हुए थे। कुछ के चेहरे पर मौन हंसी झलक रही थी ध्यानपूर्वक देखने से ऐसा जान पड़ता था कि वे अब शोर मचाने वाले ही हैं। वे धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ रहे थे।

एक दृश्य देखकर मारे भय के उस अफसर का रक्त जम रहा था। इसी बीच में एक और भी बात हुई जिससे यह जान पड़ा कि उसका कलेजा बाहर निकल आवेगा। वे भयानक जीव एकाएक रुक गये, शरीर के चिथड़ों से उसकी नग्न बांहें और ऊपर उठ गई उन्होंने अपने हाथ बढ़ाये- उनके हंसते हुए चेहरों को देखकर ऐसा जान पड़ा कि जैसे वे उस अफसर का स्वागत कर रहे हैं। वे बहुत ही मोटे देख पड़ते थे। उनके शरीर का रंग चितकबरा और मन में घृणा उत्पन्न करने वाला था। उनमें से कई एक डाड़ी रखे हुए थे, लेकिन अन्य बिना डाड़ी के भी थे और वे अपने हाथ फैलाए हुए उसकी ओर बढ़ रहे थे।

इधर ऊपर जहाज के लोगों को मालूम हुआ कि जिस रस्से से वह अफसर पानी के अन्दर लटकाया गया है, वह हिल रहा है। इस लिये उन्हें लोगों ने फौरन उसे पानी से बाहर निकाल लिया जहाज पर आ जाने के बाद उस अफसर के मुँह से नकाब हटाया गया तो लोगों ने देखा वह बेहोश है। डाक्टरों ने उपचार शुरू किया। होश में आने पर उसने उनसे सारा किस्सा सुनाया।

उस ब्रिटिश माझी ने जो कुछ बताया था उससे मेरी यह निश्चित धारणा थी कि इस पहेली को हल किया जा सकता है। आखिरकार अमेरिका के एक वैज्ञानिक डॉक्टर ने इस रहस्य का उद्घाटन किया कुछ समय हुआ उस डॉक्टर के साथ परस्पर बात करने का अवसर मुझे मिला था। उस डॉक्टर ने कहा- ‘मैं महायुद्ध के समय उड़ीसा के एक अस्पताल में ही था। मेरे स्टाफ का एक रूसी डॉक्टर, जिसका नाम सोकोराव था आतंकवादियों द्वारा पकड़ लिया गया। उसकी तलाश करने में वोलशेविकों ने सहायता पहुँचाई। हमें पता चला कि उस डॉक्टर की आतंकवादियों ने हत्या कर डाली और उसकी लाश को उड़ीसा की खाड़ी में फेंक दिया है। हमने उसकी लाश का पता लगाने वाले को इनाम की घोषणा की। गोताखोर लाग उड़ीसा की खाड़ी के नीचे उतरे लेकिन उनमें से कुछ तो पागल होकर निकले और दो एक मर भी गये। उसके बाद यहाँ पर एक ब्रिटिश विध्वंसक जहाज गया। जहाज का लंगर खो गया था, जिसका पता लगाने के लिए एक ब्रिटिश अफसर पानी में उतरा उसे लंगर का तो पता नहीं मिला, लेकिन उसने एक भयानक दृश्य अवश्य ही देखा, जिसका उस पर बहुत बुरा असर पड़ा। उसने वहाँ का सारा हाल बताया कि इस समुद्र के नीचे मुर्दे सैनिकों की कतार चल फिर रही हैं। उसके साथियों ने समझा कि यह पागल हो गया है।’

आगे डॉक्टर ने कहना जारी रखा- ‘वोलशेविकों ने उड़ीसा में पहुँचने से पूर्व ही आतंकवादियों ने कई दर्जन के दर्जन व्यक्तियों को, बदला लेने की गरज से, जेलों में ठूँस दिया गया कैदियों से जेल भर उठे। कैदियों के पैरों में लोहे ही जंजीरें डाल दी गई थीं, ताकि वे भाग न सकें वोलशेविक सेनाओं के पहुँचने पर आतंकवादियों के पाँव उखड़ गये। लेकिन भागने से पहले उन्होंने बहुत से कैदियों को गोली से उड़ा दिया, क्योंकि उन्हें भय था कि कहीं वे लोग आक्रमणकारियों से मिल न जायं। बाद में उनकी लाशों को उन आतंकवादियों ने उस खाड़ी में फेंक दिया। उन्हीं लाशों को पानी के अन्दर गोताखोरों ने देखा था। और अब उन लाशों ने किसी कारण विशेष से जीवितों की सी हरकतें करना शुरू कर दिया है।’

-संकलित


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