आत्म-विश्वास और सफलता

February 1965

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ईश्वर ने हमें अपनी सर्वोत्कृष्ट कृति के रूप से विनिर्मित किया है। वह अविश्वस्त एवं अप्रमाणिक नहीं हो सकता, इसलिए हमें अपने ऊपर विश्वास करना चाहिये। ईश्वर हमारे भीतर निवास करता है। जहाँ ईश्वर निवास करे, वहाँ दुर्बलता की बात क्यों सोची जानी चाहिए? जब छोटा-सा शस्त्र या पुलिस कर्मचारी साथ होता है, तो विश्वासपूर्वक निश्चिन्त रह सकना सम्भव हो जाता है, फिर जब कि असंख्य वज्रों से बढ़ कर शस्त्र और असंख्य सेनापतियों से भी अधिक सामर्थ्यवान् ईश्वर हमारे साथ है, तब किसी से डरने या आतंकित होने की आवश्यकता ही क्यों होनी चाहिए।

जो अपने ऊपर भरोसा करता है, उसी का दूसरे लोग भी भरोसा करते हैं। जो अपनी सहायता आप करता है, उसी की ईश्वर भी सहायता करता है। जिसने अपने हाथ पैर चलाना बन्द कर दिया, उसका डूबना निश्चित है। हो सकता है कि किसी निष्ठावान को भी कभी असफल होना पड़ा है पर संसार में आज तक जितने सफल हुए हैं, उनमें से प्रत्येक को आत्म विश्वासी बनकर ही आगे बढ़ना पड़ा है। हो सकता है किसी किसान की फसल मारी जाय, पर जिसे धान काटने का सौभाग्य मिला है, उनमें से प्रत्येक को बोने और सींचने की कठोर प्रक्रिया को अपनाना ही पड़ता है। आत्म-विश्वास शक्ति का स्रोत है। उसी के सहारे किसी के लिए आगे बढ़ना सम्भव हो सकता है। भाग्य का निर्माण ईश्वर नहीं, आत्म-विश्वास करता है। जो निष्ठापूर्वक पुरुषार्थ में संलग्न है और हार-जीत की चिन्ता न करते हुए आगे ही बढ़ता जाता है, उस आत्म-विश्वासी के लिए पर्वतों को भी रास्ता देना पड़ता है।

- ईश्वरचन्द्र विद्यासागर


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