जन-जन में उत्साह (Kavita)

February 1965

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आओ, हथकड़ियों से ये शिर फोड़-फाड़ उर जाग्रत कर दो,

जन-जन में उत्साह, अतुल बल पौरुष शौर्य धीरता धर दो,

टीका कर मस्तक पर वरदे। वर दो, भर दो बल कर-कर में,

गूँज उठे फिर देखो जयध्वनि भू-मंडल जल-थल अम्बर में

कहने को रह जाय जगत में नहीं हमारी व्यथा कहानी,

“कहने को मुँह नहीं हमारे, भला कहें क्या करुण कहानी।”

-सुधीन्द्र


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