विशुद्ध हृदय

February 1965

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जब हम विशुद्ध हृदय से प्राणिमात्र से स्वार्थ-पूर्ण अथवा कुत्सित लाभ उठाने का विचार त्याग देंगे, तो हम परमात्मा के इतने समीप पहुँच जायेंगे कि संसार के सारे पदार्थ सुन्दर दिखाई देने लगेंगे। पर हमने स्वयं ही अपने कुविचारों तथा कुकृत्यों द्वारा उस दैवी प्रवाह का मार्ग अवरुद्ध कर रखा है, जिसके प्राप्त हो जाने से हमारा आत्म विकास हो सकता है। प्रत्येक बुरा कर्म हमारी आँखों में पर्दा डाल देता है, जिसके कारण हम समाजिक जीवन में दूषित वातावरण पैदा करने में लग जाते हैं और परमात्मा की श्रेष्ठता से वंचित रह जाते हैं, क्योंकि प्रत्येक बुरा काम हमें ईश्वर से दूर ले जाता है। जब आप अपनी संकीर्णता का परित्याग कर देंगे तो आप देखेंगे कि परमात्मा हर दिल में समाया हुआ आपको मिलने के लिये खोज रहा है। आप कभी किसी के साथ अपने-पराये, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का भेद पूर्ण बर्ताव न करें। इस तरह आप के भीतर ही जो अनन्त आत्म-शक्ति का कोष भरा हुआ है, वह जाग जायगा। आप अपने अभिलाषित पदार्थों की प्राप्ति में समर्थता प्रतीत करने लगेंगे।

-स्वेट मार्डेन


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