उठ चेत और हो सावधान तू बहुत सो चुका है अब तक,
स्थिति न गिरी यह सुधरेगी चैतन्य न तू होगा जब तक,
निज सैन्य साज, संगठन बना, सेवा की सच्ची साध लिये,
तू कदम बढ़ाता जा अपने, एक नई लहर निर्बाध लिये,
निर्भय होकर बढ़ चल आगे, कर में लेकर अपना निशान
नव-युग का है यह नव-विहान, उठ शीघ्र प्राप्त कर दिव्यज्ञान।
-वासुदेव प्रसाद गुप्त