ज्योतिर्मय दिव्य-शक्ति का अवतरण

February 1965

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हमारे निज के जीवन विकास की आधार शिला गायत्री है। उसका पय-पान करके हमने अपना अध्यात्म शरीर परिपुष्ट किया है। जैसे लाभ और जो अनुभव हमें इस उपासना द्वारा उपलब्ध हुए हैं, उसी अनुभव से प्रेरित होकर हम अपने सभी स्वजन प्रिय जनों को समय-समय पर गायत्री उपासना की प्रेरणा देते रहे हैं। जिनने उस शिक्षा को अपना कर इस मार्ग पर कदम उठाये हैं, उनने भी उत्साहवर्धक और आशाजनक अनुभव ही प्राप्त किए हैं। लौकिक सफलताओं के लिए, अत्यन्त संकट और कष्टों की निवृत्ति के लिए जिनने भी इस अवलम्बन का आश्रय लिया है, उन्हें सन्तोषजनक प्रतिफल ही मिला है। ऐसे कोई विरले ही होंगे जिन्हें यह कहने का अवसर मिला है कि हमारी गायत्री उपासना व्यर्थ चली गई। जिनने आत्मकल्याण के उद्देश्य में निष्काम उपासना की है, उनके सन्तोष का तो कहना ही क्या है? वे अपने जीवन क्रम और स्तर में कायाकल्प जैसा परिवर्तन हुआ अनुभव करते हैं।

विभिन्न व्यक्तियों की आन्तरिक स्थिति के अनुभव पर उन्हें अलग-अलग प्रकार की साधनायें भी बताई गई हैं और जिन्होंने निष्ठा पूर्वक उन्हें अपनाए रखा है, उन्होंने आश्चर्य जनक परिणाम भी प्रत्यक्ष देखा है। कुछ नैष्ठिक उपासकों की पंचकोशी साधना गत तीन वर्ष से चल रही है। अन्नमय कोश, मनोमय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनन्दमय कोश, यह गायत्री माता के पाँच मुख हैं। इन पाँचों का अनावरण कैसे हो इसका योग शास्त्र में वर्णित विधान हम प्रतिवर्ष अक्टूबर मास के अंकों में छाप


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