हमारी चरित्र-भ्रष्टता कैसे मिटे?

February 1965

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बुराई, भ्रष्टाचार, अपराधों के सम्बन्ध में हमारी शिकायतें दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। प्रतिदिन एक बँधे हुए ढर्रे की तरह हम नित्य ही इस सम्बन्ध में टीका टिप्पणी करते हैं, तरह-तरह की आलोचनायें करते हैं। कभी सरकार को दोष देते हैं तो कभी प्रशासन व्यवस्था की छीछालेदार करते हैं। कभी किन्हीं व्यक्तियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। इस तरह की शिकायतें एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च-स्थिति के लोगों तक से भी सुनी जा सकती हैं। इनमें बहुत कुछ ठीक भी हो सकती हैं। लेकिन कभी हमने यह भी सोचा है कि इनके लिए हम स्वयं कितने जिम्मेदार हैं। हम भूल जाते है कि बहुत कुछ अपराध, बुराइयाँ हमारे व्यवहारिक जीवन में अपने ही प्रयत्नों का परिणाम हैं। हमारे अनीतिपूर्ण जीवन, सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उपेक्षा, सच्चाई के प्रति आँख मूँद कर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाने की प्रवृत्ति से ही बुराइयों को प्रोत्साहन मिलता है। यदि हम इनके लिए स्वयं को उत्तरदायी मानकर अपना सुधार करने में लगें, अपने कर्तव्यों को समझने लगें तो कोई सन्देह नहीं कि बुराइयाँ घटने लगें और एक दिन समाप्त भी हो जायें।

बुराइयों को मिटाने के लिए हमारा सर्व-प्रथम कर्तव्य है-हम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें, जिसे हम स्वयं अपने लिए न चाहते हों। भगवान मनु ने इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए अपनी प्रजा को बताया था- “आत्मनः प्रतिकूलिति परेषाँ न समाचरेत्” जिस बात को तुम अपने लिए नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिए मत करो।

हम नहीं चाहते कि कोई हमारा अपमान करे तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम किसी का अपमान न करें। इसी तरह विश्वासघात, छल, कपट, धोखादेही ही, उत्पीड़न, शोषण आदि बुराइयों का शिकार हम स्वयं नहीं होना चाहते तो हमारा भी धर्म है कि हम दूसरों के साथ ऐसा न करें। लेकिन खेद है कि जब कोई हमारे ऊपर अत्याचार करता है, तो हम बुराई, की सिद्धान्तों की दुहाई देते हैं और बचाव के लिए गुहार मचाते हैं। किन्तु जब हम स्वयं दूसरों के साथ ऐसा करते हैं, तब किसी के कुछ कहने सुनने पर भी हमारे कान पर जूँ तक नहीं रेंगती। और यही कारण है कि बुराइयाँ दिनों दिन बढ़ती जाती है। हम उनकी शिकायतें करने, आलोचना करने में ही अपना काम पूरा समझ लेते हैं।

बुराइयों के सम्बन्ध में दूसरी विचारणीय बात है कि इन्हें रोकने के लिए हम स्वयं कितनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हैं? अपने कारोबार, मनोरंजन, आराम, घर गृहस्थी के अलावा हम समाजिक कर्तव्यों में कितना हाथ बटाते हैं, यह प्रश्न हमारे सबके लिए एक चुनौती है। भारतीय नागरिक की यह बहुत बड़ी कमजोरी है कि वह अपने ही जीवन से इतना चिपका रहता है कि सामाजिक उत्तरदायित्वों की ओर आँख उठाकर नहीं देखता, उनकी ओर उपेक्षा भाव बनाये रखता है। पड़ौस में डाकू रहता है। अनैतिक कार्य का अड्डा है, समाज विरोधी हरकतें हमारे सामने होती रहती हैं। दूसरों को बदमाशी करते हम देखते हैं, किन्तु हम में से कितने इनकी सूचना सरकारी अधिकारियों को देते हैं, या इनके खिलाफ हममें से कितने लोग आवाज उठाते हैं? इनके विरोध में आन्दोलन हमसे से कितने चलाते हैं। बहुधा हम इन्हें चुपचाप देखते रहते हैं। बहुत बार हममें से ही बहुत से लोग अपराधियों को आश्रय देते हैं, सहायता पहुँचाते हैं, उन्हें बढ़ावा तक देते हैं। यह निश्चित सत्य है कि अपनी बुराइयों के बल पर जीवित नहीं रह सकते। अपराधी समाज के सहयोग पर ही उनका अस्तित्व कायम रहता है। जागरुक व्यक्ति जानते हैं कि समाज के तथाकथित स्वार्थी लोग ही अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अवाँछनीय तत्वों को प्रोत्साहित करते हैं, उन्हें सहारा देते हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनका बचाव भी करते है। फिर एक दिन एक-एक कर हम सभी को इन दूषित तत्वों से हानि उठानी पड़े तो इसमें दोष किसका? क्योंकि अपराधी किसी का सगा नहीं होता, अपना लाभ न होते देख वह अपने तथाकथित बचाव करने वाले व्यक्ति पर भी आक्रमण कर सकता है।

कई बार किसी नागरिक पर बदमाश लोगों के आक्रमण को देखकर भी हममें से बहुत से लोग चुपचाप आगे पग बढ़ा जाते हैं। हममें से कइयों की जानकारी में रिश्वत का दौर चलता रहता है। कई बार हम जानते हैं कि सार्वजनिक कार्यों में ठेकेदार तथा नौकरशाही अनावश्यक लाभ उठा रहें हैं। हममें से बहुत से लोग धोखा-धड़ी, ठगी, चोरबाजारी, मिलावट करने वालों को भली भाँति जानते हैं, किन्तु यह सब जानकर भी हम इनका भण्डाफोड़ नहीं करते। इनकी शिकायत पुलिस को या अपराध निरोधक संस्थाओं को नहीं करते। इनके खिलाफ संगठित होकर आन्दोलन नहीं होता ।

इस सम्बन्ध में हमारी यह शिकायत हो सकती है कि आजकल कोई सुनता नहीं, जो इस तरह के कदम उठाता है, उसे उल्टी परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। बहुत कुछ अंशों में यह ठीक भी है। किसी बात की सूचना देने पर गुण्डे के बजाय सूचना देने वाले को ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। बुराई का प्रतिरोध करने वाले को दूषित तत्वों का कोप भाजन बनना पड़ता है। यह सब ठीक है, किन्तु बिना कोई खतरा उठाये बुराइयों को दूर तो नहीं किया जा सकता। सुधार के लिए एक ही मार्ग है, वह है सब तरह के खतरे उठाकर बुराइयों का मुकाबला करना। यदि प्रशासन इस सम्बन्ध में ढील दे, तो उसके खिलाफ भी आवाज उठाई जाय। कोई सरकारी कर्मचारी या समाज का सदस्य इन दूषित तत्वों का बचाव करे, इन्हें प्रोत्साहन दे तो उनकी भी आलोचना करने में नहीं चूकना चाहिए।

इस तरह के प्रतिरोध के लिए अकेले व्यक्ति को तो संकल्प करना ही चाहिए, किन्तु सारे समाज को संगठित होकर बुराइयों के विपरीत कदम उठाना चाहिए। कोई कारण नहीं कि समाज की संगठित शक्ति के समक्ष बुराइयाँ जीवित रह सकें। खेद है, सामाजिक उत्तरदायित्व हम लोग नहीं समझते। कोई व्यक्ति किसी गुण्डे से निपटते समय सहायता के लिए पुकार करता है, तो हम किवाड़ बन्द करके बैठ जाते हैं, सुनकर भी अनसुनी कर जाते हैं, देखकर भी अनदेखे बन जाते हैं। लेकिन वह दिन भी दूर नहीं जब हमें भी इन दूषित तत्वों से आक्रान्त होना पड़ेगा।

आज बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष में, भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सामूहिक अभियान की आवश्यकता है। जब तक लोगों में इस सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना पैदा न होगी, तब तक बुराइयाँ एक-एक कर हम सबको प्रभावित करती रहेंगी, हानि पहुँचाती रहेंगी।

हमारी एक सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम बड़े-बड़े सिद्धान्त बघारते हैं, नीति और न्याय की ऊँची-ऊँची बातें करते हैं, लेकिन यह सब दूसरों के लिए। अपने कार्य कलापों को न्याय, नीति की कसौटी पर हम बहुत ही कम कसते हैं। एक दुकानदार बाजार में बैठकर सरकार, पुलिस आदि के भ्रष्टाचार की जी खोज कर आलोचना करता है, किन्तु उसकी आलोचक वृत्ति उस समय गायब हो जाती है, जब वह वस्तुओं में मिलावट करता है, ग्राहकों को कम तोलता है, अधिक मुनाफा वसूल करता है। आततायी और गुण्डों को हम लोग कोसते हैं, उन्हें बुरा कहते हैं, किन्तु हमारी समीक्षात्मक बुद्धि उस समय जाने कहाँ चली जाती है, जब हम पराई स्त्री को बुरी निगाह से देखते हैं। बिना प्रति-मूल्य दिए समाज के साधनों का उपभोग करते हैं, अनीति के साथ धन एकत्र करते हैं, दूसरों के श्रम अधिकार एवं साधनों का अनुचित शोषण करते हैं।

जिस तरह हम दूसरों की आलोचना करते हैं, उसके लिए न्याय नीति की माँग करते हैं, उसी तरह यह भी आवश्यक है कि हम अपने व्यवहार को नीति, धर्म की कसौटी पर कसें। जो बुरा है उसे न करें।

हम दूसरों के साथ कोई ऐसी बात न करें जो स्वयं अपने लिए न चाहते हों। बुराइयों को मिटाने के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व जो हम पर हैं, उसे सब तरह के खतरे उठाकर भी पूरा करने में न चूकें। कार्य व्यवहार को नीति, न्याय और धर्म की कसौटी पर परखें, जो बुराई है उससे दूर रहें। ये तीन बातें हमारे जीवन में ढल जायँ तो कोई सन्देह नहीं कि ये बुराइयां आज नहीं तो कल समाप्त ही हो जायगी।


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