चिन्ताओं से छुटकारे का मार्ग

February 1965

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जिन कारणों और अभावों से लोग दुःखी रहते हैं, उनके मूल तक जायें तो यह पता चलता है कि मनुष्य को किसी प्रकार का अभाव उतना दुःख नहीं देता जितना उसकी चिन्तित रहने की प्रवृत्ति दुःख देती है। किसी विषय को लेकर अकारण ही लोग उस पर आशंकापूर्ण कल्पनाएँ गढ़ते रहते हैं। अगले वर्ष बच्ची की शादी करनी है तो अभी से सोचने लगे कि दहेज के लिये रुपया कहाँ से आयेगा-गल्ले और कपड़ों का प्रबन्ध कैसे होगा? घर गिर रहा है, रिश्तेदार सम्बन्धी आयेंगे तो क्या कहेंगे, इसकी भी मरम्मत करवानी है, इधर नौकरी में भी तरक्की नहीं हो रही, बच्चे की फीस के पैसे भी देने हैं आदि अनेकों प्रकार से वह एक ही विषय को लेकर सोच-सोच कर दुःखी रहता है। इस प्रकार चिन्ताओं में जलते रहना आज संक्रामक रोग-सा बन गया है।

चिन्ता एक प्रबल मनोव्याधि है। इससे मानसिक शक्तियों का नाश होता है और शरीर पर दूषित प्रभाव पड़ता है। इससे लोगों का मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य गिर जाता है। “स्टाप वरीइंग एण्ड गेटवेल” पुस्तक के विद्वान लेखक डॉ. एडवर्ड पोडोलस्की ने अपनी पुस्तक में लिखा है, “चिन्ता से हृदय, रक्त का बढ़ाव, गठिया, सर्दी, जुकाम तथा बहुमूत्र आदि रोग हो जाते हैं। इस कारण इन रोगों से मुक्ति दिलाने वाले साधन प्रयोग में अवश्य लाने चाहिए।

डॉ. ऐलिक्स कैरेल का कथन है कि जो लोग चिन्ताओं से छुटकारे का मार्ग नहीं जानते वे जवानी में ही मर जाते हैं। चिन्ता वास्तव में एक ऐसा रोग है, जो अन्दर ही अन्दर जलाता रहता है और सारे रक्त माँस को जलाकर राख कर देता है। लोग समझते हैं कि उन्हें कोई शारीरिक व्याधि लग गई है, किन्तु यह होता मानसिक चिन्ताओं के कारण ही है। इससे जीवन-शक्ति का नाश हो जाता है, स्वास्थ्य गिर जाता है और रोग की स्थिति बनते देर नहीं लगती। मानवीय-विकास की सारी सम्भावनायें समाप्त हो जाती है।

जिन्हें इस जीवन में किसी प्रकार के सुख की आकाँक्षा हो, जिन्हें सफलता प्राप्त करनी हो, उन्हें सर्व प्रथम चिन्ता रहित बनने का प्रयत्न करना चाहिये। इससे अपनी शक्ति सुरक्षित रहेगी। बचाई हुई शक्ति किसी भी कार्य में लगाने से वहीं सफलता के दर्शन होने लगते हैं। चिन्ता रहित जीवन सफलता का स्रोत माना जाता है।

चिन्ताओं से मुक्ति पाने का सरल उपाय यह है कि सदैव कार्य करते रहें। दत्तचित्त होकर अपने काम में जुटें रहने से सारा ध्यान काम की सफलता पर चला जाता है। चित्त विविध अनुभवों में उलझा रहता है। जब तक अपना काम भली प्रकार पूरा न हो जाय या जब तक पूर्ण सफलता न मिल जाय, तब तक सारी मानसिक चेष्टाओं को उसी में लगाये रहेंगे तो चिन्तायें आप ही दूर भाग जायेंगी। अकर्मण्य बने रहने से ही अनावश्यक सोचने विचारने को समय निकलता है। कहावत है “खाली दिमाग शैतान का घर।” कोई काम न होगा तो चिन्ताएँ आयेंगी, बुरे-बुरे विचार उठेंगे और उनकी प्रतिक्रिया भी शरीर और मन पर पड़ेगी ही। इसलिये किसी न किसी काम में हर समय लगे रहना आवश्यक है।

यह देखा जाता है कि लोग बीती हुई घटनाओं की भयंकर कल्पना में अपनी शक्ति और समय का दुरुपयोग करते रहते हैं। जो हो चुका वह वापस लौटने का नहीं, फिर उस पर अकारण विलाप करने से क्या फायदा? जो हो गया उसे भूलकर भविष्य के सुखद परिणामों की प्राप्ति के लिये एकान्त मन से लगे रहना ही श्रेयस्कर होता है। इसी प्रकार आने वाली घटनाओं से संघर्ष करने के लिए उत्साह पैदा कीजिए। देखिये आप की शक्ति भी कितनी प्रबल है।

हिटलर कहा करता था अच्छे से अच्छे भविष्य की कल्पना करनी चाहिए और खराब से खराब परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहना चाहिये। इससे अकारण उठने वाली चिन्ताओं से छुटकारा मिलता है। एक पहलवान की इच्छा थी कि वह दूसरे को पछाड़ेगा। इस आशा से उसने स्वास्थ्य का निर्माण किया। वर्षों तक दण्ड बैठक का अभ्यास किया। शक्तिवर्द्धक पौष्टिक आहार जुटाया, तब कहीं जाकर दूसरे पहलवान से कुश्ती लड़ने के योग्य हुआ। फिर भी दाँव पेंच नहीं बन पड़े और कुश्ती में हार गया। इससे यह नहीं माना जा सका कि उसका श्रम-व्यर्थ गया। उसके परिणाम तो सुन्दर स्वास्थ्य और आरोग्य के रूप में मिले ही। इसलिये आने वाले भयंकर परिणामों के प्रति पहले से ही साहस पैदा करना चाहिए, ताकि बुरे परिणाम की दुश्चिन्ता से बचे रहें। सुखद कल्पना के सत्परिणाम तो आपको मिलेंगे ही, उनसे आपको कोई वंचित न कर सकेगा।

अकारण चिन्तित रहने का एक कारण यह भी है कि लोग बिना सोचे समझे किसी बात की पूर्ण सफलता का निर्णय कर लेते हैं। यह निर्णय आपके पक्ष में आये ही, इसके लिए श्रम, उद्योग और चतुराई भी अपेक्षित थी। फिर यदि परिस्थितियाँ नहीं बन पड़ीं तो भी अभीष्ट उद्देश्य की पूर्ति में बाधा आ सकती है। विपरीत परिणाम भी उपस्थित हो सकता है। ऐसे समय प्रायः लोग अपना धैर्य खो बैठते है और शोक सन्ताप करके बैठे-बैठे चिन्ता या पश्चात्ताप करते रहते हैं। बारबार अपनी असफलता पर ही दुःख होता है इसलिये पहले से ही पूर्ण सफलता का निर्णय कर लेने की भूल न करें वरन् यदि परिस्थितिवश असफलता का सामना करना पड़े तो उसके लिये भी तैयार रहना चाहिए।

परिस्थिति-वश यदि ऐसी कोई विपरीत घटना जीवन में घटित होती है तो आप अपने मित्रों शुभ-चिन्तकों और समझदार लोगों से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए। इससे सम्भव है आपकी कठिनाइयों का कोई दूसरा हल निकल सके किन्तु यदि यह अच्छी प्रकार समझ लिया गया है कि यह कठिनाई घटती या मिटती दिखाई न पड़े, तो भी उद्विग्न मत हूजिए। तब मानसिक शांति के लिये उस चिन्ता के विषय से चित्त हटाकर अपना ध्यान किसी दूसरे रुचिकर विषय में लगाने का प्रयत्न करना चाहिये।

किसी के प्रियजन की आकस्मिक मृत्यु हो गई है, तो यह संकट ऐसा है जिसे सुधारा नहीं जा सकता है। पर चिन्ता करने के दुष्परिणामों से बचने के लिये कोई ऐसा रचनात्मक उपाय प्रयोग में ला सकते हैं, जिससे शोक का वातावरण बदल जाय और चित्त अशान्त रहने की अपेक्षा किसी सन्तोष दे सकने वाले काम में लग जाय। किसी की रुचि धार्मिक कथा-साहित्य में होती है। उन्हें गीता रामायण आदि किसी पुस्तक के स्वाध्याय से अन्तःकरण की तुष्टि करनी चाहिए। जिन्हें प्राकृतिक जीवन प्यारा लगता हो, वे ऐसा भी कर सकते हैं कि कुछ दिन तक कहीं तीर्थ यात्रा आदि में समय बितावें। अपनी रुचि के अनुसार अपनी शान्ति प्राप्त करने के प्रयत्न करें, तो कई साधन ऐसे बन जायेंगे, जिससे चिन्ता-जनक परिस्थिति में भी अपना मानसिक सन्तुलन बनाये रख सकें।

चिन्ता एक संक्रामक रोग है। जब हम किसी ऐसे व्यक्ति के पास बैठते हैं, तो उसकी निराशा के तत्व खींचकर हम भी निरुत्साहित होने लगते हैं। ऐसे लोग सदैव भाग्य को दोष देते रहते हैं। हम अभागे हैं, हमारा जीवन निरर्थक गया, घर न बनवा सके, जायदाद न खरीद पाये, हम पर परमात्मा नाखुश है आदि निराशाजनक भावनाओं से वे अपना भाग्य तो बिगाड़ते ही हैं, अपने संपर्क में आने वालों का भविष्य भी अन्धकारमय कर देते हैं।

आप सुन्दर भविष्य की कल्पना कीजिए। अधिक योग्य, चरित्रवान्, स्वस्थ और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनने की अनेकों नई-नई योजनायें बनाइए और अपनी परिस्थितियों का उनके साथ मेल होने दीजिए। कोई न कोई योजना जरूर ऐसी आएगी जो आपके विकास में सहायक बनेगी। महापुरुष ईसा ने कहा है “कल के लिये चिन्ता मत करो वरन् सुनियोजित प्रयत्न करो, ताकि आपका कल अधिक सुनहला हो।” अच्छे चिन्तन से, संग्रहीत साँसारिक अनुभवों के सहारे, अधिक उत्साह पूर्वक कार्य करने की शक्ति जागृत होती है। पश्चाताप और आत्मग्लानि की दुश्चिन्ता से कार्यनिष्ठा, साहस शक्ति और कुशलता का नाश होता है। आप सदैव इन से बचने का प्रयत्न कीजिए। जीवन के प्रति आशंकापूर्ण भावनायें कदापि न करें। सदैव भविष्य के मंगलमय होने की कल्पना किया करें। इसी में सुख है, शांति है, श्रेय है।


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