समय नहीं ढप पर बिरहा, झूमर, कजली गाने का,
समय नहीं, दर्दीले भावों में मन उलझाने का,
मौसम की खामोशी भी संकेत कर रही है-
समय नहीं, अब प्रणय-गीत में मन को फुसलाने का।
ऐसे गाओ गीत जोश से लहू उबल जाये,
धरती का कण-कण जग जाये ऐसा गान सुनाना होगा।
जिन्हें भोर की अलसाई निंदिया है सुला रही,
उन्हें सजग करने को हम को आगे कदम बढ़ाना होगा।
-महेन्द्र कुमार “नीलम”