समय नहीं (Kavita)

February 1965

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समय नहीं ढप पर बिरहा, झूमर, कजली गाने का,

समय नहीं, दर्दीले भावों में मन उलझाने का,

मौसम की खामोशी भी संकेत कर रही है-

समय नहीं, अब प्रणय-गीत में मन को फुसलाने का।

ऐसे गाओ गीत जोश से लहू उबल जाये,

धरती का कण-कण जग जाये ऐसा गान सुनाना होगा।

जिन्हें भोर की अलसाई निंदिया है सुला रही,

उन्हें सजग करने को हम को आगे कदम बढ़ाना होगा।

-महेन्द्र कुमार “नीलम”


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