मन में बल हो तो शिखर चाट लेंगे तलवे,
सागर का वक्षस्थल राहें देगा फट कर,
संकल्प मन्त्र की शक्ति , कौन जो सहन करे?
पद-पथ को नमन करेंगी बाधायें हटकर,
अम्बुधि काँपेगा रत्न कोष धर चरणों पर,
हम को अगत्स्य की कथा याद करनी होगी।
स्वर्णिम विहान के फूल खिले उस पार मगर,
इस विकट रात की नदी पार करनी होगी।
- रमेशनारायण तिवारी
दानवता से हार मान कर, मानवता है सिसक रही। मानवता की स्नेह-डोरियाँ, उलझ-उलझ कर चिटक रही॥
कोटि-कोटि पलकें पथरायी, अपलक राह निहारते। मेरे राम! आज वसुधा के कण-कण तुम्हें पुकारते॥
अगिन दशानम विचर रहे हैं स्वर्ण भूमि निष्प्रभ अकुलाती।
राम राज्य की सुखद कल्पना पर काली छाया लहराती॥ हरो धरा के भार देव! फिर बर्बर युग हुँकारते।
मेरे राम! आज वसुधा के कण-कण तुम्हें पुकारते॥
-शिवानन्द शिवम्