तुम पेट को भोजन देते हो, पर देखो कान को भी भोजन दे देना। पेट भूखा रहेगा तो शरीर क्षीण होगा और कान भूखे रहेंगे तो बुद्धि मन्द हो जायेगी। श्रेष्ठ पुरुषों के अभिवचन सुनने का जब अवसर आवे तो अन्य कार्यों को छोड़कर भी वहाँ पहुँचो, क्योंकि उनके वचन तुम्हें वह वस्तु दे सकते हैं, जो रुपया-पैसा की अपेक्षा हजारों गुनी मूल्यवान होगी।
जो लोग जीभ से अच्छा खाने में तो कुशल हैं, पर कानों से सदुपदेश सुनने का आनन्द नहीं जानते, उन्हें बहरा ही कहना चाहिये। ऐसों का जीना और मर जाना एक समान है।
जिन्होंने बहुत सदुपदेश सुने हैं इस पृथ्वी पर देवता रूप हैं। धर्मात्मा मनुष्यों की शिक्षा एक सुदृढ़ लाठी के समान है जो सहारा देती रही है, और बुरे अवसर पर गिरने से बचा लेती है, अशिक्षित लोग भी धर्मात्माओं के सत्संग से उतनी शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, जिसमें अपने को संभाल सकें और विपत्ति के समय पैरों पर खड़े रहें।