मनुष्यता की झाँकी

February 1942

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एक बार एक नदी की बाढ़ में एक परिवार बहा जा रहा था। नदी के किनारे खड़े हुए एक धनी ने दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा-इस परिवार को कोई बचा दे तो उसको मैं सौ रुपया इनाम दूँगा। एक गरीब नवयुवक कूद पड़ा, उसने जान को हथेली पर रख कर उन बहते हुए आदमियों को किनारे पर लगा दिया। धनी उसे रुपया देने लगा तो गरीब युवक ने कहा-’मैं अपने मनुष्यत्व को सौ रुपये में नहीं बेचता, मैंने अपना कर्त्तव्य पालन किया है। रुपयों की इन बेचारों को जरूरत है, इसलिये आप वह इन्हें ही दे दीजिये।’ आस्ट्रेलिया में एक बार हैजा फैला जिसमें बहुत आदमी मरने लगे। लोग डर के मारे एक दूसरे के पास नहीं जाते थे। सड़क पर एक लाश को ठेले पर रख कर कोई व्यक्ति फेंकने ले जा रहा था। आस्ट्रेलिया का राजा फ्राँसिस जब उधर से निकला तो उसने कहा-’मेरे प्रजाजन का उचित अन्त्येष्टि संस्कार होना चाहिये’ और वह स्वयं कब्रिस्तान में उसकी क्रिया-क्रम करने पहुँचा। सन् 1862 में वरकिन हैड नामक जहाज समुद्र में डूबा। उसमें 472 पुरुष और 166 स्त्री बच्चे थे। कप्तान ने नावों में स्त्री बच्चों को बिठा कर समुद्र में उतार दिया। और कप्तान सहित सब पुरुष वीरता पूर्वक जहाज के साथ डूबे गये उनमें से एक ने भी ऐसा आग्रह न किया कि हमें नावों पर बिठा दिया जाय।

सेना नायक सर राल्फ एक युद्ध स्थल में घायल होकर मृत्यु शय्या पर पड़े हुए थे। उनके आराम के लिये एक सिपाही का कम्बल सिर के नीचे लगा दिया गया। जब उन्हें होश आया और सिर के नीचे कम्बल देखा जो पूछा कि यह कम्बल किसका है? उन्हें बताया गया कि वह 41 नम्बर पलटन के डकंनराय सिपाही का है। सर राल्फ अन्तिम साँस ले रहे थे, पर उसने अपने दुःख की परवा न करते हुए हुक्म दिया कि इसी क्षण इस कम्बल को ले जाओ और उस सिपाही के पास पहुँचा दो, क्योंकि वह बेचारा इस कड़ाके की सर्दी में सिकुड़ रहा होगा।


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