(ऋषि तिरुवल्लुवर)
महान पुरुषों के पास पैसा नहीं होता और न वे उसकी इच्छा करते हैं क्योंकि दया से लबालब भरा हुआ हृदय उनके पास कुबेर के भण्डार की तरह मौजूद रहता है। कहते हैं कि इस दुनिया में गरीब का कोई ठिकाना नहीं। निश्चय समझो परलोक में उनका कोई ठिकाना न होगा जिनके मन में दया नहीं है। दरिद्र मनुष्य एक दिन सम्पन्न हो सकता है परन्तु वह भिखमंगा इसी तरह दर-दर पर दुत्कार खाता फिरेगा जिसका हृदय दया से रहित है सत्य को कौन प्राप्त करेगा? ईश्वर के दर्शन कौन करेगा? वह जिसके हृदय में दया है। निर्दय मनुष्य तो अपाहिज है, वे अपनी बगल में रखे हुए उत्तमोत्तम पदार्थों को भी न ले सकेंगे। अरे ओ निर्दइयों, ठहरो! दूसरों को सताने से पहले जरा सोचो तो सही कि जब इसी तरह तुम भी सताये जाओगे तब तुम्हारी क्या दशा होगी? हाय! मनुष्य दया धर्म का परित्याग करके क्रूरता और पाप के पथ पर आरुढ़ क्यों होते हैं? क्या वे इतना भी नहीं जानते कि इन दुष्ट कर्मों का फल उन्हें जन्मान्तरों तक घुट-घुट कर भुगतना पड़ेगा। धरती माता साक्षी है कि नारकीय यंत्रणाएं पापियों के लिये ही हैं, दयालुओं के लिये नहीं।
जिनके हृदय में दया है वे अन्धकार में न भटकेंगे। इसलिए हे आँख वालो। देखो और अपने मन में दया को स्थान दो। दूसरों के साथ दयालुता का व्यवहार करो।