अवतार कैसा होगा?

February 1942

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(हृदयों में विचार उत्पन्न होंगे)

निश्चय ही इस बात को महत्व नहीं देना चाहिये कि किस शरीर में ईश्वरीय अंश की विशिष्ठ कलाएं स्वीकार की जायेंगी, क्योंकि स्वीकार करना जनता की इच्छा के ऊपर होता है। वैसे एक काल में एक उद्देश्य को पूरा करने के लिए कई-कई अवतार एक साथ प्रकट होते हैं, राम के समय में परशुराम अवतार मौजूद थे, भरत और लक्ष्मण की आत्माएं भी वैसी ही उच्च कोटि की थी, हनुमान में भी बढ़ा-चढ़ा देवी अंश था। कृष्ण के समय पाण्डव उसी कार्य को पूरा करते थे। बुद्ध और महावीरों के असंख्य सहायक उस समय मौजूद थे, इन सब में दिव्य अंश वर्तमान थे। अवतार मल मूत्र की गठरी में नहीं, वरन् एक विशेष भावना में होता है। यह भावना अचानक, बड़ी तीव्र गति से जब बढ़ती है तो उसके कर्ता को चमत्कारी महापुरुष समझा जाता है, वास्तव में ईश्वरीय इच्छा का उस समय के लोग अनुकरण मात्र करते हैं और महत्त्व प्राप्त करते हैं। इन एक कालिक अवतारों में जो सर्वश्रेष्ठ होता है उसे प्रधानता मिलती है। वैसे वह सब कार्य उस अकेले का नहीं होता। अन्य आत्माओं की शक्ति भी उतनी ही और कई बार उससे भी अधिक लगती है, तब कहीं जाकर वह उद्देश्य पूरा होता है। राक्षसों का नाश करने में राम के अन्य साथियों की क्षमता थी, उसे भुलाया नहीं जा सकता। लंका का नाश करने में क्या वानर योद्धाओं ने कुछ नहीं किया था? क्या लक्ष्मणजी की वीरता तुच्छ थी? अहिरावण के यहाँ कैद हुए राम-लक्ष्मण को छुड़ाने वाले हनुमान को क्या कुछ नहीं समझा जायेगा? गोवर्द्धन उठाने में ग्वालों का सहयोग उपेक्षणीय था? महाभारत के धर्मयुद्ध में क्या अकेले कृष्ण ही विजेता थे? वास्तविकता यह है कि एक समय में अनेक अवतार होते हैं और उन सब की संघ शक्ति से भौतिक परिवर्तन होते हैं। सूक्ष्म परिवर्तन कारिणी आद्य शक्ति है, वह आद्य शक्ति जो देवकी के गर्भ से कंस को सचेत करने के लिए उत्पन्न हुई थी, किन्तु कंस ने शिला पर पटककर उसे मार डाला था। वह आद्य शक्ति अन्तःकरण की प्रेरणा है, अवतार से पूर्व हर एक के हृदय में एक प्रकार की सनसनाहट लिए हुए आध्यात्मिक पुकार उठती है, वह चेताती है कि बस, अब हद हो चुकी। ठहरो, रुको, सोचो, और गलती का संशोधन करो, मैं ईश्वरीय प्रेरणा लेकर आई हूँ, मेरा स्वागत करो। किन्तु हजारों कंस युग वाणी को शिला पर पटक कर मार डालते हैं, आत्मा की आवाज को कुचल देते हैं और नृशंसतापूर्वक अपने पिछले व्यापार को जारी रखते हैं। वास्तव में यह आद्य शक्ति अवतार की पूर्व सूचना दुंदुभी है, जो आकाश में, अन्तर्लोकों में, बहुत पहले से सावधान होने के लिए, कुहराम मचाती है। जो इस वाणी को नहीं सुनना चाहते और ईश्वरीय संदेश की अवहेलना करते हैं वे आने वाले अवतार की तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं।

‘जब किसी प्रकट शरीर में अवतार होगा तो उसकी आज्ञा मानने लगेंगे।’ इस प्रतीक्षा में बैठे रहने वाले उस अंधे के समान है जो सोचता है कि जब सूरज दिखाई देगा तब चारपाई छोड़ कर उठ बैठूँगा। आँखों के बिना उसे सूरज नहीं दीखता है, यह उसकी इच्छा रही कि हमेशा चारपाई पर ही पड़ा-पड़ा मर जाय या उठ बैठे। अवतार को इसके जीवनकाल में पहचानने वाले बहुत ही कम होते हैं, अधिकतर तो वह विरोधी दिखाई देता है, क्योँकि लोगों को जो पुरानी सड़ी गली आदतें पड़ी हुई है, उन्हें वह छुड़ाने के लिए ही तो आया है। शत्रुओं को प्रकाश से चिड़ होती है और उसे पानी पी-पी कर कोसते हैं। जब वह चला जाता है तो पछताते हैं कि हाय, सूर्य भगवान उदय हुए थे पर हम अज्ञान वश उन्हें गालियाँ ही देने में लगे रहे।

शरीरधारी अवतार को आँखों से देखकर उसके पीछे-पीछे चलने की इच्छा रखने वाले अक्सर धोखा खाते हैं। उन्हें कोई दूसरा ही ठग बहका ले जाता है। हो सकता है कि ईश्वर के बदले उन्हें शैतान की पूजा करनी पड़े, क्योंकि हीरे की अपेक्षा नकली काँच का हीरा बहुत चमकता है और फेरी वाले उसे घर पर दिखाने के लिए भी ले आते हैं, किन्तु असल हीरे के लिए जौहरी के घर जाकर बड़ी कठिनाई से परखा जा सकता है। नकली हीरे तो विसातियों की दुकानों पर ढेर के ढेर चमकते हुए आप देख सकते हैं। इस भ्रमपूर्ण अवस्था में से निकलना उन्हीं के लिए संभव है, जो माँस के नेत्रों की अपेक्षा अन्तःकरण की दिव्य दृष्टि पर अधिक विश्वास करते हैं। मूर्खों के लिए मोर-मुकुट पीताम्बर काँछ कर नाचने वाले लड़के ही साक्षात कृष्ण हैं, किन्तु एक ज्ञानी पुरुष भगवान की झाँकी ज्ञानपूर्वक दिव्य दृष्टि द्वारा करता है। खूबसूरत और बलवान शरीर वाले किसी प्रतापी नेता का अनुगमन करने की प्रतीक्षा करने वालों को उनकी इच्छित वस्तु क्या कभी प्राप्त भी हो जायेगी? यह बड़े भारी संदेह से भरी हुई बात है।

थियोसॉफिकल सोसाइटी के आचार्य और श्रीमती एनी बीसैण्ट के वरद पुत्र श्री कृष्ण मूर्ति को कुछ समय पूर्व अवतार घोषित किया गया था। सचमुच उनकी आत्मा में कुछ ईश्वरीय कलाएं अनुभव भी की गई पर श्री कृष्ण मूर्ति ने अंध विश्वासियों को उनकी भ्रान्त धारणाओं के संबंध में बुरी तरह लताड़ डाला। उन्होंने नाच कूदकर मगन होने वाली भक्त मण्डली की ओर भवें तरेरीं और कहा ‘क्या आप ईसामसीह के अवतार हैं?’ ऐसा प्रश्न करने वाले एक शिष्य पर लाल पीले पड़ते हुए कहा-

‘अगर मैं कहूँ कि मैं मसीहा हूँ तो तुम मेरा पन्थ कायम कर लोगे और यदि मैं कहूँ कि मैं मसीहा नहीं हूँ तो तुम कोई दूसरा पन्थ कायम कर लोगे। इसलिए तुम वास्तव में सत्य के प्रेमी नहीं हो वरन् उस पात्र से प्रेम करते हो जिसमें सत्य रखा गया है। तुम पानी पीकर प्यास नहीं बुझाना चाहते वरन् यह जानना चाहते हो कि जिस बर्तन में वह रखा गया है उसे किसने बनाया है। मित्रो? अगर मैं कहूँ कि मैं मसीह हूँ और दूसरा कोई कहे कि मैं नहीं हूँ तो आप क्या करेंगे? इसलिए नाम या पद के फेर में मत पड़ो, इसका कुछ भी महत्व नहीं है। तुम जल को पान करो, बशर्ते कि वह शुद्ध हो। मैं कहता हूँ कि मैं जो जल तुम्हें दे रहा हूँ, वह शुद्ध है, मैं जो मरहम लगाता हूँ वह शाँति दायक है। पर तुम पूछते हो कि ‘मैं क्या हूँ?’---- मैं सब कुछ हूँ, क्योंकि मैं जीव हूँ, आत्मा हूँ।’

विश्ववंद्य महात्मा गाँधी को कई लोग अवतार समझते हैं, और उनके नाम पर गाँधीवाद नामक पंथ चलाना चाहते हैं। इस संबंध में महात्मा जी ने अपनी स्थिति बहुत ही स्पष्ट कर दी है। वे कहते हैं-’यदि गाँधीवाद के नाम पर’ मेरा कोई पृथक पंथ चलाया गया तो इससे मुझे बड़ा दुख होगा। परलोक में मेरी आत्मा रुदन करेगी कि हाय! मेरे अनुयायियों ने यह क्या अनर्थ किया। इससे पहले के ही पंथ बहुत है, अब और बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है।’

शास्त्रों में एक स्थान पर ऐसा उल्लेख है कि जो कहता है कि ‘मैं ब्रह्म को जानता हूँ।’ वह नहीं जानता और कहता है कि ‘नहीं जानता’ वह भी मिथ्या कहता है। इसी प्रकार जो यह घोषित करे कि ‘मैं अवतार हूँ’ असल में वह अवतार नहीं है। और जो कहता है कि मैं अवतार नहीं हूँ, वह भी झूठ बोलता हैं, क्योंकि जीव के ईश्वरीय अंश होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। इस प्रश्न को सुलझाना बहुत कठिन है कि कौन अवतार है कौन नहीं? क्योंकि परशुराम जैसे अवतारी भी यह नहीं जान सके थे कि राम अवतार हैं। फिर साधारण लोगों की तो बात ही क्या है। हमें इस पचड़े से दूर रहना चाहिए और स्थूल अवतार की अपेक्षा सूक्ष्म अवतार का दिव्य दृष्टि से दर्शन करने का प्रयत्न करना चाहिए।

आज शक्ति अवतार ले चुकी है। उनकी तुमुल ध्वनि अदृश्य लोक में गूँज रही है। भक्त लोग इसे प्रसन्न होकर सुन रहे हैं और उसके स्वागत की तैयारी में जुटे हुए हैं। अवतार का प्रचण्ड तूफान अब आने ही वाला है, वह जीवों के हृदयों में कुहराम पैदा करेगा और अन्तःकरणों को मथ डालेगा। जो उस ईश्वरीय दूत को अपने हृदय में स्थान देंगे। वे यश के भाजन बनेंगे, अपनी अमर कीर्ति दुनिया में छोड़ जायेंगे। हनुमान, अंगद की तरह उनको सच्चा जीवन फल प्राप्त होगा। जो उस प्रचण्ड शक्ति का विरोध करेंगे, कालनेमि और रावण, राहु की तरह पिसकर चूर-चूर हो जायेंगे।

विश्वव्यापी असत्य रूपी असुर को मिटाने के लिए भगवान सत्यनारायण प्रकट होने वाले हैं। सत्य ही कलंक रहित है, इसलिए उसे निष्कलंक भी कह सकते हैं। यह निष्कलंक सत्य मय भावनाओं की अवस्था में प्रकट होगा। यह प्रेम और न्याय का प्रचार करेगा। दुनिया में से घृणा, द्वेष, दम्भ, पाखण्ड और स्वार्थ की हस्ती को मिटा देगा। सब लोग भाई-भाई की तरह गले मिलकर रहेंगे। एक दूसरे को प्यार करेंगे। अपनी कमाई में संतुष्ट रहना, अपने सुख से बढ़कर दूसरों का सुख समझना, धर्म का प्रमुख अंग समझा जायेगा। ऐसा सतयुग लाने के लिए भगवान सत्यनारायण निष्कलंक रूप में शीघ्र ही पृथ्वी पर प्रकट होने आ रहे हैं। सजग हो जाओ।

घड़ी में, घन्टे और मिनट को सुइयाँ एक ही धुरी से बंधी हुई है। मिनट की सुई घूमती हुई जब घन्टे वाली के पास पहुँचती है, तो दोनों आपस में मिल जाती है। जीव और ईश्वर आपस में सम्बद्ध हैं और जब उपयुक्त अवसर आता है, तभी दोनों आपस में मिल जाते हैं।


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