पौराणिक सतयुग में देर है।

February 1942

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(श्री रामदयाल जी गुप्ता, नौगढ़)

विभिन्न मतों का अनुशीलन करने से मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पुराणों में वर्णित सतयुग तो अभी दूर है, पर कुछ समय के लिए अच्छा समय जरूर आवेगा। जो करीब-करीब सतयुग के ही समान होगा। सूरदास के प्रसिद्ध पद में कहा गया है कि-’अस्सी वर्ष को सतयुग आवे, धर्म की बेली बढ़े।’ इसमें कुछ थोड़े समय के लिए ही सतयुग के आगमन का उल्लेख है। अखण्ड-ज्योति के पिछले किसी अंक में पं. भोजराज जी शुक्ल ने लिखा था कि जैसे दिशोत्तरी दशा में सब ग्रहों की अंतर्दशाएं आती हैं इसी प्रकार एक युग को अन्य युगों की भी अंतर्दशाएं बरतती हैं, संभव है इसी प्रकार कुछ समय के लिए नवीन युग आवे और पुनः वह पुराना समय बरतने लगे।

कल्याण सम्पादक श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार ने एक बार लिखा था कि इस दुनिया रूपी शरीर में दुष्टजन रूपी घाव बढ़ गये हैं। उन घावों को मिटाने के लिए आपरेशन हो रहे हैं ताकि शरीर स्वस्थ हो जावे। दुष्टजनों का संहार होने पर दुनिया में कुछ समय शाँति रहेगी। यह शाँति सतयुग के समान होगी पर वास्तविक सतयुग अभी दूर है।

ऐसे ही अन्य लोगों के विचार हैं कि कुछ समय के लिए ही नवीन युग आवेगा। पर पौराणिक सतयुग में तो अभी देर है।


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