अवतार का सच्चा स्वरूप

February 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(सत्यनारायण ही निष्कलंक हैं)

हमारा निश्चित विश्वास है कि अब सत्य का युग बहुत ही निकट आ गया है और उस युग का प्रवर्तक अवतार बहुत ही शीघ्र प्रकट होने वाला है। इस अवतार को बहुत दिनों से ‘निष्कलंक’ नाम दिया जा रहा है। यह नाम ठीक है, क्योंकि सत्य ही निष्कलंक है। कलंकित वही होगा, जो मिथ्या है। सत्य तो त्रिकाल में भी कलंकित नहीं हो सकता। इसलिये निश्चय ही जिसे निष्कलंक कहा जायेगा, वह सत्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। इस अवतार को कोई-कोई सत्यनारायण के नाम से भी पुकारेंगे। पूर्व समयों में भी जब सत्यनारायण के अवतार हुए हैं, तो उनके चित्र इस प्रकार के बनाये गये हैं, जिनके एक हाथ में कमल-पुष्प है और दूसरे में गदा। तत्वज्ञानियों की दृष्टि से इस अलंकारिक रूप की व्याख्या दूसरी तरह से होगी। कमल-पुष्प प्रेम का सूचक है और गदा न्याय की प्रतिनिधि है। अखण्ड सत्य जब क्रीड़ा के साथ संयुक्त हो जाता है, तो उसे एक से तीन बनना पड़ता है।

ईश्वर, जीव, प्रकृति यह तीन वस्तुएँ पृथक्-पृथक् दिखाई पड़ती हैं, पर यथार्थ में उनका उद्भव एक ही स्थान से है। सत, रज, तम की त्रिगुणमयी सृष्टि का स्रोत एक ही है। इन्हीं तत्वों को हम आधुनिक भाषा में सत्य, प्रेम, न्याय, इन नामों से कह सकते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश यह भी उसी त्रैत की प्रतिमा है। राम, सीता और लक्ष्मण का आध्यात्मिक अर्थ सत्य, प्रेम और न्याय से किया जा सकता है। केवल एक पदार्थ से बहुत का कार्य नहीं चलता, तब उसके विभाग हो जाते हैं। भगवान सत्य इस सृष्टि का कार्य प्रेम और न्याय के साथ चलाते हैं। हमारे दो हाथ हैं, दो आँखें हैं, दो कान हैं, दो नथुने है। यह दो साधन भगवान सत्य के भी हैं-एक प्रेम दूसरा न्याय। यह त्रिगुणमयी सृष्टि का संतुलन ठीक रखने के लिये है। इस तीन तार के यज्ञोपवीत को ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण अपने अंधों पर धारण करते हैं, जिससे कि वे जीवन में हर घड़ी इन तीन महान तत्वों को स्मरण रखें।

तन तीनों तत्वों का पृथक्-पृथक् आगे के तीन लेखों में विवेचन किया जाता है। आशा है कि इससे पाठक अवतार का ठीक-ठीक स्वरूप पहिचान जायेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118