रामकृष्ण परमहंस के उपदेश

February 1942

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कच्ची दवा जैसे स्प्रिट में घुल जाती है, उसी तरह ईश्वर में घुल जाओ।

जिस तरह एक ही बीज से वृक्ष पर नारियल खोपड़ा और गिरी निकलती है, ऐसे ही ईश्वर से स्थावर, जंगम, आधिभौतिक, अध्यात्मिक सृष्टि रची गई है।

जैसे पानी पर खींची हुई लकीर थोड़ी देर भी नहीं ठहर सकती है, उसी तरह सज्जनों का क्रोध शीघ्रातिशीघ्र गायब हो जाता है।

जैसे सफेद वस्त्र में काला निशान हो जाने से बुरा मालूम होता है, उसी तरह सज्जन मनुष्य कोई बुरा काम कर डाले तो उसकी सज्जनता में हानि पहुँचती है।

जैसे चीनी और बालू को मिला देने से चींटी केवल चीनी को ही खाती है, उसी तरह ज्ञानी मनुष्य के दुराचारों की तरफ ध्यान न देकर ज्ञान ही प्राप्त करना चाहिए।

पिचकारी एक मालूम पड़ती है पर उसके भीतर का डंडा अलग है। शरीर को मनुष्य समझा जाता है, पर वास्तव में आत्मा उससे अलग है।

दाद को जितना-जितना अधिक खुजाओगे, उतनी ही उसमें खुजली अधिक बढ़ेगी। विषयों को जितना अधिक भोगोगे, भोगेच्छा उतनी ही अधिक तीव्र होगी।

बरसात का पानी ऊंची जगह पर न ठहर कर बहकर नीची जगह पर आ जाता है। उसी तरह ईश्वर की कृपा अहंकारियों पर न होकर नम्रों पर ही होती है।


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