(श्री मंगलचन्द जी भंडारी, अजमेर)
राजभवन के समीप ही एक जामुन का पेड़ था। पाँच-छः बालक पत्थर मार-मार कर जामुन गिरा रहे थे। जामुनों के प्रलोभन में उन्हें इतना ध्यान तक न था कि पत्थर किसी राहगीर के न लग जावें। लेकिन इतना ज्ञान अवश्य था कि जिसके निशाने से जामुन गिरते थे वही उन्हें उठाता था। यानी अपने-अपने निशाने के पत्थर का वे पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। एक लड़के का निशान चूक गया और वह पत्थर राजभवन से निकलते हुये राजा साहब के सिर में लगा, उनका सिर फट गया और खून बहने लगा।
बदमाश! बदतमीज! बेहूदा! अपराधी! चारों ओर से यही शब्द सुनाई पड़ने लगे। अपराधी के अलावा शेष सब बालक भय के मारे भाग चुके थे। वहाँ खड़ा था सिर्फ अपराधी-10,11 वर्ष का एक बालक। राजा के नौकरों ने उसे पकड़ लिया और रस्सी से बाँध दिया।
सेवक लोग दौड़े, तुरन्त ही ठाकुर को लाया गया। ठाकुर ने शीघ्र ही उस जगह के खून प्रवाह को रोक पट्टी बाँध दी। कुछ ही समय बाद राजा को कुछ शाँति मिली और क्रोध कम हुआ। तब राजा ने अपने सेवक से अपराधी को उपस्थित करने को कहा।
सेवक लोग उस बंधे हुये अपराधी बालक को लेकर राजा के सम्मुख उपस्थित हुये। राजा ने आँखें निकालते हुये उस बालक से पूछा- क्यों मेरे सिर में पत्थर मारा था? बालक ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया-राजन? हम पाँच-छः बालक पत्थर मारकर जामुन खा रहे थे, इसी बीच अचानक मेरा पत्थर आपके सिर में आ लगा था, मैंने जान-बूझ कर आपके सिर में पत्थर नहीं मारा है।
राजा कुछ देर मौन रहा, फिर लड़के के नाम एक गाँव लिख कर, उसके पिता को बुला कर दे दिया। सब लोग आश्चर्य से चकित रह गये। जहाँ कि वह दण्ड आदि देने की सोच रहे थे, वहाँ उन्होंने उसे एक गाँव दिया देखा, तो उनके आश्चर्य की सीमा न रही। अन्त में मंत्री ने साहस करके पूछा- श्रीमान! आपको पत्थर मारने पर आपने उसे एक गाँव इनाम दे दिया, जहाँ कि कुछ दण्ड आदि देना चाहिए था। इसका क्या कारण है?
राजा ने गंभीरता से प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि- जब एक निर्जीव जामुन का पेड़ पत्थर मारने पर मीठे-मीठे जामुन देता है तो मैंने भी अपने मनुष्यत्व का ख्याल कर मेरे पास गाँव थे उनमें से एक गाँव इस बालक को पत्थर मारने पर दे दिया, क्या मैं एक जामुन के पेड़ से भी कम हूँ? यदि वृक्ष अपने सताने वाले को बदले में मधुर फल दे सकता है तो क्या मैं वैसा नहीं कर सकता?