तुम्हें न तो आदमियों की बुराइयों तथा असफलता की नकल करनी चाहिये, न उनकी त्रुटियों की बराबरी करने या उनसे बढ़ने का प्रयत्न करना चाहिये ओर न उनकी बुरी आदतों की नकल करनी चाहिये।
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दूसरे आदमियों से अपने प्रति जिस व्यवहार की तुम आशा करते हो वैसे ही व्यवहार तुम उनसे करो, यही महान नियम है और यही महात्माओं का उपदेश है।
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जो आदमी अपने मन को परमात्मा पर न्यौछावर कर देता है, उस आदमी के मन का संबंध उसके समस्त कार्यों से हो जाता है और वह अवश्य ही कभी न कभी विशेष ज्ञान तथा शक्ति के राजमार्ग पर पहुँच जाता है।