हार-जीत

February 1942

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(श्री दरबारीलाल जी सत्य भक्त)

(रामचन्द्र जी की सवारी निकल रही है)

हिन्दू नेता- ‘भाइयों? मस्जिद आ रही है, यह नमाज का समय है, इसलिये वहाँ पहुँच कर बाजे बन्द करके हम सब लोग खड़े रहें और कुछ ध्यान करें।’

दूसरा हिन्दू- ‘क्या नमाज में भी शामिल होना पड़ेगा?’

हिन्दू नेता- ‘होना पड़ेगा नहीं, होना चाहिए। नमाज भी तो ईश्वर का ध्यान हैं।’

(2)

(मस्जिद में मुसलमान खड़े हैं)

मौलवी- ‘भाइयों! मालूम होता है, हजरत रामचन्द्र जी की सवारी आ रही है। अच्छा तो थोड़ी देर रुक जायें, सवारी निकल जाने पर नमाज पढ़ी जाय।’

मौलवी- ‘सभी वक्त अल्लाह का है, उसमें चूकने का क्या काम? और नमाज के वक्त भजन हो जाय तो नुकसान भी क्या है? अल्लाह तो नमाज भी समझता है और भजन भी। इसलिए अल्लाह के पास अगर नमाज के वक्त भजन पहुँच जाय तो अल्लाह नाखुश न होगा।’

(3)

(जुलूस मस्जिद के पास आ जाता है। मुसलमान मस्जिद से निकल कर जुलूस के सामने आ जाते हैं, बाजे वगैरह बन्द कर सब शाँत होकर खड़े हो जाते हैं)

मौलवी- ‘भाइयों, आप लोग शाँत क्यों हो गये? भजन वगैरह होने दीजिए, हम भी शामिल हो जायें।’

हिन्दू नेता- ‘यह तो नमाज का समय है, इस समय तो हम शाँत रहकर नमाज में शामिल होना चाहते हैं।’

मौलवी- ‘पर चालू भजन को रोककर नमाज में शामिल होना क्या अच्छी बात है? आप भजन चालू रखिये। नमाज आज देर से होगी।’

हिन्दू नेता- ‘पर इससे फायदा ही है, मीठा खाने के बीच में चटनी का स्वाद मीठे का जायका बढ़ा देता है, भजन के बीच में नमाज आ जाने से भजन का जायका बढ़ जायेगा।’

मौलवी- अच्छा भाई, आप जीते हम हारे।

(4)

(सब मिलकर नमाज में शामिल होते हैं, नमाज होने के बाद हिन्दू-मुसलमान मिलकर भजन गाते हैं, आरती करते हैं और जुलूस आगे बढ़ता है। जाते समय में बात-चीत होती है)

हिन्दू नेता- मौलवी साहिब, आज हमारी ही पूरी जीत रही।

मौलवी- नहीं भाई, पूरी जीत के लिए दूसरे को पूरा हारना पड़ता है। यहाँ तो हम दोनों ही जीते और हम दोनों ही हारे।

हिन्दू नेता- क्या आप इसमें किसी की पूरी जीत और किसी की पूरी हार नहीं देखते?

मौलवी- देखता हूँ! इसमें अल्लाह की पूरी जीत है और शैतान की पूरी हार है।

-नई दुनिया।


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