यह दावानल कैसे बुझेगा?

February 1942

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(महात्मा गाँधी)

केवल बातों से वर्तमान युद्ध का यह दावानल शाँत थोड़ा ही होने वाला है? अपने आप तो वह किसी रोज शाँत होगा ही। परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि उसके शाँत होने के पहले यादव संहार होगा। यादव लोग एक दूसरे से लड़ मरे और पृथ्वी का भार हलका हुआ। दावानल धधकता ही रहे, इससे तो बेहतर यह है कि वह यादव संहार के जरिये शाँत हो जाय। परन्तु ऐसी इच्छा कोई नहीं करेगा। इच्छा तो ऐसी करनी चाहिए कि सर्वनाश होने के पहले इस दावानल को कोई न कोई प्रबल अहिंसात्मक प्रयोग से शाँत किया जाय।

हमारे धर्म ग्रंथों में हम पढ़ते हैं कि प्राचीनकाल में जब कोई बड़ी विपत्ति या उपद्रव से बचने के लिए सामान्य उपाय बेकार हो जाते थे, तब लोग तपश्चर्या करते थे यानी सचमुच जलते थे। इन बातों को मैं दंत कथा नहीं मानता। तपश्चर्या के अनेक प्रकार होते हैं। मूढ़ मनुष्य भी तपश्चर्या कर सकता है। आज भी ऐसे लोग पाये जाते हैं। ज्ञानी भी तपश्चर्या करते हैं। तपश्चर्या का अर्थ समझ लेना पाश्चात्य शास्त्रों ने तपश्चर्या करके ही तो आविष्कार किये। तपश्चर्या सहज जगत में जाकर अपने आस-पास धूनी लगाकर बैठने से नहीं होती। ऐसी तपश्चर्या में तो निरी मूढ़ता भी हो सकती है। इसलिए तपश्चर्या का विस्तृत व ठीक अर्थ करना चाहिए।

यह संभव है कि ऐसे तपस्वी बहुत कम हों-इतने कम हों कि उनके काम का कोई परिणाम न निकले लेकिन मैं तो कह चुका हूँ कि-’यदि एक ही व्यक्ति प्रायः पूर्णतया अहिंसक हो तो वह दावानल को बुझाने की सामर्थ्य रख सकेगा।’


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