ओउम् सत्य की जय

February 1942

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(चरणदास की वाणी)

साँच बिना साधू नहीं, कबहूँ न मिलि हैं राम।

साँच बिना गति ना लहै, पावै ना निज धाम॥

सत-2 सुख सौं बोलिये, और सत ही चलिये चाल।

सत ही मन में राखिये, सो सत ही रहिये नाल॥

साँचे कूँ ग्रह ना लगै, साँचे कूँ नहिं दाग।

साँचे शाप न लगही, सब दुख जावैं भाग॥

बड़ी तपस्या साँच हैं, बड़ा वरत है साँच।

जाँसौं पाप सभी जरैं, लगैं न दिव की आँच॥

जाका वचन मुड़ै नहीं, साँचे सब व्यवहार।

चरण दास त्रैलोक्य में, कभी न आवै हार॥

सतवादी को पति है साँच। ताको लगै न दिवकी आँच।

साँची चोर चुराया घोड़ा। परमेश्वर ताका रंग मोड़ा॥

साँच प्रताप अचम्भा भया। और चोर चोरी सूँ गया॥

औरो साँच प्रताप अनन्त। सब ही जानै साधू सन्त॥

लाख बात का एक ही जोड़। साँचा पुरुष सबन सिरमोड़॥

साँचे की पदवी बड़ी, दुष्ट साधु के माँहि।

दौनों ही स्तुति करैं, निन्दक कोऊ नाँहि॥


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