अखण्ड ज्योति के नियम

February 1942

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अखण्ड ज्योति का वार्षिक चन्दा 1 रुपये मनीआर्डर से भेजना चाहिये। वी.पी. मंगाने से 1 रुपये से अधिक देने पड़ते हैं। मूल्य में कमी करने के लिये पत्र व्यवहार करना व्यर्थ है। एक वर्ष से कम के लिये ग्राहक नहीं बनाये जाते।

पाठकों को जनवरी से ग्राहक बनाना चाहिये, बीच के किसी मास में चंदा भेजने वालों को जनवरी से उस मास तक के पिछले अंक भेज दिये जावेंगे।

अखण्ड ज्योति हर महीने की ठीक 20 तारीख को निकल जाती है। न मिले तो डाकखाने के उत्तर सहित 15 दिन के अन्दर ही लिखना चाहिये।

सन् 40 के छः अंक तथा सन 41 के कुल अंक मौजूद हैं। जो मंगाना चाहे 502 रुपये प्रति अंक के हिसाब से मंगा सकते हैं।

पुस्तकों का मूल्य 1 रुपया है। चार पुस्तकों से कम मंगाने वाले को कोई कमीशन नहीं दिया जाता है। चार से अधिक पुस्तकें मंगाने पर चौथाई कमीशन मिलता है। डाक खर्च हर हालत में ग्राहक के जिम्मे है। प्रति पुस्तक पर 11 रुपया का कमीशन मिलता है, किन्तु 1 रुपया पोस्टेज लगता है। इस प्रकार कमीशन काट कर और पोस्टेज जोड़ कर हर पुस्तक के लिये 11 रुपया भेजना चाहिये।

हर पत्र के साथ अपना पूरा पता और ग्राहक नम्बर अवश्य लिखना चाहिए। इसके बिना उत्तर भेजने में विलम्ब हो सकता है। इसके लिए जवाबी कार्ड या टिकट भेजना चाहिये।

सब प्रकार के पत्र व्यवहार का पता-

मैनेजर ‘अखण्ड ज्योति’, मथुरा।


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