क्लीव न हम कहलाएँ (kavita)

June 2003

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गुरु का शक्ति-प्रवाह बह रहा, अब इससे जुड़ जाएं हम, भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

भागीरथी और गायत्री का अवतरण हुआ इस दिन, थी मृतप्राय मनुजता, प्राणों का संचरण हुआ इस दिन, सुधा-बिंदु पाकर उनसे फिर प्राणवान बन जाएं हम, भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

ऋषि ने तप से किया मुक्त, गायत्री रही न बंधन में, पहुँची देश-देश, घर-घर में, संपन्नों में, निर्धन में, इस प्रभाव को शेष जनों तक भी निश्चित पहुँचाएं हम, भागीरथ तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

जो हो गया, न उस पर हम कुछ गर्व करें, अभिमान करें, वह प्रभाव था केवल गुरु के तप का, इसका ध्यान करें, व्यर्थ आत्म-सम्मोहन से संपूर्ण मुक्ति पा जाएं हम, भागीरथ तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

करें साधना, हों सशक्त, ठहरें न कहीं बाधाओं में, दृष्टि स्वच्छ हो, जिससे पलभर भ्रमित न हो भटकावों में, सर्वप्रथम व्यक्तित्व स्वयं का पावन प्रखर बनाएं हम, भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

ऋषि का शक्ति-प्रवाह हमें हर कोने तक पहुँचाना है, युग के महत्कार्य में जनसहयोग सभी का पाना है, इसके लिए सशक्त संगठन, मिलकर अभी बनाएं हम, भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

चिंतन का बिखराव दूर हो, ऐसा सतत प्रयास करें, संकल्पित ही श्रेय-सफलता पाएंगे, विश्वास करें, असमंजस को त्यागें, कायर-क्लीव नहीं कहलाएं हम, भागीरथ-तप के यूँ भागीदार स्वयं बन जाएं हम।

-शचींद्र भटनागर

*समाप्त*


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