स्रष्टा का यह लीलाजगत सुनियोजित, सुव्यवस्थित है।

June 2003

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समस्त सृष्टि व्यवस्था के पीछे एक अदृश्य शक्ति सतत क्रियाशील है। जड़ पदार्थ से लेकर जीव और मानव सभी इसी शक्ति द्वारा नियंत्रित व नियमित हैं। उसे सुपरमाइंड कहा जा सकता है। जीवों में वही माइंड कहलाता है। कोई जैविक कार्य या सृष्टि व्यवस्था इन दोनों के बिना असंभव है। अति सूक्ष्म और क्वाँटम स्तर पर माइंड और सुपर माइंड (अतिमानस) आपस में संबंधित होते हैं। इसी कारण ब्रह्माँड की गति सुनियोजित एवं क्रमबद्ध है तथा जीवन व्यापार गतिशील है।

वैज्ञानिक ब्रह्माँड की अभूतपूर्व व्यवस्था को देखकर हैरान हो गए, परन्तु इन्हें इसका कोई कारण नजर नहीं आया। अंततः इस संचालन शक्ति को ही सुपरमाइंड कहा गया। ब्रह्मांड की गतिविधि अत्यंत रोचक पर रहस्यमयी है। वैज्ञानिकों ने इसकी परिकल्पना इसके उद्भव से की है। ब्रह्मांड के उद्भव के विषय में अनेकों सिद्धाँत एवं मान्यताएं हैं। कोई इसकी उत्पत्ति बिगबैंग थ्योरी से समझाता है तो कोई इसे हिट डेथ थ्योरी के तहत बताता है। अनेक ब्रह्माँडविद संकुचन की व्याख्या करते हैं। वेदाँत ब्रह्मांड को माया से उद्भूत मानता है। जो भी इन समस्त सिद्धाँतों के पीछे एक कुशल कलाकार की सुन्दर अभिव्यक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता। यह अदृश्य कार्यकुशलता सुपरमाइंड की ही है।

भौतिकविदों ने अंततः इस अदृश्य बुद्धि को कहीं-न-कहीं स्वीकार किया है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध भौतिकविद् पाल डेविस ने ‘द एक्सीडेंटल यूनीवर्स’ में वर्णन किया है कि ब्रह्मांड में सूक्ष्म परमाणु से विशाल आकाशगंगा तक एक सुव्यवस्था है, एक सुश्रृंखलता है। इस सृष्टि में प्रत्येक पदार्थ आवस में संबंधित है। किसी में भी अलगाव नहीं है। यह सुनियोजित किसी अदृश्य सिद्धाँत का ही परिणाम हो सकता है। हिंज पेजल्स जैसे पदार्थवादी वैज्ञानिक ने अपने शोध ग्रंथ ‘कास्मोलॉजी’ में बताया है, ‘ब्रह्मांड का गुरुत्वाकर्षण एक चमत्कार एवं आश्चर्यजनक है। यह शक्ति एक छोटी-सी सुई से लेकर ग्रह, नक्षत्र, निहारिकाओं तक को नियंत्रित कर सकती है। तारों को चमकते, सूर्य को दहकते एवं पृथ्वी को अपनी ही धुरी पर घूर्णन करते अरबों वर्ष हो गए, परन्तु कहीं कोई व्यतिक्रम नहीं आया है और सबसे अनोखा है ब्रह्मांड में मानवीय विकास। इस सिद्धाँत के पीछे भी ईश्वर की क्रियाशीलता की झाँकी मिलती है।’

ब्रह्माँडीय क्रियाकलापों की और सूक्ष्म ढंग से विवेचना की जाए तो भी यही निष्कर्ष निकलता है। ब्रह्मांडीय प्रसार में फोटॉन कण की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। फोटॉन एक प्रोट्रॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बनता है। हाइड्रोजन के आइसोटोप्स भी एक विशेष तत्व हैं। ये ब्रह्मांड के 74 पदार्थों के निर्माण में काम आते हैं। यह आइसोटोप्स एक प्रोट्रॉन और एक इलेक्ट्रान से विनिर्मित हैं। प्रोट्रॉन को स्थायी कण माना जाता है, जो कि विखंडित होकर एक प्रोट्रॉन, एक न्यूट्रॉन और एक एंटी न्यूट्रॉन कण बनाता है। न्यूट्रॉन प्रोट्रॉन से भारी कण है। इस सूक्ष्म सृष्टि में गजब का आपसी सामंजस्य है।

ब्रह्मांडीय व्यवस्था अपने आप में अनोखी एवं अद्भुत है। यहाँ ही हरेक गतिविधि योजनाबद्ध तरीके से संपन्न होती है। ब्रह्मांड के इस सुनियोजन को प्रदर्शित करने के लिए वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांडीय स्थिराँक की परिकल्पना की है। ये स्थिराँक महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं, जिनके माध्यम से वैज्ञानिक ब्रह्मांडीय रहस्यों को अनावरण करने का प्रयास-पुरुषार्थ करते हैं। ये स्थिराँक भिन्न-भिन्न कणों के लिए भिन्न-भिन्न हैं।

शोधरत वैज्ञानिक इन्हीं स्थिराँकों के माध्यम से ब्रह्माँडीय शोध एवं अन्वेषण का कार्य करते हैं। इन स्थिराँकों के अंकीय मूल्य को स्ढ्ढ इकाई कहते हैं। इसी के आधार पर आकाशगंगा एवं निहारिकाओं का पता चलता है। यहाँ तक कि आकाशगंगा के तारों की गणना भी की जा सकती है। एक आकाशगंगा में 1060 तारे होते हैं। जो भी हो, ये स्थिराँक रहस्यमय ब्रह्माँड के सूक्ष्म एवं विराट संरचना के आधार है। इन स्थिराँकों में व्यतिक्रम होने से इस विराट संरचना को जानने-समझने में परेशानी हो सकती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार इस विशाल एवं विराट ब्रह्मांड को संचालित तथा नियमित करने के लिए चार बल क्रियाशील है। ये हैं गुरुत्वाकर्षण बल, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल, दुर्बल न्यूक्लियर बल व सुदृढ़ न्यूक्लियर बल। इस जगत की सजीवता इन्हीं बलों पर आधारित है। इन बलों की आपसी प्रतिक्रिया समूचे जगत के अस्तित्व को समाप्त कर सकती है।

नाभिकीय बल (न्यूक्लियर पावर) जड़ जगत के जड़ कहलाने वाले परमाणु पदार्थ के शक्तिशाली परमाणुओं को बाँधे रखते हैं। नाभिक के अन्दर प्रोट्रॉन और न्यूट्रॉन का जो साम्य दिखता है, इसी बल के आधार पर होता है। इसके और परमाणुओं की स्थिरता संभव नहीं है। यह बल नहीं होता तो पदार्थों से परमाणु आसमान में गुब्बारे जैसे उड़ने लगते। अगर ऐसा होता तो ब्रह्मांड का स्थूल स्वरूप ही नहीं बन पाता। सूर्य और तारे नाभिकीय बल के कारण ही जलते हैं। सूर्य के जलने से ही अनंत ऊर्जा निकलती है। यदि नाभिकीय बल नहीं होता तो पृथ्वी का यह सुन्दर व सुरम्य वातावरण कैसे रह पाता।

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल इस जगत के समस्त रासायनिक क्रियाओं के लिए जिम्मेदार है। यह बल दो तत्वों को मिलाकर यह नवीन तत्व का सृजन करता है, अन्यथा पानी में नमक एवं शक्कर घुलते ही नहीं। दूध से दही जमना इसी बल के कारण संभव है। कपड़ों की रंग-बिरंगी दुनिया में रंगों का जो रसायन है वह भी इन्हीं बलों पर आधारित है। अर्थात् इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल के कारण ही तमाम तात्त्विक क्रियाएं होती हैं।

शून्य आकाश में घूमते ग्रह, नक्षत्र, तारे गुरुत्वाकर्षण बल का परिणाम है। इस बल के कारण ग्रहण अपने सूर्य का एवं सूर्य आकाशगंगा का चक्कर काटते है। धरती में मनुष्य का चलना-फिरना एवं संतुलन गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से ही बन पड़ता है। अतः ये चार बल समस्त ब्रह्मांड में सक्रिय होकर इसके सुसंगठन का परिचय देते हैं। यह प्रक्रिया महज एक संयोग नहीं है। यह ईश्वर की सुनियोजित व्यवस्था का क्रम है।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक पाल डेविस भी ब्रह्माँडीय व्यवस्था को एक संयोग मानकर संतोष कर लेने के विरुद्ध हैं। हालाँकि पाल डेविस के इस सिद्धाँत को हेंज पेजल्स, स्टीफन जे− गोल्ड आदि वैज्ञानिकों ने समर्थन नहीं किया, परन्तु विख्यात भौतिकविद् राबर्ट ड्यूक ने पाल डेविस का जोरदार समर्थन किया है। ड्यूक ने अपने शोधग्रंथ ‘रिव्यू ऑफ मॉडर्न फिजिक्स’ में इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि भौतिक शक्तियाँ अचानक एवं आकस्मिक नहीं होती। ब्रिटिश ब्रह्माँडविद बैंडन कार्टर ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है।

‘कास्मोलॉजिकल प्रिंसिपल’ में जान बैरा और फ्रैंक टीपलर ने उल्लेख किया है कि ब्रह्माँड में जीवन सुरक्षित एवं संरक्षित है। अंतः ब्रह्माँड की गतिविधियाँ भी उद्देश्यपूर्ण है। इस सिद्धाँत के समर्थक जोसेफ सिल्क ने अपनी अभिव्यक्ति इस तरह दी है, ‘गुरुत्वाकर्षण बल सभी ग्रह-नक्षत्र एवं आकाशगंगा को नियंत्रित करते हैं। अंत में सिल्क ने कहा कि वातावरण बना भी इसलिए कि इसमें जीवन का विकास हो सके। ह्वीलर भी इस सिद्धाँत को स्वीकारते प्रतीत होते हैं।

सृष्टिकर्त्ता ने सृष्टि बनाई, तभी उसमें जीवन जीवंत हुआ है। इस परिप्रेक्ष्य में आधुनिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहे जाने वाले स्टीफन हाकिंग एवं उनके सहयोगी बैरी कालीन ने एंथ्रोपीक सिद्धाँत दिया है। इस सिद्धाँत के अनुसार यह विश्व-ब्रह्माँड आइसोट्रोपिक है, क्योंकि हमारा अस्तित्व है। इस प्रतिपादन से यह स्पष्ट होता है कि ब्रह्माँड का सृजन सार्थक एवं सोद्देश्य ढंग से हुआ है। अगर ऐसा नहीं होता तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं हो पाता। जीवन न हो तो फिर विकास का क्या अर्थ हैं, अंतः इस विराट ब्रह्मांड का संचालक सुपरमाइंड है, जैसे जीवन का नियंत्रणकर्त्ता माइंड।

जीव-जगत में बैक्टीरिया से लेकर अतिविकसित मनुष्य तक सभी का संचालन एवं नियमन ‘माइंड’ द्वारा होता है। हालाँकि एककोशीय जीव में इसे माइंड नहीं कहा जाता, परन्तु कुछ तो ऐसा है जिससे कि वह जीव भी अपने जीवन व्यवसाय को पूर्ण करता है। यहाँ सृष्टिकर्त्ता का स्वरूप और भी सजीव का क्रियाशील दिखाई देता है। मानव स्वयं एक अद्भुत कृति है। मानव शरीर में पचास ट्रिलिथम (50x1012) कोशिकाएं होती हैं। इन विशाल कोशिका समूहों का जीवन-व्यापार कितना अनोखा है? इनका तंत्र कितना सुनियोजित है? मानव विकास की इस यात्रा को क्या एक संयोग कहा जाएगा? मानव जीवन माइंड द्वारा संचालित है। ठीक इसी प्रकार ब्रह्माँड सुपरमाइंड द्वारा नियंत्रित होता है।

सृष्टिकर्त्ता की लीला का साकार रूप यह सृष्टि है। यहाँ सभी सुनियोजित है, इसलिए श्री अरविंद ने कहा है कि इस ब्रह्माँड में संयोग कहीं नहीं है। सभी निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही परिचालित है। अतः माइंड एवं सुपरमाइंड भी उसी ईश्वर की विधि-व्यवस्था है। इस व्यवस्था को समझना और उसके अनुरूप जीवनयापन करना ही जीवन की कला है। इसे जिसने भी सीख लिया, उसी का जीवन उपलब्धियों एवं विभूतियों का अक्षय भंडार बन जाता है।


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