बुढ़िया चरखा कातने लगी (kahani)

June 2003

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निर्झर की धार में बहते... पेज 21

दिन ढलने लगा। व्यक्ति की परछाई लंबी होने लगी।... पेज 22

महाकवि माघ को अपने पाँडित्य का बड़ा अभिमान था। कभी-कभी उनके आचरण से उसकी झलक भी मिलती रहती थी, पर उनको छोड़ने का किसी को साहस न होता।

एक बार माघ राजा भोज के साथ वन विहार से लौट रहे थे। मार्ग में एक झोपड़ी पड़ती थी। एक वृद्धा उसके पास बैठी चरखा कात रही थी। माघ ने वही अभिमान प्रदर्शित करते हुए पूछा, ‘यह रास्ता कहाँ जाता है?’ वृद्धा ने माघ को पहचान लिया, हंसकर बोली, ‘वत्स! रास्ता कहीं नहीं आता-जाता। उस पर आदमी आया-जाया करते हैं। आप कौन हैं?’ ‘हम यात्री हैं।’ माघ ने संक्षिप्त उत्तर दिया। वृद्धा ने फिर मुसकराते हुए कहा, ‘तात! यात्री तो सूर्य और चंद्रमा दो ही हैं। सच-सच बताओ, आप लोग कौन हैं?’ माघ थोड़ा चिंतित होकर बोले, ‘माँ! हम क्षणभंगुर मनुष्य हैं।’ वृद्धा भी थोड़ा गंभीर होकर बोली, ‘बेटा! यौवन और धन, क्षणभंगुर तो यही दो हैं। पुराण कहते हैं, इन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।’ माघ की चिंता थोड़ी और बढ़ी तो भी उन्होंने उत्तर दे ही डाला, ‘हम राजा हैं।’ उन्होंने सोचा संभवतः इससे वृद्धा डरेगी, पर उसने तत्काल उत्तर दिया, ‘नहीं भाई, आप राजा कैसे हो सकते हैं, शास्त्र ने तो यम और इंद्र दो को ही राजा माना है।’ अपनी हेकड़ी छिपाते हुए माघ ने फिर उत्तर दिया, ‘नहीं माई, हम तो सबको क्षमा करने वाली आत्मा हैं।’ वृद्धा ने बिना रुके उत्तर दिया, ‘पृथ्वी और नारी की क्षमाशीलता की तुलना आप कहाँ कर सकते हैं, आप तो कोई और ही हैं।’

निरुत्तर माघ ने कहा, ‘माँ हम हार गए, अब रास्ता बताओ, पर वृद्धा उन्हें इतनी शीघ्र मुक्त करने वाली नहीं थी फिर बोली, ‘महानुभाव, संसार में हारता वही है जो किसी से कर्ज लेता है या अपना चरित्रबल खो देता है। बस हारने वाले इन्हीं दो कोटि के लोग होते हैं।’ इस बार माघ कुछ न बोले, चुप होकर अपराधी से खड़े रहे। वृद्धा ने कहा, ‘महापंडित! मैं जानती हूँ कि आप माघ हैं, आप महाविद्वान हैं, पर विद्वत्ता की शोभा अहंकार नहीं, विनम्रता है।’ यह कहकर बुढ़िया चरखा कातने लगी और लज्जित माघ आगे चल पड़े।

पेज 24-27 नहीं किया डडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडड


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