विधाता ने एक बार मनुष्यों की सहायता करने के लिए देवदूत भेजा और कहा, जिसकी जो कामना हो, उसे पूरी कर दिया करें। देवदूत अपने काम में तत्परतापूर्वक लगे रहे। अनुदान असंख्यों ने पाए, पर रोना-कल्पना किसी का बंद न हुआ। संकटों से किसी को मुक्ति न मिली। इस असफलता से मनुष्य, देवदूत और विधाता तीनों ही खिन्न थे। नारद को कारण का पता लगाने भेजा गया। पता चला कि मनुष्य दुर्गुणी हैं। जो पाते हैं, उन्हें अनाचार में लगा देते हैं, फलतः दरिद्रता मिटती नहीं, संकट कटता नहीं।
विधाता ने देवदूत को वापस बुला लिया और निर्देश में नया परिवर्तन किया कि वे मात्र सद्गुणी सदाचारियों की ही सेवा किया करें। अनाचारियों को वरदान न दिया करें। तब से अब तक वही क्रम चल रहा है। देवताओं की सहायता मात्र सज्जनों को ही मिलती है। दुर्जन मनुष्यों की मनुहार अनसुनी होती और निरर्थक चली जाती है।