उत्खंडन की विशिष्ट हैं उपलब्धियाँ

November 2001

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अतीतकाल वर्तमान से जुड़ा हुआ है, तो वर्तमान भविष्य के साथ। जिस तरह अतीत वर्तमान में समाहित है, उसी तरह वर्तमान भविष्य में पल्लवित होने वाला है। अतीत, वर्तमान और भविष्य वस्तुतः के क्रम की एक ही अविरल धारा है, अटूट-अनंत प्रवाह है। जब हम अतीत के समानधर्मी मानव कृत्यों को भग्नावशेषों, पत्थरों, मिट्टी के ठीकरों, हड्डियों एवं जीवाश्मों के जरिए ढूंढ़ने लगते हैं, तब हमारा समूचा प्रयास अपने समूचे मानव स्वरूप को देखना होता है। इस प्रयास में पुरातात्त्विक करिश्मों का, फावड़े के चमत्कारों का तब एक कहीं अधिक स्थायी, मोहक एवं रोमाँचकारी दृश्य सामने आता है।

कुछ वर्ष पूर्व पाश्चात्य वैज्ञानिकों की यह मान्यता थी कि विश्व के प्राचीनतम नगर पाँच हजार वर्ष पूर्व सुमेरियन, लगास निप्यर, झरुडु, उर्क एवं उर ही थे। इसके पूर्व के नगरों के बारे में तब उन्हें के बारे में तब उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। ईसाई मतावलंबी तब इन नगरों के इतने प्राचीन होने के बारे में भी शंकाशील थे, क्योंकि बाइबिल के अनुसार परमेश्वर से सृष्टि का निर्माण 23 अक्टूबर से पूर्व की रात्रि में रविवार के दिन ईसा से 4004 वर्ष पूर्व किया था। सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में एक आर्क विशप द्वारा निर्धारित इस मान्यता को उन्नीसवीं शताब्दी तक प्रायः मान्यता मिली रही और इसे पत्थर की लकीर की तरह अकाट्य माना जाता रहा।

सन 1950 से 1958 के मध्य सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. केथलीन केनीयन ने जेरुसलेम और अमान के बीच एक प्राचीन टीले का उत्खनन करके एक ऐसे रहस्य का उद्घाटन किया, जिसने विवादग्रस्त सुमेरियन नगर, जिसके बारे में यह कहा जाता था कि यही विश्व का सर्वप्रथम नगर था, इस मान्यता को तथा बाइबिल में सृष्टि सर्जन की निश्चित तिथि के अकाट्य पत्थर की लकीर को सदा के लिए अविश्वसनीय ठहरा दिया। विख्यात कवि होमर के ‘इलियड’ काव्य की तरह यहूदियों का एक प्राचीन ग्रंथ ‘बुक ऑफ जोशुआ’ के छठवें अध्याय में वर्णन आता है कि जेरिचो या जेरिको नामक नगर के किले के द्वार कितने ही दिनों से बंद थे। यहूदियों ने इसे घेर रखा था, जिससे नगर से बाहर न कोई जा सकता था और न बाहर से कोई भीतर आ सकता था। जब जोसुआ नामक सरदार को स्वप्न में प्रेरणा मिली कि वह सात पुरोहितों के साथ जाकर सात बार बड़े जोर से किले के समान तुरही बजाए और मंत्रोच्चार करे। जोसुआ ने ऐसा ही किया। सातवीं बार तुरही एवं मंत्रों की ध्वनि के साथ ही जेरिचो नगर के द्वार अपने आप खुल गए। यहूदियों ने नगर में प्रवेश किया।

‘दि वर्ल्ड्स लॉस्ट मिस्टरीज’ नामक पुस्तक में इस तरह के अनेक साहसिक उत्खनन कार्यों एवं प्राचीन नगरों के अस्तित्व की प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत की गई है। उसके अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अनेकों पुरातत्त्वविदों ने लगातार अनेक वर्षों तक जेरुसलेम और अमान नगर के मध्य के टीलों का उत्खनन किया, किन्तु कुछ कहने लायक सफलता न मिलने के कारण यही समझा गया कि ये प्राचीन नगर या तो मिट्टी में मिल गए होंगे अथवा यह मात्र दंतकथा होगी। किन्तु जैसा कि कहा गया है कि निष्ठापूर्वक किए गए पुरुषार्थ का प्रतिफल अवश्य मिलता है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही चरितार्थ हुआ।

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार जिस प्राचीनतम नगर जेरिचो याजेरिको की खोज करने में डॉ. केथलीन सने सफलता प्राप्त की थी, उसके संबंध में ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में उल्लेख है कि पैगंबर मूसा जब पवित्र नगर जेरुसलेम की यात्रा के लिए निकले थे, तब उस नगर तक पहुँचने से पूर्व जोर्डन नदी के पार करने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई थी। अतः जोसुआ, जो उनका उत्तराधिकारी था, उसकी अगवानी में यहूदियों ने मरुभूमि को पार किया था। नदी पार करने के बाद उसने जेरिको नगर को घेरा और उस पर विजय प्राप्त की। बाइबिल में वर्णित उक्त घटना के आधार पर खुदाई करने पर उस नगर की प्राचीर की नींव छह फुट चौड़ी और दीवारें बीस फीट ऊंची पाई गई। कार्बन डेटिंग विधि से वैज्ञानिक जाँच करने पर पाया गया कि यह दीवार ईसा से सात हजार वर्ष पूर्व बनाई गई होगी। यहूदियों को यहाँ से हिजरत करनी पड़ी थी, जैसे कि मोहम्मद साहब को मक्का से मदीना तक हिजरत करनी पड़ी थी। संभवतः वह काल ईसा से पूर्व 1400 से 1250 का होगा। इस आधार पर जब यहूदियों ने ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार जेरिको नगर पर विजय प्राप्त की होगी, तब वह प्राचीर 5500 वर्ष होगी। इस प्राचीनतम नगर से एक तत्कालीन निवासी की प्रतिकृति अर्थात् पुतला पाया गया है, जो 9000 वर्ष ईसा से पूर्व काल का है। उसकी खोपड़ी पर मिट्टी की परत लगी हुई है और आँखें के स्थान में सीप लगी हुई है। संभव है पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए इस तरह की कृतियाँ प्रयुक्त की जाती रही होगी।

पुरानी बाइबिल में एक उल्लेख है कि एक ही जाति विशेष के लोगों का एक स्थान विशेष में एक महानगर बसाया गया था। इस जाति के पूर्व से आकर सिन्नार अर्थात् सुमेर में फैलने की बात की कही गई है। प्रख्यात पुरातत्वविद् होयल आदि कुछ विद्वानों ने अपने अध्ययन अनुसंधान के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि अगर अमेरिकन पूर्व से आए थे, तो उनका संबंध भारतवर्ष की विड़ जाति से हो सकता है। संभवतः वे समुद्र मार्ग से पाए थे, क्योंकि एक उपाख्यान में कहा गया है कि ओआनिज नामक देवता ने, जो समुद्री मार्ग से आया था, सुमेर के निवासियों को सभ्य बनाया था। डॉ. केथलीन के अनुसार यह नगर भी ट्राँय नगर की तरह एक ही स्थान पर कालाँतर के बाद बार-बार बसाया गया होगा। इसका आधुनिकतम निर्माण ईसा से 1900 वर्ष पूर्व लौहयुग में आ होगा।

ब्रिटिश इन्स्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी के अध्यक्ष प्रसिद्ध पुरातत्वविद् जेइम्स मेलार्ट ने सन 1964 में तुर्किस्तान ‘कताल हुयुक’ नामक प्राचीन नगर को खोज निकाला है। यह नगर ईसा से पूर्व 6000 वर्ष पुराना पाया गया है। वहाँ की एक दीवाल में 15 फुट लंबा और 5 फुट चौड़ा वृषभ का विशाल लाल रंग का भित्ति चित्र पाया गया है, जिसका नाम ‘दि ग्रेट रेड बुल’ रखा गया है। पुरातत्ववेत्ताओं ने सिंधुघाटी सभ्यता की खोज में मोहनजोदड़ो आदि स्थानों से भी इसी तरह के वृक्षभ भित्ति चित्र प्राप्त किए हैं। इस समानता को देखते हुए कताल हुयुक नामक प्राचीन नगर की सभ्यता की भारतीय होने की संभावना है। ‘पुरातत्व का रोमाँस’ नामक अपनी कृति में श्री भगवतशरण उपाध्याय का इस संदर्भ में कथन है कि यह वृक्षभ अर्थात् साँड़ कला के माध्यम से चलते-चलते मिस्र भी जा पहुँचा था, जहाँ उसको देवता के रूप में पूजा जाता था।

इसी तरह सन 1965 में यूगोस्लाविया में डेन्यूब नदी के दाहिने तट पर ‘लेपेन्सिक वीर’ नामक प्राचीन नगर का उत्खनन उगोस्लाव स्रेजोविक नामक प्राध्यापक ने किया था। इन खोलों के संबंध में पुरातत्ववेत्ता मेलार्ट ने लिखा है कि समकालीन किसान सभ्यता के अवशेषों की मंद एवं टिमटिमाती आकाशगंगा में ये प्रतीक सुपरनोवा तारे की तरह देदीप्यमान दीखते हैं। ये नगर एक सुविकसित अर्थतंत्र वाली शहरी, अत्यधिक धार्मिक एवं कलात्मक सभ्यता हैं, जबकि लेपेन्स्कि वीर सभ्यता पुरातन पाषाण युग की तस्वीर प्रस्तुत करती है।

वस्तुतः हम प्राचीन को वर्तमान के प्रतीकों द्वारा पहचानते हैं और वर्तमान के प्रतीक जब प्राचीन जीवन में मिलने लगते हैं, तब मानव के समसामयिक विस्तार के अतिरिक्त उसके कालाँतर से संगति भी प्रस्तुत हो जाती है और हम इसके स्वस्थ स्वरूप को दृष्टिगोचर कर लेते हैं। साहित्यिक साक्ष्य जैसे होमर के अमर काव्य इलियड एवं पुरानी बाइबिल के आख्यानों के आधार पर साहसी पुरातत्त्वविदों ने वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य क्या है, इसकी छानबीन के लिए कितनी मुसीबतें उठाई, श्रमशक्ति लगी, संपदा खर्च की और अटूट धैर्य का परिचय देकर यह सिद्ध कर दिखाया कि ईश्वर केवल उन्हीं की सहायता करता है, जो अपनी सहायता आप करते है। अपना देश है, तो आध्यात्मिक देश पर लगता है कि आज हम इस तथ्य को भूल गए हैं कि अध्यात्म की नींव पात्रता के विकास पर खड़ी है। भौतिक उत्खनन कार्य से प्राचीन मानवी सभ्यताओं का पता लगाया जा सकता है, तो अध्यात्म के क्षेत्र में साधना के माध्यम से अपने अंदर अनंत काल से दबी एवं प्रसुप्त पड़ी दिव्य क्षमताओं को क्यों नहीं जाग्रत किया जा सकता?


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