अर्जुन की चरित्रनिष्ठा (kahani)

November 2001

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देवताओं की सहायता के लिए अर्जुन उनके यहाँ असुरों के विरुद्ध लड़ने गए। उनके पराक्रम और सौंदर्य से प्रभावित उस लोक की वरिष्ठ सुन्दरी उर्वशी उनसे प्रणय निवेदन करने गई। बोली, ‘मुझे आप जैसी संतान चाहिए।’

अर्जुन ने उसकी चरणरजे मस्तक पर लगाते हुए कहा, ‘आप मुझे ही अपना पुत्र मान लें संतान के रूप में मुझ जैसा पुत्र मिलेगा ही इसका क्या भरोसा। प्रतीक्षा में बैठने की अपेक्षा यह क्या बुरा है कि तत्काल ही आपको पुत्र प्राप्ति हो जाए। मैं आपको सदाकुलीन माता के समतुल्य मानूँगा।’

देवताओं ने इस विवरण को सुना तो अर्जुन की चरित्रनिष्ठा से अत्यंत प्रभावित हुए और दिव्य अस्त्र गाँडीव उन्हें प्रदान किया


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