प्राकृतिक जीवन शैली अपनाए,कैंसर दूर भगाएं

November 2001

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जितनी तेजी से रोग निवारक औषधियों का आविष्कार हो रहा है उतनी ही तेजी से मनुष्य रोगों के शिकंजे में कसता जा रहा है। इनमें कुछ रोग तो ऐसे भी हैं, जिनका अभी तक कोई निश्चित निदान नहीं खोजा जा सका है। कैंसर भी एक ऐसा ही रोग है। रासायनिक दवाओं से कीमोथेरेपी, विकिरण से रेडियोथेरेपी, हारमोन से हारमोन थेरेपी, शल्य तथा इम्यूनोथेरेपी जैसी आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के बाद भी कैंसर से मरने वालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम शोध रिपोर्ट के अनुसार सन् 2000 से पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष लगभग 80 लाख मौत कैंसर के कारण होंगी। इनमें दो तिहाई मौतें सिर्फ विकासशील देशों में होंगी जहाँ कैंसर से लड़ने के संसाधन अत्यन्त कम हैं। विकसित देशों में व्याप्त जानलेवा रोगों में कैंसर का स्थान चौथा है और 6 प्रतिशत मौतों का कारण है। भारत में मौत के दस प्रमुख कारणों में से कैंसर एक मुख्य कारण है। यहाँ एक लाख लोगों में से सत्तर लोगों में कैंसर का प्रकोप देखा गया है और हर आठ में एक को कैंसर होने की संभावना है। हर वर्ष यहाँ कैंसर के पाँच लाख नये मरीज बन जाते हैं।आखिर कैंसर क्या है? शरीर के हर अंग में कोशिकाओं का एक समूह होता है। स्वस्थ कोशिकाएँ एक नियमित क्रम से विभाजित होती हैं। नई कोशिकाएँ नष्ट हुई पुरानी कोशिकाओं की जगह पर काम करने लगती हैं। लेकिन यदि किसी कारण से इन कोशिकाओं का विभाजन तेजी से और अनियमित हो जाये तो जरूरत से ज्यादा नई कोशिकाएँ बनने लगती हैं। ये नई कोशिकाएँ संपूर्ण नहीं होती। उनमें उस अंग विशेष के कामकाज की क्षमता भी नहीं होती। इस अनियमित प्रक्रिया का परिणाम ही कैंसर का जनक है। नई असम्पूर्ण व अविकसित कोशिकाएँ तेजी से विभाजित होती रहती हैं और धीरे-धीरे उस अंग विशेष के क्रियाकलाप में बाधा पड़ने लगती है। यदि यह रक्त का कैंसर हो तो नई कोशिकाओं के बावजूद एनीमिया होने लगता है। यदि ठोस अंग हो तो उनमें गाँठ पड़ने लगती है, जो बराबर बढ़ती रहती है। यह प्रक्रिया सिर्फ उसी अंग विशेष में सीमित रहे तो इस गाँठ को बिनाइन ट्यूमर कहते हैं। यदि ये कोशिकाएँ रक्त व लिंम्फ के द्वारा शरीर के दूसरे हिस्सों में कैंसर फैला देती हैं तो इन्हें मैलिंग नैट कहते हैं। इस प्रकार के कैंसर खतरनाक होते हैं और इनका इलाज भी मुश्किल होता है।

कैंसर एक गैर संक्रामक रोग है। यह कोई वंशानुगत बीमारी भी नहीं है। फिर भी कभी-कभी कुछ परिवारों में यह रोग एक से अधिक सदस्यों को अपनी चपेट में ले लेता है। जैसे परिवार में किसी एक को स्तन कैंसर होने की दशा में अन्य महिला सदस्यों में इसके होने की संभावना दस गुना बढ़ जाती है। कैंसर किसी भी आयु में किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्ध सभी इसके शिकार हो सकते हैं।

कैंसर का सबसे बड़ा कारण है-पर्यावरण प्रदूषण। दो तिहाई कैंसर इसी की देन है। 35 प्रतिशत कैंसर गलत खान-पान व रहन-सहन की आदतों के कारण होता है। जैसे-तम्बाकू, बीड़ी, सुपारी, पान-मसाला, शराब आदि का अत्यधिक सेवन। कुछ दवाइयाँ हारमोन्स, एक्स-रे एवं अल्ट्रा वायलेट किरणें भी कैंसर का कारण बन सकते हैं। यह मानव शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है।

आजकल गुटका या पान-मसाला खाने का व्यसन जिस तेजी से बढ़ा है उसी अनुपात में मुँह के कैंसर रोगियों में भी वृद्धि हुई है। सैकड़ों नामों से बिक रहे पान-मसालों एवं गुटकों पर अगर अविलम्ब रोक नहीं लगायी गयी तो मुँह का कैंसर जल्दी ही एक महामारी का रूप ले सकता है। एक तिहाई मुँह के कैंसर रोगी भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश, सिंगापुर आदि देशों में पाये जाते हैं। कैंसर रोग के वरिष्ठ चिकित्सा सलाहकार डॉ. ए.के.आनंद के अनुसार पान-मसाला या गुटका खाने का शौक शुरू होते ही मुँह का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। जैसे ही यह शौक व्यसन का रूप लेने लगता है वैसे ही बीमारी मुँह में जड़ जमाना शुरू कर देती है। पहले दाँत, फिर मसूड़े और उसके बाद श्वास नली की बीमारियाँ पैदा होने लगती है। मुँह से बदबू आने लगती है। जीभ के प्रभावित होने पर खाना खाने एवं बोलने में कठिनाई होती है। गालों के प्रभावित होने की स्थिति में मुँह पूरी तरह खुल नहीं पाता। धीरे-धीरे ल्यूकोप्लेकिया या सबम्यूकसा फाइब्रोसिस नामक जानलेवा बीमारी पनपने लगती है।

मुँह के कैंसर के इलाज की अब कई आधुनिक विधियों का आविष्कार हो चुका है। अब ऐसे तरीके निकल आये हैं कि रेडियोथैरेपी बारीक नलियों द्वारा दी जा सकती है। इससे विकिरण से नुकसान की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है। इन नई विधियों के बाद भी अगर यह बीमारी हो जाये तो आज भी उसका शत-प्रतिशत इलाज संभव नहीं है। साधारणतया मुँह का कैंसर उन व्यक्तियों में अधिक होता है जो तम्बाकू का प्रयोग चूने के साथ मिलाकर करते हैं एवं बीड़ी, सिगरेट या सिगार पीते हैं। तम्बाकू मिलाकर बनाये जाने वाले मंजन एवं सुपारी खाने से भी बचना चाहिए, क्योंकि इस बीमारी के ये भी प्रमुख कारण है।

ग्रास नली के कैंसर के रोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण भोजन प्रदूषण है। माइकोटोक्सिन और नाइट्रोसामाइन्स जैसे पदार्थ कैंसर पैदा करने वाले पाये गये हैं। तम्बाकू व शराब के सेवन का भी इसमें योगदान होता है। कुछ चिकित्सकीय व्याधियाँ जैसे टाइलोसिस पामेरिस, पैटर्सनब्राउलन कैलीसिंड्रोम भोजन में आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया ग्रास नली का एक्लेजिया और ग्रास नली का बैरट रोग इस कैंसर के अन्य कारण है।

खाना निगलने में परेशानी होना इस कैंसर का प्रमुख लक्षण है। धीरे-धीरे पानी तथा अन्य द्रव्य पदार्थों के लेने में भी दिक्कत होने लगती है। रोग अधिक बढ़ने पर दर्द का अनुभव भी होने लगता है। रोग का प्रसार निकटस्थ अंगों और तंत्रिकाओं में होने पर दर्द अधिक होता है। खाने की नली से श्वाँस नली में रोग का प्रसार होने पर पानी पीने पर खाँसी की शिकायत होने लगती है। यकृत और उसके पास स्थित सीलियस प्लेक्सस में रोग का प्रसार हो जाये तो पीलिया या पेट दर्द की शिकायत हो जाती है।

ग्रास नली के कैंसर का उपचार कीमोथेरेपी, बाह्य विकिरण चिकित्सा और अंतः विकिरण चिकित्सा के समन्वित सहयोग से किया जाता है। जिसके अच्छे परिणाम सामने आये हैं। इसके बाद भी यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि बीस से तीस प्रतिशत रोगियों में ही पूर्णरूपेण रोग मुक्त होने की संभावनाएँ बन पाती हैं।

रक्त कैंसर की बीमारी से भी हर वर्ष हजारों लोग मौत के मुँह में जा रहे हैं। रक्त कैंसर को दो समूहों में बाँटा जा सकता है। एक वर्ग ‘क्राँनिक रक्त कैंसर’ का होता है तथा दूसरा वर्ग ‘एक्यूट रक्त कैंसर’ का होता है। क्राँनिक रक्त कैंसर में कैंसर वृद्धि की रफ्तार धीमी होती है। एक्यूट रक्त कैंसर में कैंसर की वृद्धि तेजी से होती है और कुछ माह में ही रोगी की स्थिति गम्भीर हो जाती है।

एक्यूट रक्त-कैंसर अनेक प्रकार के होते हैं, परन्तु प्रमुख दो हैं। पहला एक्यूट माइलायड रक्त कैंसर। दूसरा एक्यूट लिप्फैटिक रक्त कैंसर। श्वेत रक्त कोशिकाओं में असाधारण वृद्धि अक्सर इस कैंसर की पहली सूचना होती हैं। कमजोरी महसूस होना, वजन में कमी आना, बार-बार खाँसी, जुकाम, शरीर में काले या नीले चकत्ते पड़ना, गले या शरीर के अन्य हिस्सों में गिल्टियाँ हो जाना, यकृत या प्लीहा का बढ़ जाना, रक्ताल्पता तथा नियमित बुखार इसके मुख्य लक्षण हैं।

एक्यूट माइलायड रक्त कैंसर का उपचार काफी जटिल होता है। एक्यूट लिम्फैटिक रक्त कैंसर का इलाज अपेक्षाकृत सहज और बेहतर परिणाम देने वाला होता है। दवाओं का उपयोग कैंसर विशेषज्ञ के सलाह से ही करना चाहिए अन्यथा इसके स्थाई दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।

कुछ कैंसर ऐसे होते हैं जो सिर्फ महिलाओं को होते हैं। इनमें से एक है स्तन कैंसर। पैंतीस से 54 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को होने वाला सबसे घातक रोग स्तन कैंसर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2000 से प्रतिवर्ष पाँच लाख महिलाओं की मृत्यु का कारण स्तन कैंसर होगा। इसमें से बीस प्रतिशत से अधिक महिलाएँ भारतीय उपमहाद्वीप की होंगी।

वैज्ञानिकों के अनुसार स्तन कैंसर हार्मोन में परिवर्तन, बी.आर.ए.सी.जीन, वंशानुगत प्रभावों, अधिक उम्र में गर्भ धारण, कम रेशेवाले भोजन, मासिक चक्र, रजोनिवृत्ति और पर्यावरण में मौजूद कैंसर जन्य पदार्थों के कारण हो सकता है। वैसे अब तक किये गये शोध प्रयासों के अनुसार स्तन कैंसर का सबसे प्रमुख कारण महिलाओं द्वारा बच्चों को स्तनपान न कराना माना गया है। हाल में किये गये एक अन्य अध्ययन के अनुसार धूम्रपान का भी स्तन कैंसर से गहरा सम्बन्ध पाया गया है। अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट रिसर्च के वैज्ञानिकों के मत से प्रतिदिन 20 या अधिक सिगरेट पीने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना सामान्य महिलाओं की अपेक्षा चार गुना बढ़ जाती है। एक अन्य अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि सिगरेट पीने वाले पुरुषों की पत्नियों में नहीं पीने वालों की अपेक्षा बीस प्रतिशत इस रोग के चपेट में आने की संभावना ज्यादा होती है।

वक्ष कैंसर यदि अत्यधिक उग्र रूप धारण कर चुका हो तो उसे पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता। स्तन कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में दवाइयों, इंजेक्शनों आदि की मदद से अथवा कैमोथेरेपी चिकित्सा पद्धति द्वारा इलाज किया जाता है। सर्जरी, रेडिएशन एवं हार्मोन थैरेपी स्तन कैंसर के उपचार की अन्य विधियाँ हैं।

कैंसर के विभिन्न प्रकारों के अनुसार उसके कारण भी बहुआयामी है परन्तु विभिन्न शोध प्रयत्नों से उभरा यह तथ्य निर्विवाद रूप से सत्य है कि उसके रोकथाम में शरीर की आँतरिक क्षमता की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण हो सकती है। कैंसर जैसे रोग के हो जाने के बाद इलाज भले ही कठिन है लेकिन थोड़ी वैज्ञानिक जीवन शैली और थोड़े संतुलित आहार के सहारे काफी हद तक अपने आप को कैंसर से सुरक्षित रखा जा सकता है।

नवीनतम शोध अध्ययन के परिप्रेक्ष्य में समुचित खान-पान कैंसर से लड़ने का एक प्रमुख हथियार बन कर उभरा है। सामान्यतः कैंसर कुछ हफ्तों या महीनों में नहीं होता बल्कि शरीर में इसका विकास होने में वर्षों लग जाते हैं। इस विकास क्रम को भोजन के द्वारा विभिन्न अवस्थाओं में रोका जा सकता है। यहाँ तक कि प्रारम्भिक कैंसर को ठीक भी किया जा सकता है। न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के एन्वायरन्मेंटल मेडिसिन के प्रोफेसर वाल्टर टोल का कथन है कि कैंसर को नियंत्रित करने में सक्षम विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ केरोटीन तत्त्व प्राकृतिक रूप से साग-सब्जियों में पाये जाते हैं। ये मेथी, पालक, हरी गोभी, हरे बुखारे एवं गाजर आदि में उपलब्ध होते हैं। डॉ. टी. के. सालुँखे के मतानुसार गोभी के रस में कई ऐसे गुण पाये जाते हैं जो आमाशयिक व्रण एवं कैंसर को समाप्त करने में सक्षम हैं। प्रातःकाल खाली पेट कम से कम आधा कप गोभी के रस का नियमित सेवन करने से वृहद् आँतरिक प्रदाह एवं प्रारंभिक अवस्था में कैंसर से मुक्ति मिलती है।

नेशनल रिसर्च काउंसिल तथा संसार के दूसरे चिकित्सा वैज्ञानिकों के सर्वेक्षणों के मतानुसार जिन देशों प्रदेशों के लोग भोजन में हरी साग-सब्जी एवं ताजा फलों का सेवन करते हैं वहाँ कैंसर के रोगी बहुत कम दिखाई पड़ते हैं। कैंसर पर विटामिन ‘सी’ के प्रभाव पर शोधरत डॉ. पोलिंग के मतानुसार विशेष प्रकार के कैंसर रोगियों को विटामिन ‘सी’ अधिक मात्रा में सेवन कराने से उनके जीवन काल में तिगुनी बढ़ोत्तरी होती है। विटामिन ‘सी’ की प्रचुरता के लिए मशहूर टमाटर के नियमित सेवन से कई प्रकार के कैंसरों से बचा जा सकता है। पैक्ड जूस में मिश्रित अप्राकृतिक रंग, शर्करा व रसायन से जहाँ कैंसर जैसे रोग उत्पन्न होते हैं, वहीं दाँतों एवं स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है। अतः कैंसर से बचाव हेतु पैक्ड-रस का सेवन उचित नहीं है।

उक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सीधी-सरल प्राकृतिक जीवन शैली अपनाकर एवं साग-सब्जी तथा ताजे-फलों के नियमित सेवन से कैंसर जैसी घातक बीमारी से दूर रहा जा सकता है। इस हेतु लोगों में जागरुकता पैदा करने पर कैंसर के भयावह शिकंजे से मुक्त रहने का सामूहिक प्रयास किया जाना चाहिए। सादा जीवन-सादा भोजन का सूत्र ही मानव जाति को इस भयावह बीमारी से बचा सकता है।


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