अपनों से अपनी बात - विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ा यह सारा संसार

November 2001

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यह सहस्राब्दी 2001 से प्रारंभ हुई मानी जाती है। हर गिनती 1 से आरंभ होती है, अतः हम यह मानकर चलें कि नूतन मिलेनियम, नई सदी-नई सहस्राब्दी 1 जनवरी 2001 से आरंभ हुई। इस वर्ष के घटनाक्रमों ने यह समय आने तक ही हर किसी को बदल दिया है। जनवरी की 26 तारीख की प्रातः आए भूकंप ने गुजरात को लगभग तबाह कर दिया, पूरा कच्छ जमींदोज हो गया एवं अभी उसकी सामान्य स्थिति आने में वर्षों लगने की संभावना है। अभी उस झटके से भारत उबर भी नहीं पाया था कि 11 सितंबर मंगलवार की काली सुबह आ गई। इस मनहूस दिन तक स्वतंत्र उन्मुक्त उपभोक्तावादी सभ्यता के हिमायती देश संयुक्त राज्य अमेरिका की अस्मिता के, राष्ट्रीय गौरव के तथा समृद्धि के प्रतीक न्यूयार्क स्थित ‘वर्ल्ड ट्रेड टावर’ आत्मघाती दस्तों वाले विमानों की टक्कर से धराशायी कर दिए गए। वाशिंगटन के, जो कि अमेरिका की राजधानी है, राष्ट्रीय रक्षा मुख्यालय पेंटागन पर एक विमान गिरा दिया गया तथा एक विमान जिसका संभावित लक्ष्य व्हाइट हाउस (अमेरिकी राष्ट्रपति चर्चा स्थली) रहा होगा, इस स्थान से बीस किलोमीटर पेन्सिलवेनिया प्राँत में जाकर गिरा।

आध्यात्मिक पुरुषार्थ ही हमें महाविनाश से बचा सकेगा

न्यूयार्क और वाशिंगटन न सिर्फ एक राष्ट्र के दो महानगर हैं बल्कि अमेरिका साम्राज्यवाद एवं स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। पूँजीवाद की जीवंत प्रतीक आसमान को छूती दो स्टील एवं शीशे से चमचमाती इमारतें 11 सितंबर की काली सुबह के पूरी तरह आने तक न्यूयार्क की ‘स्कायलाइन’ पर मौजूद थीं, पर जिन्हें 200 किलोमीटर प्रति घंटे के तूफान या बोइंग 707 विमान की किसी वजह टक्कर लगने पर भी कभी टूटने न वाली विनिर्मित किया गया था, कुछ ही मिनटों में भरभराकर गिर पड़ी, धराशायी हो गई। कितने आश्चर्य की बात है कि जिन तथाकथित आत्मघाती दस्तों ने यह कार्य किया, वे इस तबाही के मंजर को इस ‘विश्वग्राम’ (ग्लोबल विलेज) में सीधे टेलीविजन पर सारे विश्व को दिखा पाने में सफल रहे। कोई कुछ भी नहीं कर पाया।

ये इमारतें सारे विश्व के व्यापार का केन्द्र थीं। 110 से भी अधिक मंजिलों वाले इन भवनों में हमले के समय प्रायः चालीस हजार से अधिक लोग मौजूद थे। पहला बोइंग 767 (अमेरिकन एयरलाइंस II बोस्टन-लॉसएंजेल्स) 92 विमान यात्रियों सहित प्रातः 8.45 उत्तरी टावर से टकराया तथा दूसरों बोइंग 767 (यूनाइटेड एयरलाइंस 175 बोस्टन लॉसएंजेल्स) मात्र 21 मिनट बाद 65 यात्रियों के साथ प्रायः 9.06 बजे दक्षिणी टावर से टकराया। भयंकर आग लग गई, टनों विमान का ईंधन विस्फोट के साथ विमान ही नहीं, पूरे भवन को धराशायी कर, स्टील को पिघलाकर सब कुछ नष्ट कर गया। जन-हानि के साथ-साथ पिघलकर सब कुछ नष्ट कर गया। जन-हानि के साथ-साथ शुरुआती आँकड़े तीस अरब डालर की क्षति के हैं।

अकल्पनीय दुस्साहस

अमेरिका जैसे देश में मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता है साथ ही यात्रा भी अति सुगम। अभी मात्र एक सप्ताह पूर्व (घटनाक्रम के) सात सदस्यीय शाँतिकुँज का दल विश्वधर्म प्रसार यात्रा संपन्न कर भारत लौटा था। एक तीन सदस्यीय दल तो उसी दिन लंदन से फ्रैंकफर्ट होकर रात्रि भारत लौटा। वस्तुतः उनकी फ्लाइट यूरोप से उड़ने वाली अंतिम थी। उसके बाद तो सारे विश्व का वायुपथ विमानों के लिए रोक दिया गया था। यात्रा का हमारा जो अनुभव रहा वह यह कि ‘इलेक्ट्रॉनिक टिकट’ से आप कभी भी आसानी से सफर कर सकते हैं। सुरक्षा की जाँच-पड़ताल भी कुछ अधिक नहीं। ऐसे देश में यात्रियों से भरे विमान को मिसाइल बनाकर कोई खचाखच भरे दुनिया के व्यापार के केन्द्र इन ‘ट्रेड टॉवर्स’ को ध्वस्त भी कर सकता है, यह किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

इमारतों की स्टील के पिघलने (प्रायः 2500 सेंटीग्रेड तापमान) से सारा ढाँचा ध्वस्त होकर 10 से 10.30 बजे तक के बीच नीचे आ गिरा। धुएं का एटमी विस्फोट जैसा गुबार उठा, जिसने पहले झटके के बाद बिल्डिंग में घुसे राहत दस्तों सहित आसपास के भवनों को भी तहस-नहस कर डाला। न जाने कितने निर्दोष यात्री, आत्मघाती पायलट बने अपहरणकर्त्ताओं व कार्यालय में काय करने वाले हजारों कर्मचारियों सहित इस हादसे में जान गंवा बैठे हैं। उनके शव अब कभी नहीं मिल पाएंगे। वे तो उस उच्च ताप में वाष्पीकृत हो गए, पूरी तरह कोयला बन गए, (चाक्टड) समाज इन हमलों के बाद एक प्रश्नचिह्न सारी मानवजाति के समक्ष लेकर आया है कि क्या विश्वास की इस तरह हत्या होगी? ईर्ष्या-द्वेष-नफरत के चलते तथाकथित विकास कितना ही कर लिया जाए, क्या ऐसा नहीं लगता कि हम ‘कम्प्यूटर एज’ की इस तकनीकी से भरी इक्कीसवीं सदी में और भी असुरक्षित हो गए हैं, एक तरह से सामूहिक आत्मघात की ओर बढ़ रहे हैं? हम किसी राष्ट्र को, इसकी विचारधारा को, उसके दर्शन को नहीं चाहते तो क्या यही एक तरीका बाकी रह गया है अपना आक्रोश जाहिर करने का? औद्योगिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक क्राँति के माध्यम से शिखर पर पहुँचने वाला विश्व इस तरह महाप्रलय की ओर बढ़ेगा, ऐसा किसी ने कभी सोचा था क्या?

क्या विश्वयुद्ध होगा?

कुछ भी हो, तृतीय विश्वयुद्ध हो, ऐसे आसार बन गए हैं, ऐसा अब सब मानने लगे हैं। अमेरिका ही नहीं, विश्व भर में हुई प्रार्थना सभाओं में सभी ने न केवल भाग लिया, आतंकवाद के खिलाफ अपनी एकजुटता भी प्रदर्शित की। लाखों भारतीय विदेश में रहते हैं, वहीं के नागरिक हैं वहीं की रक्तवाही नलिकाएं बन गए हैं अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं एवं पूरे विश्व के साथ न केवल प्रार्थना कर रहे हैं, मोमबत्तियाँ जला रहे तथा मृतात्माओं की शाँति की तथा आतंकवादी के समाप्त होने की कामना कर रहे हैं। असहायता से भरा एक गुस्सा सभी के चेहरों पर दिखाई देता है। यह तकनीकी तथाकथित उपभोक्तावादी समाज पर एक जमकर लगा तमाचा है एवं इस प्रहार ने सभी को अंतर्मुखी होने, जीवन-शैली बदलने एवं अब क्या कितना इस होड़ में इकट्ठा करना है, इस संबंध में सोचने पर विवश कर दिया है। विश्व एक परिवार बनना था, बन गया एक बाजार। उस बाजार की इस असमता से भरे एवं अपने-अपने विश्वासों को लेकर जी रहे छह अरब नागरिकों से भरे जमाने में यह फजीहत तो होनी ही थी। इसके बिना मनुष्य सीख भी कहाँ पाता है?

क्या कहते हैं भविष्यकथन?

फ्राँसीसी भविष्यवेत्ता माइकेल डी. नोस्ट्रेडेमस पुनः सुर्खियों में हैं। उन पर ढेरों किताबें लिखी जा चुकी हैं। पीटर नारी एक विशेषज्ञ के रूप में ‘हिस्ट्री ऑफ फ्यूचर’ सहित भविष्यवाणियों पर तीस से अधिक किताबें लिख चुकें हैं। यह किताब 1999 में प्रकाशित होकर 2000 में आई। औरों की तरह हमने भी उसके पन्ने पलटे। लगता है 11 सितंबर यह क्रूर दासताँ इस चिकित्सा भविष्यवक्ता ने अपनी ‘सेंचुरीज’ में प्रायः साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व लिख दी थी। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध, नेपोलियन व हिटलर के आविर्भाव, दुनिया के कई प्रमुख नेताओं की हत्या, अकाल, भुखमरी, जापान में महाविनाश सहित तकनीकी प्रगति एवं इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक से ही उज्ज्वल भविष्य की भविष्यवाणी करने वाले नोस्ट्रेमस ने लगता है 11 सितंबर की इस काली सुबह का अहसास काफी पूर्व कर लिया था। वे लिखते हैं-

45 डिग्री अक्षाँस पर जल उठेगा आसमान आग इस नए महानगर की ओर बढ़ेगी अग्नि से वे उनके शहर को तबाह कर देंगे एक बेहिस और क्रूर हृदय खून की नदियाँ बहेंगी, किसी पर रहम नहीं होगा।

कविता की भाषा में लिखी गई यह भविष्यवाणी भावार्थ मात्र है, जो फ्रेंच में लिखी चतुष्पदी का अनुवाद है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह महानगर जिसका विवरण है, न्यूयार्क है। मानवता के लिए आतंक फैलाने वाला यह कौन है-तीसरा ईसा विरोधी (एंटीक्राइस्ट) जो लगभग विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध में धकेल देगा, किस तरह का है, कहाँ का रहने वाला है, इस पर भी उन्होंने एक चतुष्पदी में संकेत किया है। नीली पगड़ीधारी इस खलनायक पर कई काया लगाए जा रहे हैं, अभी कुछ कहना कठिन है, पर इस स्तर पर पूर्वाभास बताता है कि व्यक्ति को पूरी खबर थी। एक बड़े लंबे युद्ध की इस प्रोफेट ने कल्पना की है, किन्तु यह भी लिखा है कि पूर्व से आने वाली शक्ति के माध्यम से दहशत मिटेगी, नई धरा उसके अधीन होगी एवं विश्व पर एक हजार वर्ष तक के लिए शाँति का साम्राज्य छा जाएगा। हजारों व्यक्तियों ने इन चतुष्पदियों का अर्थ अपनी समझ से, अपने स्वार्थों के साथ भी किया है, इसलिए इन शब्दों को हम उतना महत्व न भी दें, पर एक बात सुनिश्चित है कि परोक्ष जगत् ही नहीं प्रत्यक्ष जगत् आगामी एक दशक तक बड़े व्यापक परिवर्तनों से गुजर रहा है। इसमें आध्यात्मिक पुरुषार्थ का संपुट लगने की सर्वाधिक आवश्यकता है।

आस्तिकता का उभार

नोस्ट्रेडेमस की भविष्यवाणी वाली किताबों की बिक्री अनायास ही बढ़ गई है। धर्म के प्रति आस्था भी पूरे विश्व में अचानक बढ़ गई है। लोग चर्च जाने लगे हैं। प्रत्यक्षवाद पर विश्वास करने वाले भी अब भगवान की सत्ता को मानने पर मजबूर हो रहे हैं। आध्यात्मिक साहित्य की बिक्री बढ़ोत्तरी पर है। एक दूसरा पहलू यह कि साँप्रदायिक नफरत और भी बढ़ी ऐसे दिए जा रहे हैं, जिनसे इस प्रगति के चरम विकास पर पहुँची दुनिया को अनायास ही आग की झोंक में डाल देने की सी मंशा दिखाई देती है। भारत जो 1947 में तीन भागों में बंट गया, आतंकवाद का विगत 50 वर्षों में सर्वाधिक शिकार हुआ है। शाँति की बात करने वाला, अध्यात्म का संदेशवाहक हमारा राष्ट्र पश्चिमी, उत्तरी, पूर्वी सभी सीमाओं से ‘क्रास बार्डर टेररिज्म’ झेल रहा है। अभी भूखों को भी अनाज न दे पाने वाला, अन्न वितरण की सही व्यवस्था भी न बना पाने वाला, प्रतिवर्ष बाढ़ व सूखे तथा महामारी की चपेट में आ जाने वाला, विश्व की दूसरी बड़ी आबादी (102 करोड़), वाला यह देश समय-समय पर आतंकवाद के दहशती हिचकोलों से दहल जाता है। अराजकता जैसी स्थिति देती है। 11 सितंबर को विश्व साम्राज्य के एक बड़े स्तंभ पर हुए हमले ने तो अब इस आतंकवाद को वैश्विक बना दिया है एवं सभी के अस्तित्व पर एक प्रश्न चिह्न लगा दिया है।

किया क्या जाए? क्या सब कुछ समाप्त हो जाने की प्रतीक्षा की जाए? नहीं, गायत्री परिवार के अधिष्ठाता, संस्थापक, संरक्षक परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं, ‘भारत की महान भूमिका में जाने से पूर्व विश्वव्यापी महाभारत जैसी परिस्थितियाँ बनेंगी। जब अर्जित शक्ति के द्वारा सारा विश्व बहकने लगेगा। कुछ छिटपुट वारदातों के माध्यम से झड़पों के द्वारा विश्व का महाविनाश अल जाएगा। सद्बुद्धि का साम्राज्य होगा। विचारक्राँति ही सबके विचारों को बदलेगी और देखते-देखते सारा विश्व आध्यात्मिक भाव-प्रवाह में आबद्ध होता दिखाई देगा।’ परमपूज्य गुरुदेव 1965-66 से यह बात लिखते आ रहे हैं। हमने उनकी लिखी एक-एक भविष्यवाणी का विश्लेषण किया है एवं विगत 35 वर्षों में वे वैसी ही घटित होती चली गई है। चाहे वह स्कायलैब के गिरने के समय कराया गया सामूहिक साधनात्मक उपक्रम हो, चाहे 1980 में ‘जुपिटर इफेक्ट’ (वृहस्पति प्रभाव) के कारण आई प्राकृतिक विपदाओं की शृंखला, चाहे वह सौर कलंकों की बाढ़ हो एवं प्रकृतिगत विक्षोभों की शृंखला, पूज्यवर ने आध्यात्मिक पुरुषार्थों ही सर्वोपरि बताया। एक बीस वर्षीय महापुरश्चरण 1980 से 2000 तक चला। उसी को तीव्र वेग देकर 1981 से 2000 की अवधि में युगसंधि महापुरश्चरण नाम दिया गया एवं 2400 करोड़ प्रतिवर्ष गायत्री जप के माध्यम से वह संपन्न हुआ- महापूर्णाहुति गतवर्ष इसी माह की गई। संकट अभी टला नहीं है। यदि यह सब महापुरुषार्थ न चल रहा होता तो कुछ-का-कुछ हो गया होता। 01981 से 2000 का समय शीतयुद्ध की स्थिति में निकल गया। अब इस पुरुषार्थ के विश्वहितार्थाय और प्रखर किए जाने की आवश्यकता है।

प्रखर साधनात्मक पुरुषार्थ अनिवार्य

1986-87 वर्ष को परमपूज्य गुरुदेव ने युगचेतना के अभ्युदय की स्वर्ण जयंती वर्ष के रूप में मनाया था। उसी की हीरक जयंती इस वर्ष हम मना रहे हैं। इस क्रम में कई साधनात्मक उपचार कराए गए, साथ ही पूज्यवर की सूक्ष्मीकरण साधना के अनुयाज क्रम में जनवरी 1987 का अखण्ड ज्योति अंक ‘कुँडलिनी जागरण अंक’ (विश्वराष्ट्र कुँडलिनी) के रूप में तथा फरवरी 1987 का अंक इक्कीसवीं सदी विशेषाँक के रूप में प्रकाशित हुआ। फरवरी के इस अंक में विचारपरक पूर्वार्द्ध में पूज्यवर ने ‘हम विनाश की कगार पर खड़े हैं’ ‘सर्वनाश का एक ही कारण दुर्मति’ जैसे लेख लिखे तो उत्तरार्द्ध में जो क्रियापरक था, ‘विनाश की विभीषिकाओं का अंत होकर रहेगा’ ‘विश्वशाँति में भारत की भूमिका तथा परिवर्तन की अदृश्य किन्तु अद्भुत प्रक्रिया’ जैसे लेख लिखे। यह पूरा अंक आज घट रही घटनाओं का दस्तावेज है।

वे फरवरी 1987 की इस ‘अखण्ड ज्योति’ में लिखते हैं, ‘नवयुग के फलितार्थ होने की सही अवधि इक्कीसवीं सदी है। हमारी भविष्यवाणी का पहला आधार है- अदृश्य जगत् का वह सूक्ष्म प्रवाह, जो कुछ नई उथल-पुथल करने के लिए उद्गम से चल पड़ा है और अपना उद्देश्य पूरा करके ही रहेगा। दूसरा आधार है-हमारा निज का संकल्प जो किसी उच्चसत्ता की प्रेरणा से महाकाल की चुनौती की तरह अवधारित किया गया है। इस प्रयोजन में हमसे भी अधिक बड़ी और समर्थ सत्ता इस तूफानी प्रवाह को आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है।’

विशिष्ट साधनाएं प्रस्तुत समय के लिए

वस्तुतः यह लोभ-मोह अहंकार प्रदर्शन का समय नहीं, विषम व विशेष समय है। यह समय साधनात्मक पुरुषार्थ को और प्रखर करने का है। इसी उद्देश्य से चेतना जगत् से आए प्रवाह ने अभियान साधना को इस वर्ष गुरुपूर्णिमा से आगामी कम से-कम एक या डेढ़ वर्ष तक चलाए जाने हेतु परिजनों को प्रेरित किया। लाखों परिजन उसमें एकजुट हो लग पड़े। अब प्रस्तुत समय हेतु कुछ विशिष्ट मंत्रजप एवं आहुतियों का भी अनुरोध किया गया है, जिनके बारे में विगत अंक में तथा प्रज्ञा अभियान पाक्षिक (1 व 15 अक्टूबर) में विस्तार से दिया गया है। साराँश यही है कि अपनी नियमित जप संख्या के साथ-साथ परिजन का एक माला अतिरिक्त शिव गायत्री मंत्र की तथा एक गायत्री मंत्र के साथ ‘क्लीं’ बीज मंत्र लगाकर करने का क्रम बना लें।

शिव गायत्री मंत्र हैं-’ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।’

महाकाल इस युग के देवता हैं, देवाधिदेव महादेव स्वयं इन परिस्थितियों से मोर्चा लेंगे। अधिक हो सके तो 3 या 5 माला का भावपूर्वक जप करें।

‘क्लीं’ बीज मंत्र के साथ जप इस तरह किया जाना है, ॐ भूर्भुवः स्वः क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् क्लीं क्लीं ऊँ।’ इसकी भी एक, तीन या पाँच माला का जप किया जा सकता है। जप के साथ यह ध्यान करें कि विश्वकल्याण हेतु हमारी भी एक छोटी-सी आहुति दी जा रही है। यह सूर्य के प्रभामंडल में जाकर उससे एकाकार हो रही है। हम भी उसी विराट ‘आँरा’ के घेरे में हैं, पूर्णतः सुरक्षित हैं।

निश्चित ही भविष्य उज्ज्वल है, होकर रहेगा। छोटे-बड़े इन झकोलों से विचलित न हों। परीक्षा की घड़ी है यह। हम सभी विश्वासी एकजुट होकर इसका मुकाबला कर लेंगे।


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