प्रमेह रोग प्रायः जिन कारणों से होता है उनमें प्रमुख हैं, एक स्थान पर सुख से बैठे रहना, आवश्यकता से अधिक सोना, माँस खाना, नवीन अन्न तथा नया पान खाना, गुड़ शक्कर से बने मीठे पदार्थ अधिक खाना तथा कफ कारक पदार्थों का सेवन करना। इसका सामान्य लक्षण पेशाब की अधिकता तथा उसका गंदलापन होना अर्थात् पेशाब के साथ चिकना पदार्थ एल्ब्यूमिन (प्रोटीन) का निकलना है। यही प्रमेह चिकित्सा न होने पर कालाँतर में एक-दूसरे रूप मधुमेह में परिवर्तित हो जाता है, जिसे ‘डायबिटीज’ कहते हैं। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘बड्गसेन’ में उल्लेख है-
सर्व एव प्रमेहास्तु कालेना प्रकारिणः। मधुमेहत्वमायान्ती तदाऽसाध्या भवन्ति हि॥
आयुर्वेद ग्रंथों में बीस प्रकार के प्रमेह बताए गए हैं। खान, पान, आहार विहार संतुलित रखने एवं संयमित जीवन जीने से तथा यज्ञोपचार करने से सभी प्रकार के प्रमेह रोगों एवं मधुमेह से पूरी तरह छुटकारा पाया जा सकता है और स्वस्थ एवं दीर्घजीवन का लाभ उठाया जा सकता है। यहाँ पर प्रमेह अर्थात् पेशाब के साथ चिकने पदार्थ का स्वतः निकलना एवं डायबिटीज या सुगर (मधुमेह) के लिए अलग-अलग यज्ञ चिकित्सा का वर्णन किया जा रहा है।
प्रमेह रोग की विशेष हवन सामग्री-
इसके लिए निम्नलिखित औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर उनका जौकुट पाउडर बनाया जाता है-
तसनमखाना 2. मूसली सफेद 3. मूसली 4. गोक्षरु बड़ा 5. कौंचबीज 6. सुपारी 7. बबूल के बीज या फूल 8. शतावर 9. छोटी इलायची 10. इमली के बीज 11. असगंध 12. बला के बीज अर्थात् बीज बंद (खिरेटी के बीज) 13. सालम मिश्री 14. गोरखमुँडी 15. दारुहलदी 16. देवदार 17. आँवला 18. हरड़ 19. बहेड़ा 20. नागरमोथा 21. बड़ अर्थात् बरगद की छाल 22. हल्दी 23. जामुन के बीज की मींगी 24. खदिर 25. अग्निमंथ 26. भुइ आमला।
इन सभी 26 चीजों को बराबर मात्रा में एकत्र करके हवन सामग्री बनाई जाती है। इसी समग्र सामग्री के पाउडर की कुछ मात्रा को घोट-पीस करके कपड़छन कर लिया जाता है ओर एक अलग डिब्बे में रख लिया जाता है। हवन करने के पश्चात इस पाउडर में से सुबह-शाम एक-एक चम्मच मलाई या घी तथा शक्कर के साथ प्रमेह पीड़ित व्यक्ति को नियमित रूप से खिलाते रहने से वह स्वस्थ हो जाता है।
पाउडर के स्थान पर यदि इस चूर्ण की गोली बनाना चाहो तो इसे और अधिक सूक्ष्म रूप में कपड़छन कर लें तथा घृतकुमारी का रस मिलाकर चने के बराबर छोटी-छोटी गोलियाँ बना लें। सुबह और शाम भोजन से पहले दो से चार गोली तक जल के साथ निगल जाएं। थोड़े दिनों में ही प्रमेह से छुटकारा मिल जाएगा। यह गोली सभी प्रकार के प्रमेह में लाभप्रद सिद्ध हुई है।
हवन करते समय उक्त 26 चीजों से निर्मित हवन सामग्री में पहले से तैयार की गई ‘काँमन हवन सामग्री नंबर 1.’ को भी बराबर मात्रा में मिला लेना चाहिए। इसमें 1. अगर 2. तगर 3. देवदार 4. चंदन 5. लाल चंदन 6. जायफल 7. लौंग 8. गूगल 9. डचरायता 10. गिलोय और 11. अश्वगंधा आदि चीजें मिली होती हैं। इसी में जौ, तिल, शक्कर एवं घृत मिलाकर नित्यप्रति हवन करना चाहिए। इन चीजों से बनी हवन सामग्री नंबर 1 को खाने वाले पाउडर में नहीं मिलाया जाता। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए। हवन करने का मंत्र सूर्य गायत्री मंत्र सूर्य गायत्री मंत्र ही रहेगा अर्थात् ‘ॐ भूर्भुवः स्वः भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यो प्रचोदयात्।’ यही सूर्य गायत्री मंत्र हैं।
जहाँ तक को सके हवन के लिए समिधा आम, पाकर, बरगद, पीपल आदि की लेनी चाहिए। यदि औदुँबर अर्थात् गूलर की समिधा ली जा सके तो अत्युत्तम है। इस संदर्भ में देवी भागवत महापुराण के एकादश स्कंध के चौबीसवें अध्याय के 28-29वें श्लोक में स्पष्ट उल्लेख हैं, ‘औदुँबर समिद्धोमादतिमेहः क्षयं व्रजेत्। प्रमेहं शमयेद्धुत्वा मधुनेक्षुरसेनवा।’ अर्थात् औदुँबर अर्थात् गूलर की समिधाओं से हवन किया जाए, तो प्रमेह नष्ट होता है। इसी तरह मधु-शहद अथवा ईख के रस शर्बत से हवन करने पर भी प्रमेह की शाँति होती है।
प्रमेह रोगी को पथ्य-परहेज का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। मिर्च, मसाला, खटाई, अत्यंत मीठे पदार्थ, भारी पदार्थ खाने से बचना चाहिए, साथ ही औषधि सेवनकाल ही नहीं यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. डायबिटीज या सुगर अर्थात् मधुमेह की विशेष हवन सामग्री-
जिस रोग में मूत्र विसर्जन शर्करायुक्त मधुर या शहद के समान मीठा हो, वह ‘मधुमेह’ रोग कहलाता है। आयुर्वेद ग्रंथों में सभी प्रकार के प्रमेहों को कालाँतर में मधुमेह में परिणत हो जाने की बात लिखी है है, यथा ‘कालेनोपोसेता सर्वे मद्यन्ति मधुमेहिनाम्।’ आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी इसे ‘डायबिटीज’ या ‘सुगर की बीमारी’ कहते है। इसका प्रमुख कारण अनियमित आहार-विहार, खान-पान में गड़बड़ी माना जाता है। दूध, दही, घी, मक्खन, चीज, गुड़ शक्कर आदि पदार्थ एवं इनसे बनी हुई मिठाइयों का अधिक सेवन, व्यायाम आदि शारीरिक श्रम का अभाव, आरामतलबी, दिन में शयन, मल, मूत्र एवं वायु आदि वेगों को रोकना, अत्यधिक उपवास करना, रात्रि जागरण, चिंता, भय, शोक, उद्विग्नता, अत्यधिक मानसिक तनाव आदि डायबिटीज अर्थात् मधुमेह का कारण बनते हैं। शक्ति से अधिक परिश्रम करना, प्रमेह की समय रहते चिकित्सा न कराना भी मधुमेह की उत्पत्ति अथवा वृद्धि का कारण बनता है। कइयों में आनुवंशिकता भी रोगवृद्धि का एक मूल कारण होती है।
यों तो एलोपैथी चिकित्सा में डायबिटीज में खाने-पीने की अनेक औषधियों से लेकर कृत्रिम इन्सुलिन के इंजेक्शन तक प्रचलित हैं, परन्तु प्रायः देखा यही जाता है कि इनसे चिरस्थायी समाधान नहीं मिलता। दवा बंद करने एवं परहेज बिगड़ने पर रोग पुनः उभर आता है और अनेकानेक जटिलताएं पैदा हो जाती हैं।
ऐसी स्थिति में यज्ञ चिकित्सा एक ऐसी निरापद एवं प्रभावी उपचार प्रक्रिया है, जिसके द्वारा डायबिटीज को पूरी तरह निर्मूल किया जा सकता है। इसके लिए जो हवन सामग्री तैयार की जाती हैं, उसमें निम्न औषधियाँ बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं-1. हल्दी 2. निर्मली बीज 3. कालमेध 4. पप्तरंगी 5. डगलोय 6. खस 7. लाजवंती (छुईमुई) के बीज 8. पुनर्नवा 9. शिलाजीत 10. बिल्व पत्र 11. कूठ-कड़वी 12. कुटज 13. मेथीदाना 14. अतीस कड़वी 15. आम की गुठली की मींगी 16. दारु हल्दी 17. रसौत 18. हरड़ 19. कैथ का गूदा 20. कुटकी 21. विजया (भाँग) 22. खुरासानी अजवायन 23. जामुन की गुठली 24. विजयसार (बीजा) 25. गुड़मार 26. करेला का फल एवं पत्र 27. मेढ़ासिंगी 28. उलट कंबल 29. गूलर के फल।
उक्त सभी 29 औषधियों को कूट-पीसकर जौकुट कर लिया जाता है और इन्हीं की कुछ मात्रा को अत्यधिक बारीक करके कपड़छन कर अलग डिब्बे में रख लिया जाता है। इसका उपयोग हवन करने के बाद सुबह-शाम एक-एक चम्मच जल के साथ खाने के लिए किया जाता है। इसे गोली के रूप में भी खा सकते हैं। कपड़े से छने हुए सूक्ष्म पाउडर को घृतकुमारी (ग्वारपाठा) के रस से गूंथकर चने के बराबर छोटी-छोटी गोली बना लेनी चाहिए और छाया में सुखाकर उसे डिब्बे में रख लेना चाहिए। भोजन से पूर्व दो से चार गोली तक सुबह और शाम को जल के साथ मधुमेह रोगी को नित्य देना चाहिए। हवन और औषधि सेवन दोनों मिलकर रोगी को रोगमुक्त बना देते हैं।
हवन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उपर्युक्त 29 औषधियों के जौकुट हवन सामग्री में ही हवन करते समय प्रमेह रोग में वर्णित ‘काँमन हवन सामग्री नंबर-1’ को भी बराबर मात्रा में मिलाकर तब सूर्य गायत्री मंत्र से कम-से-कम चौबीस आहुति का हवन प्रतिदिन करना चाहिए। समिधाएं वही रहेंगी, जो प्रमेह के लिए निर्धारित हैं।
डायबिटीज में परहेज करना अति आवश्यक है। इसमें मीठा, मिठाई अधिक मीठे फल, चावल, आलू नहीं खाना चाहिए। हलके मीठे फल जैसे सेव, मौसमी, अनार, देसी पपीता, अमरूद आदि खा सकते हैं, किन्तु यदि रक्त में सुगर की मात्रा अधिक बढ़ी हो तो इन्हें भी नहीं खाना चाहिए। करेला, जामुन, मेथी, नीम तथा गेहूँ व चने से मिश्रित आटे की रोटी खाना चाहिए। इस तरह उपर्युक्त उपचार उपक्रम अपनाते हुए आहार-विहार के संयम द्वारा मधुमेह से पूरी तरह छुटकारा पाया व स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है।
क्रमश: